धर्म/जाति/समुदाय परिवर्तन के लिए सरकार को नियम कायदे बनाना चाहिए

अरुण कुमार चौबे

धर्म/जाति परिवर्तन के लिए सरकार को देश के प्रत्येक राज्य के शासन और जिला प्रशासन के पास आवेदन की प्रक्रिया होना चाहिए। इसके लिए धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को शासन/प्रशासन के समक्ष आवेदन की सशुल्क प्रक्रिया होना चाहिए। लिखित में आवेदन पर समस्त व्यक्तिगत जानकारी के साथ ही आधार कार्ड, वोटर कार्ड यदि पेन कार्ड और पासपोर्ट है तो उसके साथ आवेदन की प्रक्रिया होना चाहिए। जिसमें आवेदक का पुलिस वेरिफिकेशन दो दैनिक समाचार पत्रों में और दो स्थानीय समाचार पत्रों में जाहिर सूचना के साथ ही नोटरी के स्टांप पेपर पर विस्तृत रूप से उल्लेखित होना चाहिए कि व्यक्ति क्यों धर्म/जाति परिर्वतन करना चाहता है।

लिखित तौर पर सहमति पत्र आदि कम से कम दो हजार रुपए के स्टांप पर लिखा होना चाहिए कि वह स्वयं क्यों और किन कारणों से धर्म/जाति परिवर्तन कर रहा है।

इसके लिए जितने भी व्यक्तियों ने किसी भी एक माह की अवधि के दौरान धर्म/जाति परिवर्तन किया उनके नाम और पतों के साथ शासन/जिला प्रशासन को विविध दैनिक समाचार पत्रों और स्थानीय समाचार पत्रों में भी अपनी और से एक अधिसूचना जारी करना चाहिए कि इन व्यक्तियों के द्वारा धर्म/जाति परिवर्तन के लिए आवेदन किया गया है। यादि किसी भी बैंक/वित्तीय संस्था, पुलिस विभाग के साथ ही आयकर राजस्व विभाग सहित किसी को भी यदि धर्म /जाति परिवर्तन पर आपत्ति हो तो इसके लिए तीन माह के भीतर सूचना दी जा सकती है। यदि कहीं भी कोई आपत्ति नहीं है तो इन्हें परवर्तित धर्म/जाति के आधार पर ही जाना पहचाना जावे साथ धर्म/जाति परिवर्तन करें वालों को लिखित तौर पर यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि वो जन्म से लेकर किस अवधि तक किस धर्म/जाति के नाम से जाने जाते रहे हैं और वर्तमान में कब परिवर्तित धर्म और जाति के नाम से जाने जाते हैं। साथ विविध जाति समुदाय जैसे चर्च,मस्जिद वक्फ बोर्ड के लिए भी अनिवार्यता होना चाहिए कि कितने लोग उनका धर्म/जाति छोड़ कर सदा के लिए किसी भी अन्य धर्म/जाति में सम्मिलित हो गए हैं और कितने लोग अन्य धर्म/जाति छोड़कर उनके धर्म/जाति/समुदाय में सम्मिलित हुए हैं।

