विनोद तकियावाला
हमारा देश भारत अटूट आस्था,आध्यात्म,अवतारो संत महापुरुषों का देश है।उन्होंने यहाँ पर ना केवल जन्म लिया बल्कि विभिन्न युगों में अवतरित हो ना केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व का कल्याण किया है।चाहे वह राम हो ‘ कृष्ण हो,नानक हो ‘बुद्ध हो महावीर हो ‘इसी क्रम में कई ऐसे सक्ष्म गुरु के रूप अवतार है जैसे वेद व्यास ‘जिन्होने चारों वेद का निर्माण कार्य पूरा है। गुरु शिष्य की परम्परा भी अति प्राचीन व प्रचलित है।गुरु-शिष्य परम्पराओ का वर्णन हमारे ग्रंथो व पुराणओं में मिलता है।गुरु के संदर्भ में कहा गया है कि-गुरु के बिना ज्ञान सम्भव है।इस घरा पर गुरु का स्थान भगवान से ऊँचा दिया गया है,क्योंकि गुरु ही एक सच्चा पथ प्रदर्शक है।जो आप को जीवन में ज्ञान का ज्योति जलाकर कर आपकी यात्रा को सुग्म बना देता है।आप पर किसी भी तरह का विपदा आये उसके पहले वे हटा कर आप को बचा लेता है।मेरे जीवन में एक सच्चे-समर्थ गुरु के रूप में स्वयं सद्गुरु व महात्मा सुशील कुमार जी व शक्ति स्वपणी सद्गुरू देव मॉ . माँ विजया जी आज करीब 25 वर्ष पुर्व आगमन हुआ।जिसके लिए मै आज अपने आप को धन्य मानते है।बड़भागी वे लोग जिन्होंने अपने जीवन सच्चे गुरु के रूप ग्रहण किया है। मै आपको बता दूँ सक्ष्म गुरु स्वंय ही अपने शिष्य को दुढ़ लेते है । ‘ बल्कि उनके सारे दुःख कष्टों को हर उसके जीवन को सफल बना देते है। मेरे साथ ही ऐसा ही हुआ था।वंसत पंचमी के संध्या में प्रथम दर्शन के दौरान – विनोद तुम कहाँ थे मै तुम्हे कब से ढुढ़ रहे है। तभी आसन पर विराजमान शक्ति स्वपणी सद्गुरु देव माँ – माँ विजया जी बोली कि यें अभी तक अपने मन का मैल घो रहा था । इस सद्गुरु देव जी नें – ” चलो देर आये दुरस्त आये । इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का महामहोत्सव हमारे गृह राज्य झारखण्ड की राजधानी राँची के ताने भगत इनड्रोर स्टेडियम मनाया जा रही है।यह महापूर्व अन्तराष्ट्रीय इस्सयोग समाज के संस्थापक ब्रहालीन महात्मा सुशील कुमार के सुक्ष्म उपस्थिति में सद्गुरुदेव माँ माँ विजया जी दिव्य उपस्थित मनाया जा रहा है। जिस में भारत के विभिन्न राज्यों के अलावे अमेरिका जमनी ‘ ब्रिटेन आदि देशो से समर्णित इस्सयोगी दो दिन पुर्व पहुंच गए है। आप स्पष्ट कर दुँ कि गुरु पूर्णिमा के पर्व गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए होता है। गुरु पूर्णिमा साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ ‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है – अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला।गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। आपके जीवन में अदयात्मिक गुरु अपने शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं।आज के दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनकी दी गई शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लेते हैं। .लोग अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेने के लिए इस दिन उनके पास जाते हैं और उनकी चरण वंदना कर उन्हें विभिन्न उपहार देते हैं।साघक अपने गुरु के सान्धिय में आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होता ‘ है तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है। विशेषरूप से गुरु पूर्णिमा पर गुरु को आदर और सम्मान देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था,इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।ऐसी मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। .जिन्होंने मनुष्य जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था इसीलिए इन्हें जगत का प्रथम गुरु माना जाता है।
हमारे धर्म शास्त्रों में गुरु की महिमा
अनंत व अपरंपार है।सच्चे व सामर्थ्य गुरु ज्ञान के प्रकाश स्तंभ होते हैं जो आपके जीवन से अज्ञानता रूपीअंधकार को दूर करते हैं।भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है।वेदों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है। * ”गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः”अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है।गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। संत कबीर ने भी गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है कि “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥”* यहाँ गुरु को गोविंद से भी ऊँचा स्थान दिया गया है, क्योंकि गुरु ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बनाए थे। इनके अलावा भी भारतीय धर्म, साहित्य और संस्कृति में अनेक ऐसे दृष्टांत भरे पड़े हैं, जिनसे गुरु का महत्त्व प्रकट होता है। ऋषि वशिष्ठ को गुरु रूप में पाकर श्रीराम ने ,अष्टावक्र को पाकर जनक ने और संदीपनी को पाकर श्रीकृष्ण-बलराम ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना।केवल गुरु ही नहीं बल्कि अपने से बड़े और अपने माता-पिता को गुरु तुल्य मानकर उनसे सीख लेनी चाहिए एवं उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए। इस गुरु पूर्णिमा पर, हम सभी को अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करना चाहिए और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। गुरु के आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सार्थक और सफल हो सकता है। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर मै अपनी लेखनी के माध्यम से अपने सद्गुरुदेव – माँ के युगल श्री चरणो आस्था समपर्ण के भाव पुष्प अर्पित कर रहा है।इसके पहले यह कहना चाहूँगा कि – इन हथेलियो पे दिये थे ‘ आपने छड़ी के निशान ‘ बने रहे हम आप से हमेशा ही अजान । आप तो हमें पल में कराते रहते थे – ब्रह्म का ज्ञान ‘ आप ही थें मेरे कृपा निधान .।गुरु पुर्णिमा के पावन अवसर आपको ढेर सारी शुभकामनाएं ।