विनोद तकियावाला
वैश्विक राजनीतिक पटल पर एक बार फिर से भारत अपना नया इतिहास लिखने जा रहा है।यूँ तो भारत हमेशा ही सम्पूर्ण विश्व में अपनी पहचान व ज्ञान के चर्चा में रहा है।इन दिनो पर्यावरण व प्रजातंत्र के महापर्व-18वें लोक सभा व कुछ राज्यों कें विधान सभा चुनाव की प्रक्रिया के गर्मा गर्म बहस चारो दिशाओ में हो रही है।18वें लोक सभा के साधारण चुनाव 24 के सातवें व अन्तिम चरण के सम्पन्न होने के बाद राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय राजनीतिक विषलेषज्ञों का ध्यान4जून को लोक सभा व विधान सभा के चुनाव के परिणामों पर टिकी थी,लैकिन सातवें चरण के चुनाव प्रचार अभियान के समाप्त होते ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कन्या कुमारी स्थिति स्वामी विवेकानंद शिला पर 45 घंटे ध्यान पर बैठ गए।मोदी के ध्यान पर विपक्ष ने चुनाव आयोग में की शिकायत की है।मोदी के ध्यान पर विपक्ष ने मचाया बवाल है।कांग्रेस का कहना है कि ये चुनाव आचार संहिता का सीधा-साधा उल्लंघन है।आप को पता होगा क कि जब चुनाव की घोषणा होती।मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट जारी किया जाता है।जिनका सभी राजनीतिक पार्टियों,नेताओं और उम्मीदवारों को पालन करना होता है।उन्हीं नियमों से एक नियम कहता है कि सभी दलों और उम्मीदवारों को पूरी ईमानदारी से उन सभी कार्यों को नहीं करना चाहिए जो कानून के मुताबिक भ्रष्ट आचरण या अपराध माने जाते हैं।जैसे मतदाताओं को रिश्वत देना, डराना-धमकाना,किसी और के बदले मतदान करवाना,मतदान केंद्रों के 100 मीटर के भीतर प्रचार करना,मतदान खत्म होने से 48 घंटों की अवधि के दौरान सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना,और मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लाना-ले जाना। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 की धारा126 के अनुसार चुनाव के संबंध में कोई भी सार्वजनिक बैठक करना,जुलूस निकालना और उसमें भाग लेना प्रतिबंधित है।इसके साथ ही सिनेमा और टेलीविजन या अन्य उपकरणों की मदद से जनता के सामने चुनाव संबंधी सामग्री प्रदर्शित भी नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही मतदान क्षेत्र में वोटिंग से पहले 48 घंटे की अवधि के दौरान जनता को आकर्षित करने के लिए कोई कार्यक्रम आयोजन करके जनता तक चुनाव सामग्री पहुंचाना प्रतिबंधित है।तब से अब तक चुनाव प्रचार करने का काफी तरीका बदल गया है।अब कई चरणों में चुनाव होते हैं और जिस क्षेत्र में वोटिंग होनी होती है वहां पर कुछ घंटे पहले चुनाव प्रचार खत्म हो जाता है लेकिन दूसरी जगहों पर चुनाव प्रचार चलता रहता है।यहां वोटिंग के दौरान भी रैलियों का प्रसारण होता रहता है।
कन्याकुमारी में तो19 अप्रैल को ही चुनाव सम्पन्न हो गई है।ऐसे में पीएम मोदी कन्याकुमारी में ध्यान कर रहे हैं। ऐसे में अब पीएम मोदी ध्यान के दौरान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951की धारा126और आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।
आप को याद दिलाना चाहूँगा कि मोदी ने 2019 में लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण से ठीक पहले केदारनाथ में इसी तरह का ध्यान किया था,उस समय भोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में मतदान होना था।तब लगभग सभी विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी और इसे छद्म प्रचार करार दिया था।हालांकि,चुनाव आयोग ने पीएम की ध्यान योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। बस क्या सभी विपक्षी दलों को एक नया मुद्दा मिल गया। मोदी के ध्यान से सियासी मायने निकाले जाने लगे।
