अभी भी खुद को भगवान मानते हैं सरकारी बाबू

आर.के. सिन्हा

सरदार वल्लभभाई पटेल के 21 अप्रैल, 1947 को दिल्ली के मैटकॉफ हाउस में दिए भाषण को कुत्ता प्रेमी आईएएस अफसर संजीव खिरवार और उनकी आईएएस अफसर पत्नी रिंकू डुग्गा ने यदि पढ़ा होता तो वे मनुष्य बने रहते। वे सरकार और जनता के बीच सेतु के रूप में निष्ठापूर्वक काम कर रहे होते। पर उन्होंने निश्चित रूप से सरदार पटेल के उस बेहद अहम भाषण को जाना-समझा नहीं होगा। सरदार पटेल ने आजाद होने जा रहे भारत के पहले बैच के आईएएस और आईपीएस अफसरों को संबोधित करते हुए कहा था कि “उन्हें स्वतंत्र भारत में जनता के सवालों को लेकर गंभीरता और सहानुभूति का भाव रखना होगा।” सरदार पटेल ने बाबुओं को स्वराज और सुराज का भी अंतर बताया था। पर संजीव खिरवार ने उस संदेश पर अमल करने की चेष्टा ही नहीं की। संजीव खिरवार और उनकी पत्नी रिंकू डुग्गा के राजधानी के त्यागराज स्टेडियम में अपने पिल्ले को टहलाने के लिए वहां पर प्रेक्टिस करने वाले दर्जनों खिलाड़ियों और कोच को स्टेडियम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता था। उनके इस अक्षम्य अपराध का उन्हें और उनकी पत्नी को अब सरकारी ‘प्रसाद’ मिल गया है। दोनों की दिल्ली से बाहर ट्रांसफर कर दिया है। पर एक्शन उन अफसरों पर भी होना चाहिए जो इनकी मदद करते थे, ताकि वे इतने विशाल स्टेडियम में अकेले घूमते रहे। क्या संजीव खिरवार और उनकी पत्नी ने अपने को किसी राज्य का राजा समझ रखा था? बुरा मत मानिए, कुछ आईएएस तथा आईपीएस अफसर अपने को खुदा मानने लगते हैं। इन्हें सिर पर भी चढ़ा कर रखा जाता है। इन्हें महलनुमा भव्य बंगले दिए जाते हैं रहने के लिए। मैंने हाल ही में मेरठ तथा आगरा में जिलाधिकारी आवासों को बाहर से देखा। उन्हें देखकर समझ आ रहा था कि ये कई-कई एकड़ में फैले हुए हैं। क्या ये इन्हें मिलने चाहिए ? या यह इनके काम करने के लिए ज़रूरी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2015 में आईएएस अधिकारियों से कहा था कि वे निर्णय करते समय गरीब से गरीब व्यक्तियों के कल्याण को ध्यान में रखें क्योंकि वे ‘सेवा’ में हैं, ‘नौकरी’ में नहीं।

संजीव खिरवार के केस ने तूल पकड़ा तो गृह मंत्रालय ने उन्हें और उनकी पत्नी को दिल्ली से तत्काल प्रभाव से स्थानांतरित कर दिया है। खिरवार दिल्ली के राजस्व आयुक्त थे। वह दिल्ली के पर्यावरण विभाग के सचिव भी थे। संजीव खिरवार किस मुंह से स्टेडियम को खाली करवाते थे, ताकि वह अपने कुत्ते को टहला सकें। उन पर आरोप था कि वे और उनकी पत्नी कुत्ते को एथलेटिक्स ट्रैक पर ले जाते थे और उनकी वजह से खिलाड़ियों को शाम 6:45 बजे तक स्टेडियम खाली करने के लिए कहा जाता था। कुछ कोच ने बताया कि उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि उस समय तक स्टेडियम खाली कर दिया जाना चाहिए। ये ताजा केस तब हुआ जब देश झारखंड सरकार की खनन सचिव पूजा सिंघल के घोटालों के किस्सों को सुन ही रहा था। उन्हें पिछले दिनों मनरेगा घोटाले में गिरफ्तार कर लिया गया हैं। अब तक की जांच में पूजा सिंघल व उनके पति अभिषेक झा को प्रथम दृष्टया मनी लाउंड्रिंग मामले में संलिप्त पाया गया है।

इस बीच, खिरवार और उनकी पत्नी के अनैतिक आचरण ने मध्यप्रदेश कैडर के दो आईएएस अरविंद जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी की हरकतों की याद दिलवा दी। ये 2011 में सुर्खियों में आये थे। जब आयकर विभाग ने भोपाल स्थित इनके घर पर छापा मारा था। छापे में तीन करोड़ रूपये नकद और करोड़ों की संपत्ति के दस्तावेज बरामद हुए थे। दोनों को राज्य सरकार ने बर्खास्त कर दिया था। उनके पास से 350 करोड़ रूपये की बेनामी संपत्ति भी मिली थी।

बेशक, संजीव खिरवार और उनकी पत्नी का केस मीडिया की बेखौफ रिपोर्टिंग के कारण सबके सामने आया। सवाल ये है कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार जो सुशासन देने के तमाम बड़े-बड़े दावे करती है, उसे पता ही नहीं चला कि उसका इतना बड़ा अफसर इतने नीच कृत्य में लिप्त है। जब मामला प्रकाश में आया तो अरविंद केजरीवाल ने घोषणा कर दी कि राष्ट्रीय राजधानी में सभी राज्य द्वारा संचालित खेल सुविधाओं को रात 10 बजे तक खिलाड़ियों के लिए खुला रखा जाएगा।

बहरहाल, एक बात सरकारी बाबुओं को समझनी होगी कि उन्हें निरंकुश होने का अधिकार किसी ने नहीं दिया है। कुछ आईएएस अफसर ड्यूटी पर रहते हुए मर्यादित भाषा तक बोलना भूल जाते हैं। आपको याद होगा कि कोरोना काल के समय त्रिपुरा के एक जिलाधिकारी शैलेश कुमार यादव ने कोरोना गाइडलाइन का पालन नहीं करने पर दो मैरिज हॉल को सील करने से पहले वहां पर हो रहे विवाह समारोह के दौरान ही जाकर जमकर गाली-गलौच की। शैलेश यादव ने शादी समारोह में शामिल लोगों को गालिया दीं और विवाह कराने आए पंडित जी की भी कसकर पिटाई तक कर दी थी। वे यह सब थोड़ा मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हुए भी कर सकते थे। देखिए बात यहां पर किसी खास आईएएस अधिकरी की ही नहीं हो रही है। सरकारी बाबुओं को नीचे से ऊपर तक अपने कामकाज तथा व्यवहार में सुधार करना होगा। ये बदलते दौर के साथ अपने को ढाल नहीं पा रहे हैं। इन्हें समझना होगा कि नेताओं की तरह से ये भी जनता के सेवक हैं।

आईएएस, आईपीएस या आईएफएस अधिकारी बनने से ज्यादा अहम यह है कि ये अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वाह करें। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों को अपने छोटे-बड़े बाबुओं के कामकाज पर पैनी नजर रखनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बाबू अनैतिक हरकतों में ना फंसे। कामचोर तथा करप्ट अफसरों पर तो फौरन चाबुक चले। पर, ये भी देख लिया जाए कि ईमानदार तथा मेहनती अफसरों को पुरस्कृत करने में देरी ना हो। उन अफसरों को दंड स्वरूप बार-बार ट्रांसफर ना किया जाए जो करप्ट नेताओं के आगे झुकते नहीं हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)