गुजराती गरबों की है अंतरराष्ट्रीय पहचान

वडोदरा में नवरात्रि पर बहता है अथाह जन समुद्र

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

उत्तर भारत और पश्चिमी बंगाल में जहां माता रानी के पंडाल और दुर्गा पूजा तथा महाराष्ट्र में गणपति पूजा पांडाल की धूम रहती है वहीं राजस्थान से गुजरात तक शारदीय नवरात्री की शुरुआत के साथ ही नौ दिनों तक गरबा और डांडिया की ऐसी धूम रहती है कि दिन वीरान हो जाते है और रात रौनक से भरपूर हो जाती है।विशेष कर गुजरात में गरबा की बात ही निराली है और उसमें भी वडोदरा नगर में देश के सबसे बड़े गरबा का आयोजन होता है। भारत में नवरात्रि के दौरान पूरे गुजरात ही नहीं देश के कई अन्य हिस्सों में भी गरबा महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह भारत का सबसे बड़ा त्यौहार हैं।

वडोदरा में गरबा महोत्सव में रोजाना करीब एक लाख लोग डांडिया करते हैं। चीन, जर्मनी और फ्रांस, कनाडा, अमरीका समेत कई विदेशी देशों के युवा-युवतियां भी गरबे का लुत्फ उठाते हैं। करीब एक लाख लोग तो बतौर दर्शक ही शामिल होते हैं। वडोदरा का यूनाइटेड-वे, राजमहल और महाशक्ति सहित 25 से अधिक विशाल गरबा पांडाल में उमड़ता जन समुद्र देखने लायक है। अकेले यूनाइटेड-वे गरबा का आयोजन 11,500 वर्ग मीटर के मैदान में होता है। रोशनी के लिए 25 से 30 बड़े हेलोजन टॉवर लगाए जाने के अलावा हजारों रंग-बिरंगी लाइट्स भी लगाई जाती हैं। समारोह स्थल पर 10 हजार से अधिक चार पहिया और 15 हजार से अधिक दो पहिया वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था की जाती है।

गरबा का यह आयोजन हर साल शारदीय नवरात्र में होता है। यहां गरबे के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होता है। महज 24 घंटे में ही सभी सीजनल पास बुक हो जाते है। इनकी कीमत 5000 रुपए तक होती है। इस पूरे आयोजन पर करीब 50 से 100 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। एंट्री पास की ब्रिकी और डोनेशन से यह रकम एकत्रित होती है। इस भव्य आयोजन में ड्रेस से लेकर सुर-ताल तक का अद्भुत संगम देखा जा सकता हैं।

वडोदरा में यूनाइटेड-वे संस्था पिछले करीब 40 सालों से नवरात्रि पर्व का आयोजन कर रही है। खास बात यह है कि इसमें हिस्सा लेने वाले लोग परंपरागत ड्रेस और गरबा गीतों पर ही नृत्य करते हैं। पुरुष केडिया-धोती तो महिलाएं चणिया-चोली में गरबा करती हैं। इनके कपड़ों पर सुंदर कढ़ाई-बुनाई की होती है। गरबे में फिल्मी गाने और उससे जुड़ी धुनें शामिल नहीं की जाती है। आयोजकों का दावा है कि इतने बड़े पैमाने पर आयोजित गरबा महोत्सव की विशेषता यह है कि देर रात तक चलने के बावजूद गत इतने वर्षों में कभी छेड़छाड़ और झगड़े जैसी कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई हैं।

गरबा को यूनेस्को ने भी अपनी वर्ल्ड हेरिटेज अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची के तहत मंजूरी देकर अंतरराष्ट्रीय पहचान दी हैं। गुजरात का गरबा नृत्य इस सूची में शामिल होने वाला भारत की 15वीं सांस्कृतिक विरासत है। यह उपलब्धि सामाजिक और लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देने वाली एकीकृत शक्ति के रूप में गरबा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार “गरबा जीवन, एकता और हमारी गहरी परंपराओं का उत्सव है। अमूर्त विरासत सूची पर इसका शिलालेख दुनिया को भारतीय संस्कृति की सुंदरता दिखाता है। यह सम्मान हमें भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमारी विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है।”गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल कहते हैं कि ‘‘गरबा के रूप में देवी मां की भक्ति की सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है और आगे बढ़ रही है। गुजरात की पहचान बन चुके गरबा को यूनेस्को द्वारा अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची के तहत मंजूरी देने को उन्होंने दुनिया भर में फैले गुजरातियों के लिए गौरवपूर्ण बताया ।