राजनीतिज्ञों का कहना है कि राजनीति व सियासत हर समय अपने रंग-ढंग बदलती रहती है।इस बार के लोकसभा चुनाव में यह बात सटीक बैठती हुई दिखी रही है।सर्वविदित रहे कि 19 अप्रैल से चुनाव प्रराम्भ हो गई ‘ जा सात चरणों में शुरू हुई चुनाव की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण मे समाप्त हो गई है।इस बार चुनावी भाषण व रेली के दौरान प्रत्येक चरणों में राजनेताओं के मुँह से भारतीय मतदाताओं को नए-नए शब्द सुनने को मिले।पहले चुनाव में जो लड़ाई जमीन पर लड़ी जाती है,जनता के मु्द्दों पर लड़ी जाती है खास कर 2014 से वह लड़ाई अब मंदिर,मस्जिद,हिंदू, मुसलमान होते हुए स्वयं भू परमात्मा व उनके विशेष दूत तक पहुंच गई है।पार्टी व उनके अंध भक्ति के समर्थकों को मोदी मे परमात्मा व भगवान का विशेष दूत दिखता है।18वें लोक सभा व कुछ राज्यों के विधान सभा सम्पन्न होने के वाद भी चुनाव के परिणाम से पहले तकरार… वाक्य युद्ध छिड़ गई है।
अगर आप ने भाजपा के नेताओं व बयान वीरों के ब्यात सुने हो तो वे लोग खुल कर कह रहे थे कि मोदी स्वयं भगवान है।वह कोई अवतारी महापुरुष है।स्वयं भगवान ने उनको इस पर धरती पर कुछ विशेष कार्य करने के लिए भेजा है।मोदी जी देश की140 करोड़ जनता की सेवा करने के लिए नर रूप नारायण अवतरित हुए हैं।भाजपाई नेताओं ने माना है कि पीएम मोदी एकदम भगवान की तरह हैं। वह एक अवतार हैं।खास कर अंध भक्तों का मानना है कि ‘मोदी यह व्यक्ति नहीं है।वह एक देवीय शक्ति है। आजकल के विपक्षी दलों के नेता पीएम मोदी को समझ नहीं सकते हैं। उनकी सोच इन सब नेताओं से आगे है।जहां से वे सोचना शुरू करते हैं,सब नेताओं की सोच वहां तक खत्म हो चुकी होती है।
यदि वो तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे तो उसके लिए पोजिशनिंग कर रहे हो।क्योंकि ये लगभग माना जा रहा है कि वो एनडीए गंठबंधन निकाल लेंगे।अब राष्ट्रपति तो वो नहीं बनेंगे और राष्ट्रपिता की पद खाली नहीं है। तो ऐसे में राष्ट्रप्रभु या राष्ट्र परमात्मा की जगह खाली बचती है।क्योंकि स्वंय कह भी चुके हैं कि भाई अपना क्या है,अपन तो फकीर है,किसी दिन उठेंगे झोला उठाएंगे और चल देंगे।वैसे भी इस देश में साधु-संतों और फकीरों को भगवान मानकर पूजा करने की एक पुरानी परंपरा है। देश में एक बहुत बड़ा वोट बैंक हिंदूओं का है,जो संतों और भगवान में बहुत विश्वास रखता है।जो राम मंदिर का श्रेय मोदी को देता है।वही दूसरी ओर विपक्षी राहुल गांधी,अरविंद केजरीवाल ममता आदि जैसे नेता उनकी इस बात का पूरा मखौल उड़ा रहे हैं। लैकिन इससे मोदी केवोटरों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। उनके जो समर्थक है उन्हे तो पहले से ही अंघ भक्त ब्राण्ड लगा हुआ है।भक्त तो अपने भगवान के ही होते हैं।वे पहले से मोदी को भगवान मानचुके है।जिनकी वजह से वे पिछले दो चुनाव में बड़े मतों के साथ जीते थे।चुनाव की जीत की वजह की लगभग इसी को माना गया कि लाभार्थियों ने अपना वोट भाजपा को किया है।
वैसे भी मोदी मार्केटिंग अच्छी करते हैं। वे भोली भाली जनता को अपनी वाक्य पट्टता में मुख्य मुद्दे से ध्यान हटाने महारत हासिल है।मैं एक प्रार्थना कर रहा हूँ कि ” ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,राज नेताओं सम्मति दे भगवान”। लोक सभा चुनाव के सातवे चरण के बाद खबरिया चैनलों पर एक्जिट पोल की बाढ़ सी आ गई है।कई वार तो मतदाताओं इनको चकमा दे देती है। 18 वें लोक सभा चुनाव के परिणाम घोषित होने कुछ समय शेष है। यानि 4 जुन तक हमें व आपको इंतजार करना होगा।