- ड्रैग फ्लिक पर वेरिएशंस खासतौर पर मुश्किल स्थिति में बहुत काम आते हैं
- जिंदगी में कुछ भी हासिल करने के लिए मजबूती से लडऩा चाहिए
- भारत के लिए खेलने का मौका मिला और मैंने खुद को साबित किया
- सीनियर भारतीय हॉकी टीम में चुना जाना मेरे लिए बड़े गौरव का क्षण
- अपने पिता से ही मैंने मेहनत और खुद कमाने की कीमत समझी
- सच कहूं हॉकी खेलने ने मुझे जिंदगी बदलने में मदद की
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : भारत के उदीयमान ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह अपने नाम राशि अपने जमाने के बेहतरीन ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह की तरह अपनी एक अलग पहचान बना कर टीम के तुरुप के इक्के बनने की ओर अग्रसर हैं। नौजवान जुगराज सिंह अभी हाल ही में बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में ऑस्ट्रेलिया से फाइनल में 0-7 से हार दूसरे स्थान पर रही भारतीय टीम के किले के मजबूत प्रहरी थे। जुगराज का बचपन अभावों में गुजरा और उन्होंने वह दौर भी देखा जब ठीक से बमुश्किल बस एक वक्त का खाना ही मयस्सर होता था। घर चलाने के लिए बचपन में जुगराज ने अपने पिता की वाघा बॉर्डर पर पानी की बोतलें और नाश्ता बेचने में मदद की।
25 वर्षीय जुगराज सिंह ने ‘हॉकी पर चर्चा’ के दौरान कहा, ‘हमारी हमारी भारतीय टीम में फिलहाल हरमनप्रीत सिंह, वरुण और मुझ सहित कई बेहतरीन ड्रैग फ्लिकर हैं। हमारी टीम में ड्रैग फ्लिकरों में स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता है। भारतीय टीम में हरमन, वरुण और मैं बतौर ड्रैग फ्लिकर बराबर एक दूसरे को बेहतर करने को प्रेरित करते हैं। इससे हमें मैचों में बतौर टीम वेरिएशंस कर पाते हैं। ड्रैग फ्लिक पर वेरिएशंस खासतौर पर मुश्किल स्थिति में बहुत काम आते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हॉकी टीम आज अपनी प्रतिद्वंद्वी टीम के ड्रैग फ्लिक रुटीन को समझने के लिए पूरी शिद्दत से कोशिश करती हैं। हम इसीलिए पेनल्टी कॉर्नर पर ड्रैग फ्लिक पर वेरिएशंस का इसलिए अभ्यास करते हैं जिससे कि हमारे प्रतिद्वंद्वी को इन पर हमारे ड्रैग फ्लिक वेरिएशंस को समझ नहीं पाए।।Ó
वह कहते हैं, ‘ जिंदगी में कुछ भी हासिल करने के लिए मजबूती से लडऩा चाहिए और मैं लड़ा। मैंने संघर्ष जारी रखा और कभी भी हार नहीं मानी। मुझे भारत के लिए खेलने का जो मौका मिला और मैंने मजबूत से लडऩे का लाभ उठाकर खुद को साबित किया। आज मैंने देश के सरहदी सूबे पंजाब के अटारी में जब हॉकी थामी तब मैं तीसरी कक्षा में था। मैं अपने कॉलेज के बाद चार बरस पहले मैं पंजाब नैशनल बैंक अकादमी में खेलने के लिए दिल्ली आ गया और उसने ही मुझे सबसे पहले खेलने का मौका दिया। पंजाब नैशनल बैंक की टीम की ओर से में प्रतिस्पद्र्धी टूर्नामेंटों में खेला । राष्टï्रीय स्तर के टूर्नांट में रजत पदक जीतने के बाद नौसना की टीम ने अपनी सीनियर टीम में शामिल कर लिया। इसके बाद मैं भारतीय सीनियर हॉकी टीम में एक मौके का बेताबी से इंतजार करने लगा और यह मौका हासिल करने के लिए मैंने बहुत मेहनत की। अंतत: वह क्षण आया जब मुझे सीनियर भारतीय हॉकी टीम के लिए चुन गया। सीनियर भारतीय हॉकी टीम में चुना जाना मेरे लिए बड़े गौरव का क्षण था।’
जुगराज सिंह पहली बार भारत की सीनियर टीम के लिए 2021-22 में एफआईएच हॉकी प्रो लीग में खेले। बेहद साधारण परिवार से आने वाले जुगराज सिंह के पिता वाघा बॉर्डर पर कुली का काम करते हैं। जुगराज अपने अब तक के इस सफर के लिए अपने पिता की कुर्बानियों का बड़ा योगदान मानते हैं। जुगराज जिंदगी के संघर्ष को बयां करते बताते हैं, ‘हमारा परिवार के पास बहुत पैसा नहीं था। जब मैं बालक ही था तब मेरे पिता ही अकेले काम करते थे। बचपन में मैं और मेरा भाई वाघा बॉर्डर जा अपने पिता की यात्रियों को पानी की बोतले और नाश्ता आदि बेचने में मदद करते। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि हफ्ते भर रोज एक ही तरह का भोजन करना पड़ता। मैं अपने पिता का बेहद आभारी हूं कि जिन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए हम स्कूल जाएं बहुत दिक्कतें सही। मेरे पिता ने यह महसूस किया कि मुझे हॉकी खेलने की प्रतिभा है और उन्होंने हॉकी खेलने के लिए हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। वह कहते हैं, ‘बचपन में देखी इन मुश्किलों ने मुझे बतौर व्यक्ति बढिय़ा ढंग से तैयार किया। मैंने हॉकी की अहमियत समझी। मैंने यह भी समझ पाया कि मैं हॉकी से मैं कैसी अपनी और अपने परिवार की जिंदगी बदल सकता हूं। अपने पिता से ही मैंने मेहनत और खुद कमाने की कीमत समझी। हॉकी खेलने से मुझे आर्थिक परेशानियों और निजी दिक्कतों से उबरने और बेहतर खिलाड़ी बनने में मदद मिली। अब मेरे पास वह सब कुछ है जिसकी एक बालक के रूप में मैंने तमन्ना की । यह सब मेरे हॉकी खेलने के कारण ही मुमकिन हो पाया।…. सच कहूं हॉकी खेलने ने मुझे जिंदगी बदलने में मदद की।’