सामुदायिक हिंसा का बढ़ता खतरा ?

Growing threat of communal violence?

प्रभुनाथ शुक्ल

भारत में हिंदुओं पर सामुदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं ने सरकार और देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दिया है। अपने ही देश में बहुसंख्य हिंदू हिंसक घटनाओं का शिकार हो रहा है। वैसे सामुदायिक और नस्लीय हिंसा पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। लेकिन भारत के आसपास पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हमले और हिंसा बढ़ गए हैं। नेपाल जैसे देश में भी रामनवमी जुलूस पर हिंसा को अंजाम दिया गया। भारत के पड़ोसी इस्लामिक देश में हिंदुओं की स्थिति बद से बदतर है। जबकि ये कभी भारत के हिस्सा थे।यहाँ हिंदुओं पर लगातार धार्मिक उत्पीड़न और हिंसा की घटनाएं भारत की चिंता को बढ़ा दिया है। आतंकवाद से लड़ रहे भारत के सामने सामुदायिक हिंसा की घटनाएं बड़ी चुनौती बन रहीं हैं। सबसे अहम मुद्दा यह है कि अपने देश में ही हिंदू बाहुल्य होने के बाद भी हिंदू सामुदायिक हिंसा का शिकार बन रहा है। जबकि चीन में उइगर मुसमानों का दमन किसी से छुपा नहीं है, लेकिन चीन के खिलाफ पाकिस्तान, बांग्लादेश खामोश है। कश्मीर हुआ नरसंहार इसका ताज़ा उदाहरण है। भारत में इस तरह की हिंसा के पीछे वोटबैंक के लिए राजनैतिक तुष्टिकरण सबसे बड़ी समस्या है।

भारत में हिंदुओं पर हिंसक हमले इस्लामिक आतंकवाद की एक सोची समझी रणनीति है। पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिंदुओं का सफाया हो रहा है जबकि अफगानिस्तान में हिंदुओं की आबादी गिनती पर आ गईं है। भारत में इस तरह के सामुदायिक और धार्मिक दंगे भड़काने के लिए पाकिस्तान मूल रूप से जिम्मेदार है। लेकिन हम इस तरह की बात कर अपनी जिम्मेदारी से बच भी नहीं सकते हैं। भारत इस्लामिक आतंकवाद से तो हमेशा से पीड़ित रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में राजनैतिक कारणों और उसके फैसलों से देश में सामुदायिक हिंसा, प्रदर्शन और पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ गईं हैं। दोनों समुदायों में एक दूसरे के प्रति नफरत और डर का माहौल पैदा हुआ है। इस तरह की सामुदायिक हिंसा के पीछे सामाजिक, आर्थिक, राजनीति, सोशलमीडिया और धार्मिक कारण मुख्य हैं, जिसकी वजह से ऐसी घटनाएं देश के धार्मिक और सांप्रदायिक तानेबाने को विभाजित करती दिखती हैं।

जम्बू -कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जिस तरह निर्दोष पर्यटकों का नरसंहार किया वह मानवता के खिलाफ है। इस हिंसा में 26 लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। आतंकवादियों ने सिर्फ हिंदुओं को निशाना बनाया और उनका धर्म पूछ कर उन्हें गोलीबारी मारी। हालांकि की कश्मीर में इस नरसंहार को लेकर काफी गुस्सा देखा जा रहा है। कश्मीर में इस बात पर भी गुस्सा है कि हमले में सिर्फ हिंदू मारे गए। लोगों का कहना है कि पर्यटकों की जान बचाने के लिए दो स्थानीय मुस्लिम और ईसाई, जैन भी मारे गए है। मीडिया का यह रुख गलत है। पूरा कश्मीर पीड़ित परिवारों के साथ है। आतंकियों को फांसी देने की भी बात कहीं गईं है। देश के कई हिस्सों में मुस्लिम संस्थाओं ने प्रदर्शन कर पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी भी किया है।

