मंदारगिरी पर्वत व महावीर का शांति संदेश का स्वर्णिम अवसर

Golden opportunity to share Mandargiri mountain and Mahavir's message of peace

विनोद कुमार सिंह

धन्य -धन्य है वह धरा,जहाँ अनगिनत संत-महापुरुष,ऋषि-मुनि और स्वयं भगवान के अवतार राम, कृष्ण, कबीर, तुलसी, नानक, बुद्ध और महावीर अवतरित होकर संपूर्ण सृष्टि और मानवता के कल्याण हेतु अमूल्य संदेश देते आए हैं।आज इसी कारण भारत को विविधता में एकता का प्रतीक माना जाता है।यहाँ हिंदू, मुस्लिम,सिख,ईसाई आदि सभी धर्मों के लोग भाईचारे के साथ शताब्दियों से एक साथ रहते आए हैं।इन्हीं संत परंपराओं में हजारों वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने संपूर्ण संसार को शांति,मैत्री और मानवता का उपदेश दिया।उन्होंने “अहिंसा परमो धर्म:” का शाश्वत संदेश दिया-जो आज भी संसार के लिए प्रासंगिक है।विगत दिनों मुझे रेलवे बोर्ड के दिलीप कुमार,ई.आई.डी.पी. के कुशल नेतृत्व में नेशनल मीडिया टीम के सदस्य के रूप में तीन दिवसीय यात्रा पर आईटी नगर,बेंगलुरु जाने का स्वर्णिम अवसर मिला।संयोग से यह यात्रा सावन पूर्णिमा,रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आरंभ हुई।बारिश के बीच हम दिल्ली एयरपोर्ट पहुँचे और हवाई मार्ग से बेंगलुरु पहुँचे तो शाम हो चुकी थी।वहाँ रेलवे के स्थानीय पीआर टीम ने हमारा हार्दिक स्वागत किया और कारों के काफिले में हमें गंतव्य तक पहुँचाया।रास्ते में हमने दक्षिण भारतीय व्यंजनों और स्पेशल कॉफी का आनंद लिया।अगले दिन के कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए जल्दी विश्राम किया।अगली सुबह प्रधानमंत्री द्वारा तीन वंदे भारत एक्सप्रेस और मेट्रो परियोजनाओं के उद्घाटन का मीडिया कवरेज किया।थकान के बावजूद हमारे टीम कुशल व कुशाग्र कप्तान दिलीप सर ने मुस्कुराते हुए कहा – “आप सभी अभी से थक गए? अभी तो हमें दर्शनीय स्थलों का आनंद लेना है।” हम सभी तैयार हो गए और कारवाँ एक रमणीय स्थल की ओर बढ़ा।

रास्ते में हमने सुंदर मंदिरों,प्राचीन शिल्पकृतियों और जीवंत कला कतियों की आकृति को पत्थरों में देखा।वहाँ से हम मंदारगिरी पर्वत की ओर बढ़े।रास्ते में मैंने दिलीप सर से पूछा- “हमारे ऋषि-मुनि,संत और देवी-देवता हमेशा कठिन पर्वतों और कंदराओं को अपनी तपोस्थली क्यों बनाते थे?” सर मुस्कुराए और बोले — “ताकि हम जैसे लोग उनकी साधना में व्यवधान न डालें।जब हम कठिनाई सहकर ऐसे स्थानों तक पहुँचते हैं,तभी हम उनके आशीर्वाद और दिव्यता का सही अनुभव कर पाते हैं।”

मंदारगिरी पर्वत पर पहुँचकर हमने पिंची आकार के 81 फुट ऊँचे गुरु मंदिर का दर्शन किया।यह मंदिर दिगंबर जैन तपस्वी श्री शांतिसागर जी महाराज को समर्पित है।पास ही चंद्रनाथ तीर्थंकर की भव्य प्रतिमा है, जो बाहुबली जैसी प्रतीत होती है।

वहाँ हमने एक अद्भुत दृश्य देखा — गाय और शेरनी एक घाट पर जल पी रहे थे,गाय का दूध शेरनी का शावक पी रहा था वही शेरनी का दूध गाय का बछड़ा।यह दृश्य भगवान महावीर के अहिंसाऔर सह- अस्तित्व के संदेश का जीवंत प्रमाण प्रतीत हो रहा था।पर्वत की चोटी तक पहुँचने के लिए लगभग 460 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।शिखर पर चार प्राचीन जैन मंदिर हैं,जिनमें से दो चंद्रनाथ और दो पार्श्वनाथ को समर्पित हैं।वहाँ की स्वच्छता,शांति और सुंदरता मन को मोह लेने वाली है।मंदिर परिसर के पीछे एक सुरम्य झील है,जो इस स्थल की आध्यात्मिकता को और भी गहरा कर देती है।हल्की फुहारें,पहाड़ी की मनोहारी, हरियाली और वातावरण में व्याप्त शांति-यह सब मिलकर ऐसा अनुभव कराते हैं मानो भगवान महावीर का आशीर्वाद हमें प्राप्त हो रहा हो।यात्रा के अंत में हमने स्थानीय रेस्टोरेंट में स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया और वापस बेंगलुरु लौट आए।हमारे लिए यह यात्रा केवल एक आध्यात्मिक अनुभव नहीं,बल्कि जीवन के मूल्यों,शांति, सह-अस्तित्व और परिश्रम के महत्व की गहरी सीख भी दे गई।