सोनम लववंशी
हमारा देश संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराओं का देश है। यहां हर ऋतु और महीने में कोई न कोई त्यौहार आते हैं। वर्षा ऋतु के दौरान सावन का महीना आता है। जो अपने आपमें धार्मिक और सामाजिक रूप से काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सावन, शिव-शक्ति और उपासना का माह है। इसी महीने में प्रकृति अपना श्रृंगार करती है। जो हमें यह सीख देती है कि जीवन भी प्रकृति की भांति है। ऐसे में हमें जीवन में कभी भी निराश और हताश नहीं होना चाहिए। सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज मनाई जाती है। हरियाली तीज का अपना एक महत्व है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। कोयल की कुं-कुं करती आवाज़ मन-मस्तिष्क में नई उमंगें भर देती है। हर तरफ़ प्रकृति अपने अद्भुत स्वरूप में होती है। रिम-झिम फुहारों के पड़ते ही हर ओर एक नई उमंग, नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। साथ ही जब बारिश की टिप-टिप करती बूंदे धरती पर गिरती है तो एक सौंधी सी महक मन मोह लेती है और इन्हीं बारिश की बूंदों में घास ऐसे दिखती है। मानो सीप और मोती बिखेर दिए हो। ऐसे में प्रकृति के मनोरम दृश्य को देखकर ऐसी अनुभूति होती है मानों देवराज इंद्र ने अपनी सभा सजाई हो और अप्सराएं सभा की आभा में चार चांद लगाने को तत्पर हो। कुछ ऐसी ही दिखती है इस दौरान प्रकृति। इसी दिन को पूर्वी उत्तर प्रदेश में ‘कजली तीज’ के रूप में मनाते हैं यह दिन आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है। जिसको शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज भी कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं। हरियाली तीज महिलाओं के लिए खासा महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं ससुराल से अपने मायके में आकर इस त्यौहार को मनाती है। अपनी सखी सहेलियों के साथ अपने ससुराल के अनुभव बताती है। बचपन की खट्टी मीठी यादों में खो जाती है।
कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की तप- साधना के बाद भगवान् शिव से मिली थीं। मान्यताएं यह भी है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया था, लेकिन फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। ऐसे में 108वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवन शिव पति रूप में प्राप्त हुए। तभी से इस पर्व को मनाया जाता है। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है। इसके साथ ही कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं और ऐसी मान्यताएं हैं कि उन्हें इस व्रत के करने से मनचाहा योग्य वर की प्राप्ति होती है।
इस दिन लोकगीत गाने की रही है परम्परा
झुला झूल रही सब सखियाँ, आई हरियाली तीज, राधा संग में झूलें कान्हा झूमें अब तो सारा बाग़। ये एक लोकगीत की पंक्ति है। जिसे हरियाली तीज के अवसर पर महिलाओं द्वारा समूह में गाया जाता है। वैसे सावन का महीना ही इतना खूबसूरत होता है कि सुर अपने आप कंठ से निकल पड़ते हैं। तभी तो हिंदी सिनेमा में एक गीत है सावन का महीना, पवन करें शोर। कहने का आशय यह है कि सावन का महीना ही ऐसा है कि सब तरफ रोमांच का माहौल बन जाता है और हरियाली-खुशहाली का माहौल निर्मित हो जाता है। वही जब बात हरियाली तीज की हो। फिर तो बात ही कुछ अलग है, क्योंकि सावन में प्रकृति अपना रूप-रंग ही नहीं बदलती, हमारा जीवन भी बदलता है और इसी सुहानी ऋतु में ही आता है हरियाली तीज।
हरियाली तीज पर हरे रंग का महत्व
हरियाली तीज पर हरे रंग का खास महत्व होता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और हरे रंग के कपड़े पहन कर पूजा करती हैं। हरा रंग शुभता का प्रतीक होता है। हिंदू धर्म में भी हरे रंग को शुभ माना गया है इसलिए हरियाली तीज पर सोलह श्रृंगार में हरे रंग का इस्तेमाल किया जाता है। हरा रंग यौवन का रंग है, सावन हरियाली का महिना है। इसलिए इस माह में हरा रंग पहना जाता है।
पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं महिलाएं
हिन्दू धर्म में हर पर्व का अपना एक अलग महत्व और उससे जुड़ी कहानी है। ऐसी ही कुछ कहानी हरियाली तीज की भी है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति के अखंड सौभाग्य के लिए सोलह श्रृंगार करती हैं, क्योंकि इसे अखंड सौभाग्य की निशानी मनाते हैं। पति की खुशहाली, तरक्की, सेहत और दीर्घायु ही एक पतिव्रता स्त्री की पहली प्राथमिकता होती है। ऐसे में महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करके उपवास के माध्यम से अपने पतियों के लिए मां पार्वती और भगवान शिव से आशीर्वाद मांगती हैं।
रिश्तों में नई ताज़गी भरने का अनूठा पर्व
सावन और हरियाली तीज का आपस में बहुत गहरा नाता है। किसी ऋतु और त्योहार का ऐसा संगम शायद ही देखने को मिलता है। स्त्री जीवन में इस संगम का बहुत महत्व है, क्योंकि जहां एक तरफ सावन की हरियाली हमारे भीतर नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करती है, वहीं हरियाली तीज का अपना एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। तीज पर महिलाएं शिव-पार्वती की आराधना करके अपने मंगलमय दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। तीज न सिर्फ सुखी दांपत्य जीवन की कामना का पर्व है, बल्कि पूरे परिवार के सुखमय जीवन का भी पर्व है। तीज के अवसर पर घर की बहन बेटियां अपने मायके आ जाती है, साथ ही मोहल्ले की सभी महिलाएं भी एक जगह एकत्र होकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। ऐसे में यह पर्व एक-दूसरे को जोड़ने का भी माध्यम है और इससे आपसी रिश्तों में नई ताजगी आती है।