इस साजिश के पीछे हाल में पाकिस्तान आर्मीचीफ जनरल कियानी की तरफ से भारत और हिंदुओं के खिलाफ दिया गया वह उसकाऊ बयान भी अहम माना जा रहा है जिसमें उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ भड़काने वाला बयान दिया था। कियानी के बयान के ठीक कुछ दिन बात पहलगाम में आतंकी हमला हुआ है जिसमें पर्यटकों का धर्म पूँछ कर नरसंहार किया गया। यह पाकिस्तान की सोची समझी रणनीति है, क्योंकि वह भारत से सीधीजंग में कभी नहीं जीत सकता है। ऐसी स्थिति में वह हिंदुओं को निशाना बनाकर भारतीय मुसलमानों का मसीहा बनना चाहता हैएवं कश्मीर में अलगाववाद की नींव और मजबूत करना चाहता है। खैबरपखतून में बलोच आर्मी की तरफ से किए ट्रेन हाईजैक के पीछे वह भारत का हाथ मानता है। जिसकी वजह से वह बौखलाया था और बदले के लिए बेताब था। लेकिन वह जो कर रहा है उसकी भरपाई उसे करनी होगी।

कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर आहिस्ता -आहिस्ता विकास की मुख्यधारा में लौट रहा है। आतंकी घटनाएं कम हुईं हैं। पर्यटकों की आमद बढ़ने लगी है। सेबों की खेती लहलाहने लगी है। यह सब देख पाकिस्तानी फ़ौज में बौखलाहट है जिसकी वजह से वह इस तरह की सामुदायिक हिंसा की साजिश रच रहा है। कश्मीर में सामुदायिक हिंसा की यह पहली घटना नहीं है। आतंकवादियों ने पुलवामा जैसी घटनाओं को अंजाम दिया है। कश्मीर में साल 2019 के बाद धारा 370 लागू होने के बाद यह पहली सबसे बड़ी आतंकी नरसंहार की घटना है। दूसरा समझे अहम कारण कश्मीर के राजनैतिक और अलगाववादी कभी शान्ति और विकास नहीं चाहते हैं। क्योंकि धारा 370 खत्म होने के बाद उनकी तमाम स्वतंत्रता जहाँ बाधित हुईं वहीं आर्थिक नुकसान हुआ है। वहां के राजनेताओं और अलगाववादियों का पाकिस्तान प्रेम दुनिया में जगजाहिर है। इसके बावजूद धारा 370 का खात्मा, तीन तलाक कानून और वक्फ संशोधन जैसे राजनैतिक फैसले इस आग में घी का काम किया है। हालांकि यह आम मुसलमानों और कश्मीरियों की सोच नहीं है। यह सिर्फ अलगाववादियों की सोच है।

पहलगाम में हिंदुओं के साथ विदेशी नागरिक और नेवी में कार्यरत जवान की भी मौत हुईं है। जोड़ा शादी के बाद हनीमून मानाने गया था जो निर्मम आतंकी साजिश का शिकार हुआ है। नरसंहार के बाद भारतीय सेना के लोगों के पहुंचने के बाद भी लोग इतने दहशत में थे कि उन्हें भी आतंकी समझ लिया। इस घटना में केंद्र और राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। जब वहां काफी तादात में पर्यटकों की आमद हो रहीं थी तो पर्यटकों की सुरक्षा के लिए सेना और राज्य पुलिस के जवानों की तैनाती क्यों नहीं की गईं। क्योंकि एलओसी से सटे कश्मीरी जिलों में आतंकवाद खूब फलता -फूलता रहा है।

