प्रो. नीलम महाजन सिंह
कहते हैं, मन में आस्था हो तो समय व दूरियाँ, हमारे मन में यादों को जागृत रखती हैं। अलविदा सर, पद्मभूषण कुंवर नटवर सिंह साहब! “मुझे सर क्यों बुला रही हो”? उस समय कुँवर नटवर सिंह, आई.एफ.एस. (16 मई 1929-10 अगस्त 2024) तक उप-राज्य मंत्री थे; जब मैंने उनसे भेंटवार्ता की। उन्होंने मुझे स्वयं अपनी पुस्तकें, हस्ताक्षरित कर भेंट कीं व मैं बहुत प्रसन्नचित्त हुई। हम दोनों, सेंट स्टीफेंस कॉलेज के विद्यार्थियों में से हैं। वास्तव में जो लोग बुद्धिजीवी, प्रोफेशनल्स व पब्लिक जन-जीवन में होते हैं, वे थोड़े गुस्सेल हो ही जाते हैं। मेरी नज़र नटवर सिंह के पैरों की ओर गई! उन्होंने गहरे हरे रंग के मौज़े (socks) पहने हुए थे। “क्या देख रही हो, सोक्स का रंग? मेरे पास लाल, पीले, रंग भी हैं। मैंने यूरोप में सभी रंगों का प्रयोग करना सीख लिया”। “अच्छे लग रहे हैं सर,” मैंने उनकी तारीफ की। वे उठे और अलमारी से एक डिब्बा निकाल लाए जिसमें ‘गुच्ची (Gucci) का पर्फ्यूम, स्कार्फ व ब्रोच था। उन्होंने बहुत प्रेम से मुझे भेंट किया। मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। कुँवर नटवर सिंह का बस चलता तो वे मुझे और बहुत कुछ देते। उसके उपरांत मैं उनसे संपर्क में रही। प्रधान मंत्री इंदिरा गांघी और क्यूबा के फीडल कास्ट्रो की मशहूर ‘जादू की झप्पी’; की नान अलाइंड मूवमेंट (NAM) की ‘दिल्ली कॉन्फ्रेंस’ के लिए नटवर सिंह का महत्वपूर्ण योगदान था। वे समग्र भारतीय राजनयिक व राजनीतिज्ञ थे। 2006 में कांग्रेस द्वारा निलंबित किए जाने के बाद, वे 2008 में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) में शामिल हो गए, लेकिन 4 महीने के भीतर उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। विदेश मंत्री कार्यकाल में, 22 मई 2004 – 6 दिसंबर 2005; 22 मई 2009 में वे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथी रहे। भरतपुर राज्य, ब्रिटिश भारत (वर्तमान राजस्थान) से नटवर सिंह का संबंध था। उनकी पत्नी हेमिंदर कौर व बच्चे जगत सिंह व रितु हैं। लेकिन रितु ने आत्महत्या कर ली थी।
उनका अल्मा मेटर; मेयो कॉलेज, अजमेर, सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली था। 1984 में, राजीव गांधी ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा और उन्होंने आई. एफ.एस. से इस्तीफा दिया। उन्होंने चुनाव जीता और 1989 तक केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में कार्यान्वयन किया। 2004 में भारत के विदेश मंत्री बनाए जाने तक उनका राजनीतिक करियर उतार चढ़ाव से भरा रहा। हालाँकि, 18 महीने बाद, उन्हें इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि, संयुक्त राष्ट्र की ‘वोल्कर समिति’ (Paul Volker Committee Report) ने उन्हें व कांग्रेस पार्टी, दोनों को ‘इराकी तेल घोटाले में अवैध भुगतान के लाभार्थियों’ के रूप में नामित किया व दोषी पाया था। 2014 में उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज़ नॉट इनफ़’ लिखी। इस किताब द्वारा सनसनी पैदा करने की कोशिश के लिए आलोचना की गई। जबकि कांग्रेस ने नटवर सिंह के राजनीतिक पद से हटाए जाने के कारण, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के लिए आलोचना की।
उनका अंतर्वस्तु प्रारंभिक जीवन व शिक्षा, बहुत प्रभावशाली थी। कुँवर साहब के पिता, गोविंद सिंह व माँ प्रयाग कौर के वे चौथे बेटे थे। नटवर सिंह का जन्म भरतपुर रियासत के शासक वंश से संबंधित एक कुलीन ‘जाट हिंदू परिवार’ में हुआ था। उन्होंने मेयो कॉलेज, अजमेर व सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में शिक्षा प्राप्त की, जो भारतीय राजघरानों व कुलीनों के लिए पारंपरिक शैक्षणिक संस्थान थे। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ‘कॉर्पस क्रिस्टी कॉलेज’ में अध्ययन किया व चीन में ‘पीकिंग विश्वविद्यालय’ में कुछ समय के लिए ‘विज़िटिंग स्कॉलर’ रहे। उनकी शुरुआती नियुक्तियों में से बीजिंग एक, चीन (1956-58) में थी। उसके बाद उन्हें भारत के स्थायी मिशन (1961-66) में न्यूयॉर्क शहर में व यूनिसेफ (UNICEF) के कार्यकारी बोर्ड में भारत के प्रतिनिधि (1962-66) के रूप में नियुक्त किया गया। अगस्त 1967 में, नटवर सिंह ने महाराजकुमारी हेमिंदर कौर (जन्म जून 1939) से विवाह किया, जो पटियाला राज्य के अंतिम महाराजा यदविंद्र सिंह की सबसे बड़ी बेटी थीं, जो वर्तमान में पटियाला महाराजा व पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बहन हैं। उन्होंने 1963-1966 के बीच कई संयुक्त राष्ट्र समितियों में काम किया। 