कोई यदि किसी भी पंथ में सन्यास/, दीक्षा लेकर सम्मिलित होता है तो उसके लिए भी समाज/जाति/धर्म/समुदाय/चर्च मंदिर/मस्जिद/गुरुद्वारा आदि के लिए शासकीय रूप से अनिवार्य लिखित प्रक्रिया होना चाहिए। सभी को अपने धर्म/जाति समुदाय का लिखित रिकार्ड रखने की अनिवार्यता होना चाहिए। साथ ही कोई भी व्यक्ति अबोध अवस्था बचपन से अथवा युवा अवस्था में या किसी भी आयु में सन्यास/दीक्षा ग्रहण करता है और यदि वैवाहिक/पारिवारिक/सामाजिक/सांसारिक जीवन जीना चाहता है तो उसके लिए वह पुलिस और प्रशासन के समक्ष किसी भी प्रकार से सूचित कर सकता है। अभी तक धर्म/जाती/समुदाय परिवर्तन पर “मार-मार के मुसलमान बनाना” वाली युक्ति चरितार्थ होती चली आ रही है, अर्थात लोभ,लालच,प्रलोभन,मानसिक दबाव, मानसिक शारीरिक और सामाजिक प्रताड़ना के कारण से अथवा कोई भी अपराध या किसी भी प्रकार ऋण और विविध कारणों से जो जाहिर नहीं किए गए हैं। किसी न्यायायिक और पुलिस में दर्ज अपराध से बचने के लिए जाति/धर्म/समुदाय का परिवर्तन करके अपनी व्यक्तिगत और सामाजिक जानकारी जानबूझ कर छुपा कर किसी भी जाति/धर्म/समुदाय में सम्मिलित हो जाते हैं। अपनी पहचान छुपा कर कोई भी व्यक्ति हमेशा के लिए नहीं बच सकता है कभी न कभी पकड़ में आता है और पुलिस की कड़ी पूछताछ में सारी असलियत जगजाहिर हो जाती है। किसी भी बालिग/नाबालिग लड़की या किसी भी महिला को भ्रमजाल में उलझा लेना और उससे विवाह करना या विवाह के नाम पर झांसा देने जैसे प्रकरण रोज ही देखे सुने और पढ़े जाते हैं। जिनमें कुछ भी नहीं किया जा सकता है। इसी में हत्या/आत्महत्या जैसी घटनाएं होती हैं।

यादि कोई भी बाल्यावस्था से या युवा अवस्था से सन्यास/दीक्षा लेकर अविवाहित रहता/रहती है और वह अपनी शारीरिक वासनाओं के वशीभूत हो जाता है तब दुष्कर्म जैसी घटनाएं होती हैं। अतः यदि कोई भी ऐसा व्यक्ति अपना चोला त्यागकर वैवाहिक और पारिवारिक जीवन जीना चाहता है तो उसे भी स्वतंत्रता होना चाहिए सांसारिक जीवन जीना पाप नहीं है, परंतु किसी भी प्रकार के वैराग्य में रहकर भूखा भेड़िया बना रहना और मौका पाते ही दुष्कर्म कर बैठना पाप और जघन्य अपराध है।

चाहे कोई भी पंथ हो उसे अपने सभी प्रकार के नियम कायदों को लिखित रिकार्ड ऑनलाइन और रजिस्टर में फोटो सहित दर्ज करके शासन/प्रशासन के संज्ञान में रखने की अनिवार्यता होना चाहिए।

आरोप प्रत्यारोप राजनीतिक बहस और सामाजिक बहस बहिष्कार या कारावास फांसी जैसे दंड भी जाति/धर्म/समुदाय की समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि इसके लिए सरकार को नियम कायदे बनाना और उसके दायरे में प्रत्येक नागरिक को रखना अनिवार्य है।

दलबदल तो व्यक्तिगत राजनीतिक वर्चस्व को बनाए रखने और राजनीति के सफेदपोश व्यवसाय में अपने आपको प्रासंगिक रखने के लिए होता है जिसमें दलबदल करने वाला खुद अपनी कुंडली बता देता है और उसकी कुंडली सभी प्रकार के प्रसार माध्यमों के पास रहती है।

जबकि धर्म/जाति/समुदाय का परिर्वतन अपने आपको छुपाने के लिए किए किया जाता है ताकि सामाजिक और सार्वजनिक तौर पर कोई भी नहीं जान से कि अमुक व्यक्ति क्या था/थी और वर्तमान में क्या है?

इसके दलगत मानसिकता से ऊपर उठकर कानून कायदा बनाने की जरूरत है। इस युग में कुछ भी गलत है वो शत प्रतिशत तो नहीं मिट सकता है, कुछ हद तक इसे नियंत्रित जरूर किया जा सकता है।

जाति/धर्म/समुदाय का परिवर्तन सार्वजनिक तौर पर बच निकलने के लिए सकरी गली का सबसे आसान और सरल रास्ता है।