कियानी के विभाजनकारी संदेश को हमारी सरकार, ख़ुफ़िया एजेंसिया और सुरक्षा एजेंसिया नहीं समझ पाईं। ऐसे संवेदनशील पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा के सख्त इंतजाम होने चाहिए थे। क्योंकि यह इलाका काफी ऊंचाई पर है जहाँ का प्राकृतिक लुत्फ़ उठाने के लिए भारी तादात में देशी- विदेशी पर्यटक आ रहे थे। यह इलाका एलओसी से सटा है और प्राकृतिक जाटिलताओं से भरा है। ऊँचे पहाड़, नदिया घने -जंगल, देवदार और चीड़ के पेड़ यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाते हैं। यहाँ आतंकवादियों की पहुँच जटिल होने के बाद लेकिन सुगम है। यहाँ की संवेदनशीलता को देखते हुए अगर हमारी सुरक्षा एजेंसियां सतर्क होती तो निश्चित रूप से इस नरसंहार से बचा जा सकता था। राज्य में इस तरह की घटनाएं पर्यटन उद्योग और उसकी संभावनाओं पर पानी फेरती हैं। हम अपनी चूक और नाकामियों से नहीं बच सकते। यह गंभीर मंथन का विषय है। कश्मीर के पर्यटन स्थलों पर हमें सुरक्षा व्यवस्था को सख्त रखना होगा। भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए वहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। यह हमला भारत की आत्मा पर है यह राजनीति का वक्त नहीं है। सारा देश गुस्से में है। रणनीति बनाकर पाकिस्तान और आतंकवाद को सबक सिखाने की जरूरत है।

कश्मीर के पूर्व बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में हिंदुओं को जिस तरह निशाना बनाया गया वह किसी से छुपा नहीं है। इसके अलावा रामनवमी जुलूस पर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश भी सुनियोजित तरीके से हिंदुओं पर हमले हुए। उत्तर प्रदेश में संभल किसी से छुपा नहीं है। वहां किस तरह हिंदुओं का उत्पीड़न हुआ उसे कौन नहीं जानता। हिंसक हमलों में उनकी संपत्तियों और मंदिरों को नष्ट किया गया। हालांकि मुस्लिम इलाकों में भी हिंदूओं का स्वरुप देखने को मिला जहाँ मस्जिदों को निशाना बनाया गया। उनपर चढ़ कर धार्मिक नारेबाजी की गईं। पश्चिम बंगाल राज्य में हिंदुओं को पलायित होना पड़ा। पीड़ित हिंदू बंगाल पुलिस की मदत के लिए चिल्लाते रहे लेकिन कोई सुरक्षा नहीं मिली। बाद में बंगाल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद हिंसा प्रभावित इलाके में केंद्रीय बल पंहुचा।

लोकतंत्र की शपथ लेने वाली राज्य की मुख्य्मंत्री ममता बनर्जी क्या कर रहीं थीं। हिंदुओं के खिलाफ इस तरह की हिंसा को राज्य सरकार क्यों बर्दास्त करती रही। केंद्र सरकार ने खुद क्यों नहीं हिंसा का संज्ञान लेकर केंद्रीय बल भेजा। क्या सिर्फ हिंदुओं की लाशों पर सियासत करना ही हमारा धर्म है। अहम बात जब बंगाल की मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया था कि राज्य में वफ्फ कानून लागू नहीं होगा फिर क्यों हिंसा फैली। हिंसा के बाद मुख्यमंत्री मौलानाओं से बातचीत कर सकती हैं, लेकिन पीड़ित हिंदुओं का हाल लेने घटना स्थल पर तत्काल क्यों नहीं पहुँची। बंगाल से अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या को क्यों नहीं निकला जा रहा। केंद्र, राज्य सरकार के साथ हमारी सुरक्षा एजेंसिया क्या कर रहीं। क्या बांग्लादेशियों का अवैध प्रवास सिर्फ चुनावी मसला है।

