विकसित होती तकनीकी से बढ़ती अपेक्षाएं

शिशिर शुक्ला

विज्ञान एवं तकनीकी निरंतर जिस द्रुत गति से विकास के दीर्घतर आयामों को स्पर्श कर रही हैं, उसी गति से मानव की अपेक्षाएं भी अपना दायरा बढ़ाती जा रही हैं। हाल ही की एक रिपोर्ट यह कहती है कि विश्व के अमीर व्यक्तियों में मृत्यु के बाद पुनः जीवित होने की चाहत बढ़ती जा रही है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि अमेरिका, रूस, जर्मनी एवं आस्ट्रेलिया जैसे देशों में सैकड़ों रईस व्यक्तियों के मृत शरीर पुनर्जीवन पाने की आशा को लेकर सुरक्षित रखे हुए हैं। मृत शरीर को दोबारा जीवित होने की उम्मीद पर सुरक्षित रखे जाने की यह व्यवस्था क्रायोनिक्स फैसिलिटी कहलाती है। इसके अंतर्गत मृत शरीर को स्टील के विशेष बक्सों में दो सौ डिग्री ऋणात्मक तापमान में रखा जाता है। इन बक्सों में द्रव नाइट्रोजन भरी रहती है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के एरिजोना में स्थित क्रायोनिक्स कंपनी एल्कोर में 205 शव सुरक्षित रखे गए हैं, जबकि 1417 लोगों ने अपना शव सुरक्षित रखने के लिए आवेदन किया है। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य देशों में भी विभिन्न व्यक्तियों का शव अथवा दिमाग सुरक्षित रखा गया है। क्रायोनिक्स फैसिलिटी के जनक रॉबर्ट विल्सन एटिंगर का शव भी उनकी दोनों पत्नियों एवं मां के मृत शरीर के साथ सुरक्षित रखा है।

यदि विज्ञान एवं तकनीकी की सीमाओं की बात की जाए तो संभवत: एकमात्र कार्य जिसमें अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है, वह है मृत शरीर को जीवित कर पाना। यद्यपि अलग-अलग सिद्धांतों एवं मतों के द्वारा जीवन एवं मृत्यु की व्याख्या की गई है किंतु फिर भी वैज्ञानिक आधार पर यह अभी तक एक रहस्य ही है कि शरीर में जीवन का मूल स्रोत क्या है एवं मृत्यु का मूल कारण क्या है।

निस्संदेह आज तकनीकी समय के साथ विकास के नए नए प्रतिमान स्थापित करती जा रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनो तकनीकी, रोबोटिक्स आदि रूपों में शोध एवं अन्वेषण की निरंतर गतिमान धारा ने ही मनुष्य के मन में आशा की यह किरण जगाई है कि शायद कभी भविष्य में मृत्यु के उपरांत शरीर को पुनर्जीवन देना संभव हो जाए। इसी उम्मीद पर सैकड़ों शव सुरक्षित रखे हुए हैं एवं न जाने कब तक रखे रहेंगे। एक ताजा शोध यह कहती है कि भविष्य में मोबाइल, लैपटॉप, घड़ी, ईयरफोन इत्यादि उपकरणों को चार्ज करने के लिए बाहर से वैद्युत ऊर्जा देने की आवश्यकता नहीं होगी। हमारे शरीर में मौजूद ऊष्मीय ऊर्जा ही विद्युत में परिवर्तित होकर इन उपकरणों को चार्ज कर दिया करेगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मोबाइल एवं लैपटॉप आने वाले दिनों में प्रयोग के दौरान बिना चार्जर, स्विच एवं सॉकेट के स्वत: ही चार्ज होते रहेंगे तथा “बैटरी लो” जैसी चेतावनी भविष्य में लुप्त हो जाएगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अस्तित्व में आते ही बड़ी-बड़ी उम्मीदों की किरणें चमक उठी हैं। प्रत्येक क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बढ़ावा दिया जा रहा है। धीरे-धीरे यह मानव का विकल्प बन जाने की ओर अग्रसर है।

प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार विज्ञान एवं तकनीकी मनुष्य की इन बड़ी-बड़ी उम्मीदों पर किस स्तर तक खरी उतर पाएगी एवं यदि इंसान की अपेक्षाएं पूर्ण हो भी गईं तो फिर कौन सी चुनौतियां अथवा समस्याएं हमारे सामने मुंह बाए खड़ी होंगी। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जनक जेफ्री हिंटन का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव सोच एवं क्षमता से भी आगे बढ़ चुकी है। यदि इस पर समय रहते नियंत्रण न किया गया तो यह तकनीक संपूर्ण विश्व के लिए खतरा बन सकती है। किसी तकनीक के जनक के द्वारा तकनीक के विषय में ऐसी चिंता जताना निश्चित रूप से एक गंभीर बात है। प्रश्न यह उठता है कि यदि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में इसी गति से विकास होता रहा तो क्या भविष्य में पृथ्वी पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं एल्गोरिथ्म से लैस रोबोटों का राज होगा। वहीं दूसरी तरफ यदि मृत शरीर को पुनर्जीवित कर देने की सफल तकनीकी अस्तित्व में आ गई तो उस स्थिति में भी तमाम चुनौतियां हमारे रास्ते में खड़ी होंगी। कल्पना करें कि यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के सौ वर्षों के उपरांत जीवित हो पाता है तो उस समय उसके नवीन जीवन का उद्देश्य क्या होगा। उस समय के परिवेश के साथ तालमेल बिठा पाना उसके लिए निश्चित ही एक दुष्कर कार्य होगा।

संभवत: उस समय उसके समकालीन व्यक्तियों में से शायद ही कोई जीवित हो और तब उस स्थिति में वह नितांत भ्रमित एवं असहज महसूस करेगा। एक अन्य बात यह कि क्या जीवित होने के बाद व्यक्ति की स्मृति पुनः सक्रिय की जा सकेगी। दुर्भाग्यवश यदि ऐसा न हो सका तो जीवित व्यक्ति पूर्णतया एक नए जीव के समान होगा जिसे अपना जीवन शून्य से शुरू करना है। अपनी पुरानी उपलब्धियों को वह भूल चुका होगा और ऐसी दशा में मृत शरीर का पुनर्जीवित होना पूर्णतया अर्थहीन सिद्ध होगा। तकनीकी के साथ निस्संदेह समस्याएं, चुनौतियां एवं आशंकाएं भी दृढ़ता के साथ जुड़ी हुई हैं। इन्ही उम्मीदों और आशंकाओं के बीच उचित संतुलन स्थापित करके ही तकनीकी का लाभ उठाया जा सकता है।