नोटबंदी वाली गलती ‘खरपतवारनाशी’ में भी दोहरा रही सरकार : डॉ राजाराम त्रिपाठी

  • डॉ त्रिपाठी का सरकार से सवाल : ना पीसीओ है ना एफपीओ कहां से खरपतवार नाशक खरीदें किसान ?
  • “आईफा” ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को लिखा पत्र एवं तत्काल कार्यवाही की की मांग,
  • खरपतवार नाशी “ग्लाइफोसेट” को लेकर सरकार की पक्षपाती नीति की पुनर्समीक्षा जरूरी
  • खरपतवार नाशक खरीदने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई तत्काल रोके सरकार, कार्यवाही करना है तो कंपनियों के खिलाफ करें कार्यवाही : डॉ त्रिपाठी
  • पहले किसानों को सुरक्षित प्रभावी, जैविक खरपतवार नाशी वह जरूरी उत्पाद उपलब्ध कराएं सरकार ,फिर उत्पादों की बिक्री में मनमर्जी कानून लाएं,
  • किसानों पर कार्रवाई चिंता का विषय, किसान संगठन इसे लेकर खामोश नहीं बैठने वाले :आईफा

रविवार दिल्ली नेटवर्क

सरकार ने हाल में ‘ग्लाइफोसेट’ नामक खरपतवार नाशक उत्पाद की बिक्री केवल पीसीओ/एफपीओ के माध्यम द्वारा किया जाना तय किया है। जिस तरह बिना पर्याप्त तैयारी के नोटबंदी लागू की गई और पूरे देश को उसकी सजा भुगतनी पड़ी, उसी तरह बिना पर्याप्त संख्या में एफपीओ एवं पीसीओ की व्यवस्था किए बिना ही, और इस उत्पाद का कोई समकक्ष प्रभावी एवं सुरक्षित विकल्प किसानों को मुहैया कराए बिना ही इसे लागू भी कर दिया गया है ।

इससे अगली फसल की तैयारी में लगे देश के बहुसंख्य किसानों को कई परेशानियां का सामना करना पड़ रहा है। इसे खरीदने वाले किसानों को कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है, यह बेहद गंभीर बात है। पिछले सप्ताह “अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)” के किसान संगठनों की समन्वय समिति में इस मामले पर चर्चा हुई और सरकार की इस कार्रवाई को उचित नहीं पाया गया। इस संदर्भ में आइफा को ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने कुछ खास लोगों, संस्थाओं, कंपनियों को उपकृत व लाभान्वित करने की दृष्टिकोण से यह नीति लागू की है। सरकार भली-भांति जानती है की ग्लाइफोसेट एक ऐसा मुख्य खरपतवार नासी है जिसका देश के किसान बड़ी मात्रा में पिछले कुछ वर्षों से लगातार प्रयोग कर रहे हैं। इससे खेती के अनावश्यक खरपतवारों निकालने में लगने वाले श्रम लागत तथा समय दोनों की उन्हें बचत होती है। कंपनियां दावा भी करती है कि यह उत्पाद पूरी तरह से निरापद असुरक्षित भी है, पर यह सब तो सरकार की जांच और कार्यवाही का विषय है। इसमें किसान बेचारे क्या कर सकते हैं। अब यकायक सरकार कहती है कि किसानों को यह उत्पाद केवल एफपीओ/पीसीओ के माध्यम से ही बिकेंगे, जबकि देश में पर्याप्त मात्रा में एफपीओ/पीसीओ हैं ही नहीं,और ऐसा लगता है कि अभी भी इसमें कई वर्ष लग जाएंगे।

हमारे किसान पहले से ही खेती में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, सरकार की ऐसी कार्रवाई से केवल किसानों का उत्पीड़न बढ़ रहा है। मानव श्रम के जरिए खरपतवार नियंत्रण की लागत बहुत ज्यादा आती है। इसलिए किसानों को प्रभावी खरपतवार नियंत्रक न मिल पाने की दशा में उत्पादन लागत में काफी वृद्धि होगी। किसानों का जमीनी अनुभव है कि इस उत्पाद का कोई समकक्ष प्रभावी तथा ज्यादा सुरक्षित विकल्प अभी तक बाजार में उपलब्ध नहीं है। यह वास्तव में बड़ी शोचनीय दशा है। भारत सरकार, हमारे वैज्ञानिकों को तथा उद्योगपतियों को इस दिशा में तत्काल कार्य करते हुए ऐसे जरूरी उत्पाद का शत प्रतिशत सुरक्षित, प्रभावी तथा जैविक विकल्प किसानों को प्रदान करना बेहद जरूरी है।

हमें खबरें मिल रही है कि कई राज्यों में इस उत्पाद को खरीदने वाले किसानों को कानून के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है, यह किसान संगठनों के लिए बड़ी चिंता का विषय है, और आईफा इसे लेकर खामोश नहीं बैठने वालीI डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि आज ही आईफा ने देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को इस समस्या के बारे में अवगत कराते हुए एक पत्र लिखा है तथा इस पर शीघ्र कार्यवाही करने की मांग की है।

इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारा स्पष्ट रूप से मानना है कि, जब तक सरकार किसानों के लिए इस उत्पाद का अन्य कोई समकक्ष प्रभावी तथा ज्यादा सुरक्षित विकल्प नहीं तलाश लेती, तब तक सरकार उत्पाद की जरुरी वह नियंतो बिक्री को पूर्ववत पद्धति से ही जारी रखे I ग्लाइफोसेट से संबंधित सरकार की किसी भी चिंता के बारे में हमारी राय है कि इसके बारे में किसानों को समझाने तथा जागरूक करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। हम सरकार से वादा करते हैं कि इस सकारात्मक कार्य में हमारे किसान संगठन भी कंधे से कंधा मिलाकर सरकार का साथ देने के लिए तैयार हैं। लेकिन जब तक इस उत्पाद का कोई अन्य सुरक्षित प्रभावी विकल्प नहीं मिल जाता तथा इसके विक्रय हेतु हर किसान की पहुंच में पीसीओ/एफपीओ आदि व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो पाती तब तक के लिए पूर्व व्यवस्था को ही जारी रखा जाए।

सरकार इस बात को समझना होगा कि किसी उत्पाद को लेकर अगर सरकार को किसी भी प्रकार की शंका है तो उसकी विधिवत हर तरह की जांच की जानी चाहिए और यदि किसी उत्पाद को लेकर कोई कार्यवाही की जानी है तो वह तत्संबंधी कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही करे। ऐसे कार्यों में किसान की सरकार को भरपूर सहयोग देंगे। लेकिन रासायनिक खाद बीज दवाई के उद्योगों के किन्ही कृत्यों के लिए हमारे इन निर्दोष किसानों को दण्डित करना कतई उपयुक्त नहीं होगा।