जिस बांग्लादेश को भारत ने पाकिस्तान से अलग कराया उसी बांग्लादेश में पाकिस्तान की सह पर अतिवाद पांव पसार रहा है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद हिंदुओं के घरों, व्यवसायों, और मंदिरों पर बड़े पैमाने पर हमले हुए। यूएन की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हिंदुओं को लक्षित कर हमले किए जिसमें 1400 लोगों की मौत हुईं। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में साल 2024 की हिंदुओं के खिलाफ 2200 हिंसक घटनाएं दर्ज की गईं। यह साल 2023 की तुलना में 700 फीसदी अधिक है। बांग्लादेश तो हमारा मित्रराष्ट्र है वहां हिंदुओं के खिलाफ बढ़ता अतिवाद चिंता का विषय है। भारत और पड़ोसी मुल्कों में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा भी सत्ता और विपक्ष की विभानकारी नीति है। वोटबैंक की यह राजनीति देश को कहाँ ले जाएगी यह चिंता का विषय है। ऐसा भी नहीं है कि मुसलमानों पर हमले नहीं हुए हैं, लेकिन अपने ही देश में बहुसंख्यक होने के बाद भी जितना हिंदू पीड़ित है उतना मुसलमान नहीं। बांग्लादेश, मुर्शिदाबाद और पहलगाम की हिंसा पर मुस्लिम समुदाय भी आक्रोश है, लेकिन यहीं उबाल पहले देखने को क्यों नहीं मिला। हिंदुओं के खिलाफ हुईं हिंसा के समर्थन में पाकिस्तान, बांग्लादेश के खिलाफ आम मुसलमान क्यों नहीं खड़ा हुआ। बंगाल में हिंदू बाहुल्य मुसलमानों के खिलाफ मुर्शिदाबाद जैसी हिंसा क्यों नहीं भड़की। हिंदुओं को एक सोची समझी रणनीति के तहत निशाना बनाया जा रहा है। यह हमारी साझा संस्कृति के खिलाफ है।

पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में जिस तेजी से हिंदुओं की आबादी घटी क्या भारत में भी वैसा डाटा है। क्या भारत जैसी धार्मिक एवं सामुदायिक स्वतंत्रता पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं को रहीं या है। अगर ऐसा होता तो इनकी आबादी बढ़ने के बजाय घटती क्यों। कश्मीर से ही लाखों कश्मीरी पंडितों का पलायन क्या साबित करता है। फिर वहां से मुसलमानों का पलायन क्यों नहीं हुआ। भारत -पाकिस्तान के विभाजन के बाद पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 23 फीसदी थी अब 3.7 फीसदी रह गईं। लगातार वहां हिंदुओं की आबादी घट रहीं है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1951 में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 22 फीसदी थी, ज अब 8 फीसदी से कम हो गई। 1964 से 2013 के बीच 1.1 करोड़ से अधिक हिंदुओं को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। आखिर बांग्लादेश में तो ऐसा नहीं होना चाहिए था फिर क्यों हुआ। जबकि अफगानिस्तान में 70 के दशक में लगभग 7 लाख हिंदू और सिख रहते थे, अब यह संख्या घटकर 1,350 के आसपास रह गई है। इस सवाल का जबाब क्या किसी के पास है।

हम यह भी नहीं कहते हैं कि भारत में मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की घटनाएं नहीं हुईं हैं, लेकिन जैसा हिन्दुस्थान में हिंदुओं के साथ हो रहा वैसा नहीं। वैसे अमेरिका में भी हिंदुओं और सिखों के खिलाफ नस्लीय हिंसा हुईं है। हिंदुओं के मंदिरों को भी निशाना बनाया गया है। नस्लीय टिप्पणीयां हुईं हैं, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी नहीं। हमें इस तरह की सामुदायिक हिंसा से बचना होगा। राजनैतिक लाभ लेने के लिए देश को हिंदू -मुसलमान में बांटना ठीक नहीं। इससे देश की एकता, अखंडता कमजोर होगी। साम्प्रदायिक हिंसा को किसी भी तरीके का राजनैतिक संरक्षण नहीं मिलाना चाहिए। नफ़रती बयानबाजी और सोशलमीडिया पर फ़ैलते भड़काऊ वीडियो और संदेश पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लागू होना चाहिए। देश, संसद और उसकी संवैधानिक संस्थाएं जाति, धर्म और समुदाय से सर्वोपरी हैं। हमें उनका सम्मान करना होगा। हमें किसी कानून या बिल से असहमति है तो देश में अदालत और कानून भी है। हिंसा और अपनी तागत दिखाने के बजाय हमें ऐसी संस्थाओ का सम्मान करना होगा। हमारे लिए देश सर्वोपरि है।