1966 में उन्हें इंदिरा गांधी ने प्रधान मंत्री सचिवालय में तैनात किया। उन्होंने 1971 से 1973 तक पोलैंड में भारत के राजदूत, 1973 से 1977 तक इंग्लैंड में भारत के उप उच्चायुक्त व 1980 से 1982 तक पाकिस्तान में भारत के राजदूत का कार्य किया। वे 1975 में किंग्स्टन, जमैका में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। नटवर सिंह न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 30वें सत्र, 1979 में लुसाका, जाम्बिया में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक व न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 35वें सत्र में भारतीय प्रतिनिधि थे। वे 1982 में इंदिरा गांधी के साथ अमेरिका की राजकीय यात्रा पर भी गए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा छह साल (1981-86) के लिए नियुक्त संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण व अनुसंधान संस्थान (यू.एन.आई.टी.ए.आर.) में एक ‘कार्यकारी ट्रस्टी’ के रूप में कार्य किया। 1982 में लंदन में राष्ट्रमंडल महासचिव द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समूह में भी वे कार्यरत रहे। उन्हें 1983 में नई दिल्ली में आयोजित सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन का महासचिव और उसी वर्ष नई दिल्ली में राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक (CHOGM) का मुख्य समन्वयक (Chief Coordinator) नियुक्त किया गया। नटवर सिंह, मार्च 1982 से नवंबर 1984 तक विदेश मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्यरत थे। उन्हें 1984 में भारत सरकार से भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म भूषण’ मिला। 1984 में भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफा देने के बाद, नटवर सिंह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए व राजस्थान के भरतपुर निर्वाचन क्षेत्र से 8वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1985 में उन्हें राज्य मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई और उन्हें इस्पात, कोयला और खान तथा कृषि विभाग आवंटित किए गए। 1986 में वे विदेश मामलों के राज्य मंत्री बने। उस क्षमता में, उन्हें 1987 में न्यूयॉर्क में आयोजित ‘निरस्त्रीकरण और विकास’ पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 42वें सत्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया। 1991 के चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी सत्ता में लौटी, जब राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। तब पी.वी. नरसिम्हा राॅव प्रधानमंत्री बने। उनके प्रधानमंत्री के साथ मतभेद विकसित हुए। एन.डी. तिवारी व अर्जुन सिंह के साथ पार्टी छोड़ दी, तथा एक नई राजनीतिक पार्टी, ‘अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस’ का गठन किया। 1998 में, जब सोनिया गांधी ने पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया, तो परिवार के तीनों वफादारों ने अपनी नई पार्टी का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया व कांग्रेस में लौट आए। नटवर सिंह को 1998 के आम चुनावों में लड़ने के लिए टिकट से पुरस्कृत किया गया और नौ साल के अंतराल के बाद वे भरतपुर से 12वीं लोकसभा (1998-99) के लिए चुने गए व संसद में लौटे। नटवर सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के डॉ. दिगंबर सिंह को हराया था।
तीन साल के अंतराल के बाद वे 2002 में राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुने गए। 2004 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापस आई और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने नटवर सिंह को विदेश मंत्री नियुक्त किया। ‘खाद्यान्न के बदले तेल घोटाला’ (Food For Oil Coupons); में नटवर सिंह का नाम आया, व ‘इंडिया टुडे’ की कवॅर स्टोरी बनी। इससे उनका राजनीतिक जीवन समाप्त हो गया था। 27 अक्टूबर 2005 को, जब सिंह आधिकारिक यात्रा पर विदेश में थे, पॉल वोल्कर की अध्यक्षता वाली स्वतंत्र जांच समिति ने ‘तेल के बदले भोजन कार्यक्रम’ में भ्रष्टाचार की अपनी जांच पर रिपोर्ट जारी की। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ कहा गया कि “भारत की कांग्रेस पार्टी व नटवर सिंह का परिवार ‘तेल के बदले भोजन कार्यक्रम’ के गैर-अनुबंधित (भ्रष्ट) लाभार्थी थे”। क्रोएशिया में तत्कालीन भारतीय राजदूत व पूर्व में के. नटवर सिंह के करीबी, अनिल मथरानी ने आरोप लगाया कि नटवर सिंह ने सद्दाम हुसैन के शासनकाल में, अपने बेटे जगत सिंह के लिए ‘तेल कूपन’ हासिल करने के लिए इराक की आधिकारिक यात्रा का इस्तेमाल किया था। अनिल मथरानी के इस ब्यान ने नटवर सिंह की प्रतिष्ठा को दागदार किया। अनिल मथरानी की भेंटवार्ता की ‘ऑडियो-वीडियो रेकॉर्डिंग’ सभी चैनलों और समाचार पत्रों में हेडलाइन थी। 26 मार्च 2006 को, भारतीय प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने घोषणा की, कि उसने आखिरकार अस्सी मिलियन रुपये की राशि का पता लगा लिया है, जिसे लंदन स्थित अनिवासी भारतीय व्यवसायी; ‘आदित्य खन्ना के बैंक खाते से दिल्ली के एक बैंक में उसके अपने एन.आर.आई. खाते में स्थानांतरित किया गया था’।
बाद में इस खाते से निकाल कर कथित तौर पर घोटाले के भारतीय लाभार्थियों के बीच वितरित किया गया था। नटवर सिंह को 2006 में कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था। फरवरी 2008 में, उन्होंने जयपुर में आयोजित ‘जाट समुदाय की भारतीय जनता पार्टी’ द्वारा प्रायोजित रैली में कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की, जिसमें राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मौजूद थीं। इस अवसर पर, नटवर सिंह ने न केवल अपनी बेगुनाही का दावा किया, बल्कि सोनिया गांधी पर उनका बचाव ना करने या उनका समर्थन करने में विफल रहने का आरोप भी लगाया। 2008 के मध्य में, नटवर सिंह व उनके बेटे जगत सिंह, दोनों मायावती की बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए, लेकिन चार महीने के भीतर (नवंबर 2008 में) कथित अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी गतिविधियों व बहुजन समाज आंदोलन की विचारधारा में ‘विश्वास की कमी’ के कारण पार्टी द्वारा निष्कासित कर दिये गये। वास्तव में नटवर सिंह, राज्यसभा सीट की मांग कर रहे थे (जिसका वादा जाहिर तौर पर पार्टी में शामिल होने से पहले किया गया होगा?) परन्तु सुश्री मायावती ने उस मामले पर अपना विचार बदल दिया था। जगत सिंह बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में भी शामिल हो गए। अगस्त 2014 में, नटवर सिंह की आत्मकथा, ‘वन लाइफ इज़ नॉट इनफ’ जारी की गई थी। पुस्तक इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के शासन के दौरान हुए, घटनाक्रमों को उजागर करने का दावा करती है। इसमें पिछले कुछ वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ नटवर सिंह के करीबी लेकिन जटिल राजनीतिक संबंधों की बदलती रूपरेखा का भी वर्णन है। पुस्तक में नटवर सिंह द्वारा ‘वोल्कर रिपोर्ट और उनके इस्तीफे’ की पृष्ठभूमि में हुए विभिन्न राजनीतिक प्रस्तावों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। कांग्रेस ने नटवर सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया और उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है और “निराधार बातें प्रकाशित की हैं”। उन्होंने कहा कि “किताब की बिक्री बढ़ाने के लिए इस तरह की सनसनी फैलाना” स्वीकार नहीं किया जाएगा।
सोनिया गांधी ने भी किताब पर प्रतिक्रिया दी और इसकी विषय-वस्तु को खारिज कर दिया। उन्होंने सच्चाई को उजागर करने के लिए अपनी आत्मकथा लिखने की मंशा भी जताई। अमर उजाला के लिए लिखते हुए, कल्लोल चक्रवर्ती ने कहा कि एकतरफा कथा से भरी यह किताब कुछ समय के लिए सनसनी पैदा कर सकती है, लेकिन लंबे समय में यह ऊंचाइयों को हासिल नहीं कर सकती। ‘ई.एम.फोर्स्टर: एक श्रद्धांजलि’ (फोर्स्टर के 85वें जन्मदिन पर), संपादक अहमद अली, नारायण मेनन, राजा राव व संथा रामा राव के योगदान के साथ, प्रकाशित हुई। ‘लिगेसी ऑफ नेहरू: एक स्मारक श्रद्धांजलि’, ‘आधुनिक भारत की कहानियाँ’, ‘महाराजा सूरजमल, 1707-63: उनका जीवन और समय’, (Curtain Raisers) ‘कर्टेन रेजर्स’, ‘पटियाला के महान महाराजा भूपिंदर सिंह (1891-1938)’, ‘हार्ट टू हार्ट’, ‘वॉकिंग विद लायन्स: टेल्स फ्रॉम अ डिप्लोमैटिक पोस्ट’, को पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा मार्च 2013 में जारी किया गया। सच तो यह है कि कुँवर नटवर सिंह, एक प्रशंसनीय कूटनीतिज्ञ व राजनेता थे। शायद वे एक विशेष व्यक्ती थे जो सोनिया गांधी को ‘सोनिया’ पुकारने के लिए अधिकृत थे। परंतु पिछले दो दशकों से कुँवर नटवर सिंह को राजनीतिक अज्ञातवास ने त्रासद किया। उनकी मृत्यु भारतीय विदेश सेवा, राजनीति व साहित्यिक वर्ग के लिए अपूर्णीय क्षति है!
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर, परोपकारक)