गोपेंद्र नाथ भट्ट
राजस्थान विधान सभा में इस गुरुवार को संसदीय प्रणाली का स्वर्णिम इतिहास रचा गया,वहीं भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मन्दिर नई दिल्ली की संसद परिसर में लोकतांत्रिक मर्यादाओं का परिहास हुआ ।
राजस्थान विधान सभा में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी और वरिष्ठ विधायक वासुदेव देवनानी को 16 वीं विधानसभा का सर्वसम्मति से निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया।प्रतिपक्ष की ओर से उनके खिलाफ़ कोई पर्चा दाखिल नही किया गया और जो पाँच नामांकन पत्र भरे गए उसके प्रस्तावक और समर्थक भी पक्ष एवं प्रतिपक्ष के नेता ही बने। इस तरह गुरुवार को राजस्थान विधानसभा को सर्वसम्मति से वासुदेव देवनानी के रूप में नया अध्यक्ष मिल गया।इससे पहले 15वीं विधानसभा के अध्यक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. सी पी जोशी थे, जो इस बार नाथद्वारा से चुनाव हार गए।
राजस्थान विधान सभा में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए केवल भाजपा के एक प्रत्याशी वासुदेव देवनानी का ही बुधवार को नामांकन भरवाया गया था। देवनानी के पहले नामांकन पत्र में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा स्वयं प्रस्ताव बने और कांग्रेस नेता पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने उसका अनुमोदन किया। दूसरे नामांकन पत्र पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रस्ताव थे और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं वरिष्ठ विधायक गोविन्द सिंह डोटासरा ने उसका अनुमोदन किया। तीसरे नामांकन पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे प्रस्ताव बनी और भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के राजकुमार रोत ने उसका अनुमोदन किया।चौथे नामांकन पत्र में उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी देवनानी की प्रस्ताव थी और निर्दलीय विधायक चंद्रभान सिंह चौहान ने उसका अनुमोदन किया।इसी प्रकार 5वें नामांकन पत्र में आरएलपी के हनुमान बेनीवाल के देवनानी के लिए किए गए प्रस्ताव का आरएलडी के सुभाष गर्ग ने अनुमोदन किया।
राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर भाजपा के वरिष्ठ नेता वासुदेव देवनानी के सर्वसम्मति और निर्विरोध रूप से निर्वाचित होने पर पक्ष- प्रतिपक्ष के सभी नेता आदर सहित उन्हें अध्यक्ष के आसन तक ले गए। यह दृश्य दर्शनीय था। इस मौके पर मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा,पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे,पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं वरिष्ठ विधायक गोविन्द सिंह डोटासरा तथा अन्य विधायकों ने जो उद्गार व्यक्त किए वे भी संसदीय लोकतांत्रिक परम्पराओं के बेजोड़ उदाहरण तथा संसदीय पद्धति में शानदार और ऐतिहासिक पृष्ठ जोड़ने वाला प्रसंग कहे जा सकते है।नव निर्वाचित विधान सभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने भी जिस मर्यादित ढंग से अपने विचार रखे उन्हें रेखांकित किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि एक जनप्रतिनिधि के साथ मैं एक शिक्षक भी हूँ और एक शिक्षक की नजर में कोई भेद नही होता, उसके लिए सभी विद्यार्थी एक समान होते है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत भी दिए कि शिक्षक को अनुशासन हमेशा प्रिय लगता है इसलिए कोई भी माननीय सदन में ऐसा ऐसा कोई व्यवहार नही करें कि शिक्षक को उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़े ।
गत गुजरे गुरुवार को एक ओर राजस्थान में जहाँ संसदीय लोकतन्त्र की यह शानदार नज़ीर पेश हो रही थी वहीं, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर नई दिल्ली के संसद भवन में पहली बार प्रतिपक्ष के एक साथ 141 सांसदों को सस्पेंड करने के ऐतिहासिक घटनाक्रम के विरोध में प्रतिपक्ष के सांसद विजय चौक से संसद भवन तक विरोध मार्च निकाल रहे थे ।दूसरी तरफ़ सत्ता पक्ष के सांसद संविधानिक पद पर बेठें राज्यसभा के सभापति और देश के उप राष्ट्रपति के खिलाफ़ प्रतिपक्ष के सांसदों के अमर्यादित आचरण और व्यवहार के लिए प्रतिपक्ष के सांसदों का कड़ा विरोध कर रहे थे। संसद के समक्ष इस प्रकार के गतिरोध के चलते गुरुवार को ही संसद का शीतकालीन अधिवेशन भी समय से पूर्व ही समाप्त हो गया।
राजनीतिक पण्डितों का कहना है कि आज देश जब आज़ादी के अमृत काल के दौर से गुजर रहा है ऐसे में यह दृश्य देश-विदेश में दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र कहे जाने वाले भारतीय लोकतन्त्र के लिए शुभकारी नही कहें जा सकते।राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भारतीय लोकतन्त्र की शोभा इसी में हैंकि ऐसे दृश्य और अवरोधों को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को आगे आकर पहल करनी चाहिये ताकि हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर कोई बदनुमा दाग नही लगें।
देखना हैकि भविष्य में राजस्थान विधान सभा जैसी नज़ीर से सबक़ लेकर हमारे जन प्रतिनिधि गण एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए गम्भीर पहल करेंगे और संसद में सार्थक चर्चा के माध्यम से ही ऐसी गम्भीर समस्याओं का समाधान ढूँढेंगे या नहीं।