निर्मल कुमार शर्मा
दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी में दशकों पूर्व एक मार्मिक घटना घटी थी,एक मकान मालिक अपने 94वर्ष के एक बुजुर्ग किराएदार को किराया न दे पाने की असमर्थता की वजह से अपने मकान से लगभग निकाल ही दिया था ! उस बूढ़े व्यक्ति के पास एक पुराना बिस्तर,कुछ एल्युमीनियम के बर्तन,एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था ! लेकिन उस बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने मकान मालिक से किराया चुकाने के लिए कुछ अतिरिक्त समय देने का गिड़गिड़ाते हुए अनुरोध किया ! आसपास रहनेवाले पड़ोसियों को भी उस बुजुर्ग व्यक्ति पर कुछ रहम और करूणा आ गई,उन्होंने भी उस मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दे दिया ।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देख रहा था। उसने सोचा कि यह मार्मिकतापूर्ण घटना उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी रहेगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया,कि ”क्रूर मकान मालिक किसी बुजुर्ग व्यक्ति को पैसे के लिए किराए के घर से कैसे बाहर निकाल देता है !” अपने आर्टिकल के लिए उसने उस किराएदार बुजुर्ग व्यक्ति की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
उस पत्रकार ने अपने समाचार पत्र के कार्यालय पहुंचकर अपने संपादक को इस घटना के बारे में बताया। उस समाचार पत्र के संपादक ने उसके द्वारा खींची गई तस्वीरों को ध्यानपूर्वक देखा और हैरान रह गया। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि ‘क्या वह उस बुजुर्ग किराएदार आदमी को जानता है ? ‘पत्रकार ने कहा,नहीं।
अगले दिन उस समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर मोटे-मोटे अक्षरों में एक बहुत बड़ी खबर प्रकाशित हुई ! उसका शीर्षक था, ‘भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा आजकल बहुत ही दयनीय जीवन जी रहे हैं ! ‘ समाचार में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री अपने कमरे का किराया तक नहीं दे पा रहे हैं और कैसे मकान मालिक उन्हें घर से बाहर निकाल दिया है ! ‘ इस समाचार के बाद यह महत्वपूर्ण टिप्पणी भी थी कि ‘कैसे आजकल अपने भ्रष्ट आचरण से गांवों के ग्रामप्रधान,छोटे-छोटे मुहल्लों के सभासद और विधायक तक अपने कार्यकाल में ही करोड़ों की सम्पत्ति और पैसे अर्जित कर लेते हैं और अपने आलीशान बंगलों में खूब ठाठ-बाट से रहते हैं, जबकि गुलज़ारीलाल नन्दा जैसे व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुके हैं और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं,उनके पास आज अपना ख़ुद का घर भी नहीं है ! ‘
दरअसल गुलजारीलाल नंदा जी को स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते उन्हें 500 रूपये प्रति महीने का पेंशन भत्ता मिलता था,लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार कर दिया था,कि ‘उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी ही नहीं है ‘ लेकिन बाद में उनके मित्रों ने उस पेंशन को स्वीकार करने के लिए उन्हें यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है इसलिए इसी पेंशन के पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करें !
उक्त समाचार प्रकाशित होते ही अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने तमाम मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर अपने घर से निकालने को तत्पर मकान मालिक दंग रह गया ! उसे यह भी पता चल गया कि उसका किराएदार कोई और नहीं,अपितु भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा जी हैं ! मकान मालिक अपने द्वारा किए दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा जी के चरणों में झुक गया !
