सुरेश हिन्दुस्थानी
सत्य पर कितना भी परदा डाला जाए, लेकिन एक समय ऐसा भी आता है कि उसका वास्तविक स्वरूप सामने आ ही जाता है। हालांकि यह विसंगति भी रही है कि सच को झूठ प्रमाणित करने के लिए भी कवायद की जाती रही हैं। समाज को भ्रमित करने वाली इस प्रकार की साजिश के चलते ही वह सच सामने नहीं आ पाता, जो वास्तविकता है। कहा जाता है कि एक झूठ को सौर बार बोला जाए तो वह सच जैसा ही लगने लगता है। ऐसा ही भारत के बारे में हुआ है। इसी प्रकार के षड्यंत्र के तहत आज हिन्दू शब्द को इतना सीमति कर दिया है कि वह कभी-कभी दायरे में दिखाई देता है, जबकि हिन्दू शब्द की व्याख्या व्यापक है। वह एक जीवन पद्धति है। देश में योजना करके ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया गया कि हिन्दू शब्द साम्प्रदायिक लगने लगा। जबकि सच यही है कि हिन्दू शब्द से एक ऐसी सांस्कृतिक अनुभूति होती है, जो सबके साथ मिलकर चलने का सामथ्र्य पैदा करती है। इसी प्रकार धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल मुस्लिम तुष्टिकरण मात्र ही होकर रह गया था। कुल मिलाकर भारत के हिन्दू समाज को सत्य से बहुत दूर करने का लगातार प्रयास किया गया।
सच और झूठ को सामने लाने के लिए वाराणसी के एक न्यायालय के आदेश पर काशी विश्वनाथ परिसर में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने का आदेश दिया।
इस आदेश के बाद जो संस्थाएं भ्रमित वातावरण बनाने का काम कर रही थीं, उनके सपनों पर पानी फिरता हुआ दिखाई दिया। इसी कारण भारत में विवादित स्थलों के प्रति सहानुभूति रखने वाले व्यक्तियों को यह नागवार गुजरा और इस पर रोक लगाने के लिए सक्रिय हो गए। कहा जा रहा है कि सर्वे दल को ज्ञानवापी में शिवलिंग मिला है। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से यह दावा फिर से किया गया है कि शिवलिंग मिलने के बाद यह तय हो गया है कि ज्ञानवापी मंदिर की भूमि पर ही निर्मित की गई है। अब देश के मुस्लिम समाज को भी बड़ा दिल दिखाते हुए ज्ञानवापी की भूमि को हिन्दू समाज को सौंप देना चाहिए। हालांकि इसकी राह में उसी प्रकार के रोड़े भी अटकाए जाएंगे, जैसा अयोध्या मामले में हुआ था। हम जानते हैं कि यह मामले भगवान सोमनाथ के मंदिर के साथ ही सुलझ जाने चाहिए थे, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते यह संभव न हो सका और मामले को बहुत लम्बा खींचा गया। इसलिए जिस प्रकार से अयोध्या को लेकर देश के समाज ने शांति का परिचय देते हुए निर्णय को स्वीकार किया, उसी प्रकार का परिचय यहां भी देना चाहिए।
हम जानते हैं कि भारत में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के अनेक स्थान ऐसे भी हैं, जिनका आज जो स्वरूप दिखाई दे रहा है, प्रारंभ में वैसा नहीं था। यह सर्वविदित ही है कि मुगलकालीन शासकों ने जहां हिन्दू समाज के प्रति दुर्भावना का रवैया अपनाया, वहीं ऐसे अनेक स्थलों को भी नष्ट करने का प्रयास किया, जो हिन्दू समाज के लिए अगाध श्रद्धा के स्थल थे। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या और सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस बात की स्पष्ट गवाही देते हैं कि मुगलों ने इन स्थलों का विध्वंश किया। भगवान सोमनाथ का मंदिर तो स्वतंत्रता मिलने के पश्चात ही फिर से अपने पुराने स्वरूप में आ गया। इतना ही नहीं उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सोमनाथ का लोकार्पण किया। लेकिन देश में आज भी अनेक स्थल ऐसे हैं, जिनके बारे में हिन्दू समाज यह आशा लगाए है कि इनका स्वरूप भी अपनी वास्तविक अवस्था में आएगा। अभी अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है, जिसके अगले वर्ष पूरा हो जाने की उम्मीद है। इसी प्रकार भारतीय समाज की उत्सुकता यह भी है कि देश के अन्य ऐसे स्थानों के बारे में भी जांच की जानी चाहिए कि उनका यह स्वरूप कब और कैसे निर्मित हुआ था। सभी जानते हैं कि मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्म भूमि है। इसी के समीप एक मस्जिद भी बनी है। यह सभी जानते हैं कि यह मस्जिद भी मुगल शासकों ने ही बनवाई थी। विवाद आगरा के ताजमहल को लेकर भी उठ रहा है। राष्ट्रीय भाव का जागरण करने वाली अनेक संस्थाओं का मानना है कि ताजमहल वास्तव में भगवान शिव का तेजोमहालय मंदिर है। जिसे मुगलकाल में मुगल शासक शाहजहां ने वर्तमान स्वरूप दिया। हिन्दू समाज यही चाहता है कि भारत में धार्मिक स्थलों का वही स्वरूप आना चाहिए, जो वास्तव में मुगलकाल से पूर्व था। आज के मुसलमानों को भी विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बनाए गए किसी भी स्थल के बारे में अपना दावा छोडक़र हिन्दू समाज को सौंप देना चाहिए। क्योंकि भारत में दोनों ही समाज शांति के साथ रहेंगे तो देश में शांति स्थापित रहेगी।