यूनेस्को ने भी अपने बयान में कहा कि

‘‘एक नृत्य शैली के रूप में गरबा परंपरा और श्रद्धा की जड़ों में गहराई से समाया हुआ है, जिसमें सभी क्षेत्रों के लोग शामिल होते हैं और यह समुदायों को एकजुट करने वाली एक जीवंत परंपरा के रूप में विकसित हो रहा है.’’ यूनेस्को की वेबसाइट के अनुसार गरबा एक ‘अनुष्ठानात्मक और भक्तिपूर्ण नृत्य’ है जो नवरात्रि के त्योहार के अवसर पर किया जाता है, जो आदिशक्ति की पूजा के लिए समर्पित है। यह नृत्य एक कलश के चारों ओर होता है, जिसमें लौ जलती है। इसके साथ ही देवी मां अम्बा की एक तस्वीर होती है।नर्तक स्त्री पुरुष गोल घेरे में लयबद्ध तरीके से ताली या डांडिया बजाते हुए नाचते हैं।भारत की परंपराओं और सांस्कृतिक आयोजन जैसे कि रामलीला, वैदिक मंत्रोच्चार, कुंभ मेला और दुर्गा पूजा को पहले ही यूनेस्को सूची में जगह मिल चुकी है।

उल्लेखनीय है कि गरबा गुजरात का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह नाम संस्कृत के गर्भ-द्वीप से निकला है। गरबा नृत्य के लिए कम से कम दो सदस्यों का होना अनिवार्य होता है।इस नृत्य में ‘डांडिया’ और हाथ का प्रयोग किया जाता है| डांडिया नृत्य करते समय डांडिया आपसे में टकरा कर नृत्य किया जाता है| गरबा गुजरात के सबसे प्रसिद्ध नृत्य में से एक है।नवरात्रि के समय पूरे देश में गरबा नृत्य की ज़बर्दस्त धूम रहती है|

गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य है जिसका मूल उद्गम गुजरात है। आजकल इसे पूरे देश में आधुनिक नृत्यकला के साथ भी किया जाता है। इस रूप की निन्दा भी होती है कि गरबा को विकृत किया जा रहा है फिर भी इसमें निहित लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है।

प्राचीन समय में देवी माँ के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के साथ यह नृत्य होता था। इस प्रकार यह घट दीपगर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में महिलायें और लड़कियाँ नवरात्रों के दिनों में कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूलपत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं। गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रों की पहली रात्रि को गरबा की स्थापना होती है। फिर उसमें चार ज्योतियाँ प्रज्वलित की जाती हें और महिला पुरुष उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं।

गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा, मंजीरा आदि का ताल देने के लिए प्रयोग होता हैं तथा स्त्रियाँ और नवयुवतियां दो अथवा चार के समूह में मिलकर विभिन्न प्रकार से आवर्तन करती हैं और देवी के गीत अथवा कृष्णलीला संबंधी गीत गाती हैं। शाक्त-शैव समाज के ये गीत गरबा और वैष्णव अर्थात्‌ राधा कृष्ण के वर्णनवाले गीत गरबा कहे जाते हैं।

आधुनिक गरबा और डांडिया रास से प्रभावित एक नृत्य है जिसे परंपरागत पुरषों तथा महिलाओं द्वारा किया जाता है। इन दोनों नृत्यों के विलय से आज जो उच्च उर्जा़ नृत्य का गठन हुआ है, उसे हम आज देख रहे है। आम तौर पर पुरुष और महिलाये रंगीन वेश-भूषा पहने हुए गरबा और डांडिया का प्रदर्शन करते हैं। लडकियाँ चनिया-चोली पहनती हैं और साथ में विविध प्रकार के आभूषण पहनती हैं, तथा लडके गुजराती केडिया पहन कर सिर पर पगडी बांधते हैं। प्राचीन काल मे लोग गरबा करते समय सिर्फ दो ताली बजाते थे, लेकिन आज आधुनिक गरबा में कई नई तरह की शैलियों का उपयोग होता है, जिसमें नृत्यकार दो ताली, छः ताली, आठ ताली, दस ताली, बारह ताली, सोलह तालियाँ बजा कर खेलते हैं। गरबा नृत्य सिर्फ नवरात्री के त्यौहार में ही नहीं किया जाता है बल्कि शादी के महोत्सव और अन्य खुशी के अवसरों पर भी किया जाता है।

गरबा उत्सव से हर शहर की राते रौनक से भरपूर रहती है। सारी रात खाने पीने की दुकानें और स्टाल थडिया आदि खुली रहती है। डांडिया बेचने वालो सहित गरबा से जुड़ी पोशाकें बेचने वालों तथा ऑटो रिक्शा के साथ गरबा गायकों, बाध्य यंत्र बजाने वालों, टेंट पांडाल लगाने वालों,रोशनी की व्यवस्था करने वाले तथा ऑडियो वीडियो की व्यवस्था से जुड़े कई लोगों को रोजगार भी मिलता हैं।

गरबा उत्सव के दौरान गरबा करने वाले युवा युवतियों के साथ ही हर वर्ग के लोगों का उत्साह के साथ जुनून देखने लायक होता है जोकि भारतीय संस्कृति की शानदार झलक को दर्शाने वाला है।