इस घटना के बाद तत्कालीन सरकार के अधिकारियों और सत्तासीन सरकार के कर्णधारों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाओं को स्वीकार करने का अनुरोध किया था,लेकिन सादगी,अपने स्वाभिमान और सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्ध और अडिग श्री गुलजारीलाल नंदा जी ने उनके इस अनुरोध को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया,अपने अंतिम सांस तक वे एक सामान्य नागरिक बनकर सादगी के साथ जीए और एक स्वाभिमानी स्वतंत्रता सेनानी की तरह अपने कहे वाक्य “श्रम किए बिना जनता के टैक्स के पैसे से विलासी और ऐशोआराम भरी जिंदगी जीना घोर महापाप और जघन्य आपराधिक कुकृत्य है ‘ पर दृढ़ रहकर अपने जीवन के अंतिम पल तक जीए ! श्री गुलजारी लाल नन्दा ईमानदारी और सादगी के एक प्रकाश पुंज थे !
ऐसे ईमानदारी और सादगी के प्रकाश पुंज गुलजारीलाल नंदा जी का जन्म वर्ष 1898 में सियालकोट जो अब पाकिस्तानी भूभाग में चला गया है,में हुआ था,वे वर्ष 1937में बम्बई विधानसभा में सदस्य चुन लिए गए थे,जब गुजरात और महाराष्ट्र दोनों मिलकर बम्बई राज्य कहलाते थे,वर्ष 1946से 1950 तक वे बम्बई विधानसभा में मंत्री बना दिए गए थे,वर्ष 1957 में वे केंद्र सरकार में श्रम मंत्री बना दिए गए,वर्ष 1961में वे योजना मंत्री और वर्ष 1961में इस देश के गृहमंत्री बनाए गए, लेकिन वर्ष 1971में वे कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिए थे !
गुलज़ारीलाल नंदा को नेहरूजी के मंत्रीमंडल से इसलिए निकाल बाहर किया गया !
वर्ष 1978में वे सार्वजनिक तौर पर मिडिया को बताए थे कि ‘मुझे नेहरू मंत्रिमंडल के गृहमंत्री पद से इसलिए जबरन हटा दिया गया था,क्योंकि मैंने भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए एक बड़े कांग्रेसी नेता को भ्रष्टाचार केस में पकड़कर जेल भिजवा दिया था,इससे उस समय के कांग्रेस में बहुतायत में भ्रष्टाचारी नेता मुझसे नाराज़ हो गए थे और उन सभी भ्रष्टाचार में संलिप्त कांग्रेस के नेताओं ने मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचकर मुझे गृहमंत्रालय से हटवा दिया था ! ‘
असल में गुलज़ारीलाल नन्दा जी पहले नेहरूजी के मंत्रीमंडल में योजना मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री थे,लेकिन उनके बनाए योजनाओं को उनके मंत्रालय के ही भ्रष्ट अफसर आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे ! इसकी शिकायत वे प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू जी से किए । दूरदर्शी और देशहित को ध्यान में रखते हुए और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने हेतु नेहरूजी ने श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी को भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों की लगाम कसने के लिए श्री गुलज़ारीलाल नन्दा को इस देश का गृहमंत्री बना दिए,उस समय पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनने लगा था,तभी एक महाभ्रष्ट कांग्रेसी नेता को पकड़कर श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी ने जेल भेज दिया था,इस घटना से सारे भ्रष्टाचार में संलिप्त कांग्रेसियों का ध्रुवीकरण हो गया और वे श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी के खिलाफ लामबंद होकर नेहरूजी से कहकर श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी को गृहमंत्रालय से हटवा दिए थे ! लेकिन यक्षप्रश्न है कि इस मामले में श्री जवाहरलाल नेहरू जी को भी अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था !
नन्दा जी इतने स्वाभिमानी थे कि वे अपने शुभचिंतकों और बेटों तक से कोई धनराशि या उपहार स्वीकार नहीं करते थे ! उन्होंने हरियाणा राज्य के कैथल नामक जगह पर अपने कुछ शुभचिंतकों की मदद से एक आश्रम और एक गौशाला खोले थे,लेकिन वहां भी कुछ भ्रष्ट, स्वार्थी,भ्रष्ट और निकम्मे लोगों एक गुट ने उस आश्रम के संस्थापक श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी को ही निकाल बाहर कर दिया !
उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से इंदिरा गांधी की निरंकुश शासन को ध्वस्त कर बनाई गई जनता दल सरकार के नेताओं से यह विनम्र अपील तक किया था कि ‘पहले आप स्वयं नैतिक और ईमानदार होने की हृदय से शपथ लें,उसके बाद ही भारत की आम जनता को नैतिकता और ईमानदारी का उपदेश देने की कृपा करें ! ‘
आपातकाल के दिनों में वे इंदिरा गांधी की कटु आलोचना किए थे,जब वर्ष 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई,तब वे इंदिरा गांधी के पास स्वयं के लिए टिकट मांगने नहीं गये ! बाद में वे सार्वजनिक रूप से मिडिया को बताए कि ‘जिस सरकार और राजनैतिक दल की मैं आलोचना कर चुका हूं, उससे मैं टिकट क्यों मांगता ? ‘
अपने जीवन के सान्ध्यकाल में भारत में सर्वव्याप्त भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी,भाई-भतीजावाद, धार्मिक व जातिगत वैमनस्यता,नैतिक पतन आदि बुराईयों को देखकर वे बहुत व्यथित होकर अक्सर कहा करते थे कि ‘इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए राजनेताओं को पहले अपना आचरण सुधारना होगा,कटु सच्चाई यह है कि इस देश के अधिकतर नेता महाभ्रष्ट और चारित्रिक रूप से महापतित हैं,ऐसे नेता नैतिकता को ही आवश्यक नहीं मानते,वे कहते हैं कि राजनैतिक व्यक्ति कोई साधु-सन्यासी और वैरागी नहीं होते ! ‘
जीवन भर गरीबी में जीना मंजूर लेकिन अपने सिद्धांतों पर अडिग
गुलज़ारीलाल नन्दा इस देश के दो बार अंतरिम प्रधानमंत्री भी रह चुके थे ! इस के अतिरिक्त वे करीब दो दशकों तक बम्बई विधानसभा और लोकसभा में कांग्रेसी सरकारों में केन्द्रीय मंत्री भी रहे थे,वे चाहते तो बहुत आसानी से अपने लिए रहने के लिए आलीशान बंगला, कारें,बड़ी जायदाद खड़ी कर सकते थे,लेकिन श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी जो वास्तविकरूप में एक महान फकीर और योगी थे ! वे आजकल के सत्ता के कर्णधारों जैसे झूठे,जुमले बाजों,गेरूआ वस्त्र धारियों और कथित गुरूओं और बाबाओं जैसे नहीं थे,जो कहते तो हैं कि हम फकीर आदमी हैं,हम योगी हैं,हम योगगुरु हैं, लेकिन यथार्थ में यह स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि वे विलासिता के हद तक सुविधा भोगी सत्ता के भूखे और चारित्रिक रूप से पतित और महाभ्रष्ट हैं !
सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद वे दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी में रहने के लिए एक किराए का मकान ले लिए थे ! जब वे अपने लिए किराए के मकान का किराया नहीं दे पाए तो उनकी बेटी,जो अहमदाबाद रहती थीं, उन्हें अपने साथ अहमदाबाद लिवा गईं, जहां वर्ष 1998 में उनका निधन हो गया ।
भारत रत्न के असली हकदार और सम्मानित भी !
अपने अंतिम सांस तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह एक सच्चे,अपने सिद्धांत के प्रति संपूर्ण रूप से प्रतिबद्ध और ईमानदार स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। ऐसे निष्पृह, वास्तविक फकीर और संत महापुरुष को वर्ष 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी व श्री एच डी देवगौड़ा के मिले-जुले सद्प्रयासों से उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया ! आज इस देश को श्री गुलज़ारीलाल नन्दा जी जैसे मन-वचन और कर्म से पवित्र,अपने किए वादों के प्रति सत्यनिष्ठा,ईमानदार,प्रतिबद्ध और अपने सिद्धांतों के प्रति अडिग नायकों की जरूरत है !