सुरेश हिंदुस्तानी
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले कई महीनों से चली आ रही राजनीतिक उथल-पुथल भले ही इमरान खान की सत्ता जाने के बाद समाप्त होती दिखाई दे रही है, लेकिन विश्व का कोई भी राजनीतिक चिंतक इस बात को दावे के साथ कहने की स्थिति में नहीं है कि पाकिस्तान राजनीतिक भंवर से बाहर निकलने में सफल हो गया है। इसका मूल कारण यही माना जा रहा है कि इमरान को सत्ता से हटाने के लिए पाकिस्तान के विपक्षी राजनीतिक दल जिस प्रकार से लामबंद हुए, वह समय के हिसाब से अनुकूल कहे जा सकते हैं, लेकिन यह लम्बे समय तक राजनीतिक पिच पर जमे रहेंगे, इस बात की संभावना बहुत कम है। क्योंकि नई सरकार में जो दल शामिल रहेंगे, वह पहले से ही एक दूसरे के विरोध में राजनीतिक अखाड़े में उतर चुके हैं। इमरान खान की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी अगर कोई रही है तो वह उसके अपने साथियों द्वारा साथ छोड़ देना ही है। इमरान खान की सत्ता जाते ही यह एक बार फिर प्रमाणित हो गया कि पाकिस्तान अपने बनाए हुए रास्ते पर पूरी तरह से कायम है। पाकिस्तान के इतिहास में आज तक कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं रहा, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। इमरान खान से यह उम्मीद की जा रही थी, लेकिन उसे भी विपक्ष ने एकता स्थापित करके राजनीतिक मैदान से आउट करके इतिहास को कायम रखा है।
पाकिस्तान की संसद में जब इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ और उन्हें पराजय मिली। इस तरह इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। पाकिस्तान का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इमरान खान के कार्यकाल में पाकिस्तान आर्थिक रूप से कंगाल हो गया है, महंगाई अपने चरम पर है। हालांकि ऐसी स्थितियों में इमरान खान के अलावा कोई भी शासक होता तो उसके सामने भी ऐसी ही स्थितियां निर्मित होती, लेकिन चूंकि ठीकरा इमरान के सिर ही फूटना था, जो फूट भी गया है। पाकिस्तान के शासकों की सबसे बड़ी विसंगति यह है कि विश्व के कई देश पाकिस्तान से आतंकी सरगनाओं के लिए कठोर कार्यवाही की अपेक्षा रखते हैं। ऐसी कार्यवाही न होने के कारण पाकिस्तान को भारी खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। इसके कारण एफएटीएफ ने उसे ग्रे सूची में डाल दिया है, अब उस पर काली सूची में आने का खतरा भी मंडरा रहा है। यह खतरा इसलिए भी अधिक है, क्योंकि सरकार चाहते हुए भी आतंकियों के विरोध में उतना बड़ा कदम नहीं उठा सकती, जितने की अपेक्षा की जा रही है। उसके पीछे कारण यही है कि पाकिस्तान में शरण लिए आतंकी सरगना का बहुत बड़ा जाल है, जो किसी न किसी रूप में सरकार को भी नियंत्रित करने की हैसियत रखता है। दूसरा बड़ा कारण यह है कि वहां की सेना आतंकियों के साथ खड़ी हुई दिखाई देती है। पाकिस्तान की वास्तविकता यही है कि वहां की सरकार सेना और आतंकियों के समर्थन के बिना चल ही नहीं सकती।
पाकिस्तान की खराब स्थिति के बारे में यह तर्क दिया जा रहा है कि इमरान खान के प्रधानमंत्रित्व काल में गलत नीतियों पर चलते हुए न केवल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को डुबो दिया, बल्कि विदेशी कर्ज का बोझ भी रिकॉर्ड स्तर पर तक बढ़ा दिया। उन्होंने कई देशों के साथ पाकिस्तान के रिश्ते भी बिगाड़ दिए जिनमें वे देश भी शामिल हैं जिनकी मदद के बिना पाकिस्तान एक कदम भी नहीं चल सकता। यही सब इमरान खान की समय से पहले सत्ता से बेदखली का कारण बना। अब पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद पर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ की ताजपोशी की तैयारियां चल रही हैं। चूंकि पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन और पूर्व में भारत के बीच स्थित पाकिस्तान रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण देश है इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि पाकिस्तान की राजनीति में हो रहे इस बदलाव का क्या दुनिया पर भी कोई असर पड़ेगा? साल 2018 में जब इमरान खान पाकिस्तान की सत्ता में आए तभी से उन्होंने अमेरिका के खिलाफ निराशा से भरा रवैया अपनाया जबकि चीन को काफी महत्व दिया। पिछले दिनों इमरान खान ने रूस के साथ भी नजदीकियां बढ़ाईं और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात भी की। हालांकि विदेश मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान में सेना ज्यादा शक्तिशाली है जो कि पाकिस्तान की विदेश और रक्षा नीति को नियंत्रित करती है। ऐसे में पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता का दूसरे देशों पर प्रभाव बहुत सीमित ही पड़ेगा। फिर भी इन देशों को लेकर पाकिस्तान की नीति को समझना जरूरी है। परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान ने 1947 में आजादी के बाद से तीन युद्ध लड़े और हर बार भारत से मुंह की खाई। जब इमरान खान की सरकार पाकिस्तान में आई तब से दोनों देशों के बीच कई सालों से कोई औपचारिक राजनयिक वार्ता भी नहीं हुई। इसकी एक वजह ये भी है कि इमरान खान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हमेशा आलोचना करते रहे, लेकिन अब माना जा रहा है कि पाकिस्तान में बनने जा रही नई सरकार पर वहां की सेना कश्मीर में सफल सीजफायर को लेकर दबाव डाल सकती है।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने हाल ही में कहा भी था कि अगर भारत सहमत होता है तो उनका देश कश्मीर पर बातचीत के लिए आगे बढ़ने को तैयार है। उधर अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है। जिसके साथ भी पाकिस्तान के संबंध कमजोर हो गए हैं। पाक सेना और तालिबान के बीच तनाव है क्योंकि पाक ने अपनी सीमा पर अपने कई सैनिक खोए हैं। इसलिए पाकिस्तान चाहता है कि इन चरमपंथियों पर नकेल कसना बहुत जरूरी है, क्योंकि ये आगे चलकर पाकिस्तान में तबाही जरूर मचाएंगे। हालांकि पाकिस्तान अगर भारत के साथ अशांति बढ़ाता है तो इसका प्रभाव अमेरिका पर पड़ सकता है। इसके अलावा जानकार ये भी मानते हैं कि पाकिस्तान में अगर नई सरकार बनती है तो उसके अमेरिका से रिश्ते सुधर सकते हैं। इमरान खान अपने कार्यकाल के दौरान अमेरिका को छोड़कर चीन के साथ पाकिस्तान के संबंधों पर बहुत जोर देते रहे और उन्होंने कई बार दुनिया में चीन की सकारात्मक भूमिका पर भी जोर दिया। ऐसे में जब पाकिस्तान में सरकार बदलेगी, तो उसका चीन के प्रति रवैया दुनिया भर के लिए एक बड़ी खबर बनेगा।