उमेश जोशी
हरियाणा में प्रदेश काँग्रेस कमेटी के नेताओं को चेतावनी दी गई है; कड़े लहजे में। राहुल गाँधी प्रदेश में छह दिन की भारत जोड़ो यात्रा संपन्न कर पंजाब में प्रवेश करने से पहले ‘अपनों’ के सामने अपना दर्द बयाँ करना नहीं भूले लेकिन शब्दों में तल्खी हाई लेवल पर थी, जैसी हाईकमान में होनी चाहिए। वे प्रदेश के नेताओं की कलह से बख़ूबी वाकिफ हैं और दुःखी भी; वर्षों से कलह का स्वर सुन रहे हैं। आलाकमान ने पिछले दो दशकों में कलह मिटाने के सारे प्रयास किए लेकिन कोई नतीज़ा नहीं निकला। दो बार की हार के बावजूद काँग्रेस में धड़े और खेमे बरकरार हैं; खेमेबाज नेता हार से भी कोई सबक नहीं सीख पाए, यूँ कहें, सबक सीखना ही नहीं चाहते।
जीटी रोड बेल्ट (पट्टी) में भारत जोड़ो यात्रा को अप्रत्याशित समर्थन मिला है। ऐसा समर्थन जो सत्ता का सपना साकार कर सकता है। सभी पद यात्री अभिभूत थे लेकिन राहुल गाँधी के मन में एक फाँस चुभ रही थी जिसकी वेदना नेताओं को कड़ी चेतावनी के रूप में बाहर आई। राहुल गाँधी इस विरोधाभास से असहज थे कि वे एक तरफ भारत जोड़ने के लिए निकले हैं, दूसरी ओर प्रदेश काँग्रेस कमेटी की दरारें पाट कर उसे जोड़ने में नाकाम हैं। राहुल गाँधी को आख़िरकार उन नेताओं को चेताना ही पड़ा जो अपनी ‘चौधर’ की धमक बनाए रखने के लिए पार्टी का अहित करने से भी बाज नहीं आते; अपना अपना मठ बना कर पार्टी को महामंडलेश्वरों की तरह चलाते हैं। राहुल गाँधी ने कहा कि प्रदेश काँग्रेस कमेटी यानी पीसीसी को एकजुट होना ही होगा वरना हरियाणा में सत्ता पाने का सपना साकार नहीं हो पाएगा। राहुल ने यह भी संकेत दे दिया कि एकजुट होकर काम करने में यकीन ना रखने वालों को बाहर का दरवाज़ा भी दिखाया जा सकता है। यह दीगर बात है कि अभी तक किसी को भी पार्टी से बाहर नहीं किया गया है। चूंकि यह सुझाव कड़े लहजे में था इसलिए इसे आदेश की तरह माना गया।
हरियाणा की राजनीति के पिछले पन्ने उलटने पर यह साबित हो जाता है कि जीटी रोड बेल्ट में जो जीतेगा, प्रदेश में वही सिकंदर होगा; सत्ता की बागडोर उसी के हाथ में होगी। हालाँकि जीटी रोड बेल्ट में आमतौर पर चार लोकसभा क्षेत्र मानते हैं जिनमें सोनीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला शामिल हैं। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक सोनीपत का पूरा इलाका इस बेल्ट में शामिल नहीं करते क्योंकि इसका अधिकांश क्षेत्र जाटलैंड में आ जाता है। जीटी रोड बेल्ट में जाटों की संख्या बहुत कम है। यह क्षेत्र पंजाबी बहुल है। इसके अलावा ओबीसी, अनुसूचित जाति, बाह्मण और वैश्य मतदाओं की संख्या भी खासी है। इस दृष्टि से जीटी रोड बेल्ट समालखा से कालका तक मानी जाती है जिसमें सोनीपत हटाने के बाद तीन लोकसभा क्षेत्र रह जाते हैं। प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा सीटें हैं इसलिए जीटी रोड बेल्ट में कुल 27 सीटें मानी जाती हैं। सन् 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर हवा बह रही थी इसलिए बीजेपी ने इस बेल्ट की 27 सीटों में से 22 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी। वर्ष 2014 से पहले इस बेल्ट में कांग्रेस का दबदबा होता था। वर्ष 2019 में काँग्रेस ने इस क्षेत्र में बीजेपी को पीछे धकेल दिया और नतीजा यह हुआ कि वह पूर्ण बहुमत से छह सीटें दूर 40 सीटों पर अटक गई।
इस क्षेत्र में काँग्रेस ने बीजेपी से नौ सीटें वापस ली थीं। बीजेपी अन्य क्षेत्रों में इस नुकसान की पूरी तरह भरपाई नहीं कर पाई। दूसरे क्षेत्रों से दो सीटों की ही भरपाई हो सकी। 2014 में बीजेपी को कुल 47 सीटें मिली थीं जबकि 2019 में जीटी रोड बेल्ट के खिसकने से पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी।
हरियाणा का राजनीतिक इतिहास पिछले चुनावी नतीजों के आधार पर यही बताता है कि जीटी रोड बेल्ट को जीतने वाली पार्टी ही सत्ता हासिल करती है। राहुल गाँधी ने इस बेल्ट में आंशिक रूप से खोया हुआ आधार वापस लाने के लिए एक दरवाज़ा खोल दिया है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिए इस बेल्ट की जनता का मानस बदलने की कोशिश की है जिसमें वे काफी हद तक कामयाब हुए हैं। राहुल के साथ उमड़ा जनसैलाब सत्ता परिवर्तन की ओर संकेत दे रहा है। लेकिन यह संकेत भर है, इसे चुनावी विजय नहीं कहा जा सकता। इस जनसैलाब को मतों में बदलने का काम प्रदेश काँग्रेस कमेटी को करना है। यह इतना आसान भी नहीं है। पीसीसी के सभी नेताओं को मिलकर प्रयास करने होंगे; आपसी टकराव ख़त्म करना होगा; सभी नेताओं को एक ही डफली पर समवेत स्वर में ‘एकता’ का राग गाना होगा ताकि कार्यकर्ताओं का दरकता मनोबल फिर से मजबूत किया जा सके। जनता का दिल राहुल गाँधी ने जीत लिया है; अब उनका वोट पाना स्थानीय नेताओं का काम है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि भीड़ या जनसैलाब को वोटों में तब्दील करना बेहद मुश्किल काम है और राहुल गाँधी इसी काम का जिम्मा पीसीसी के नेताओं को सौंप कर गए हैं। अभी विधानसभा चुनाव में पौने दो साल बाक़ी हैं। इससे पहले करीब डेढ़ साल बाद लोकसभा चुनाव होंगे। उन चुनावों के नतीजे साबित कर देंगे कि राहुल गाँधी की ‘फटकार’ ब्रांड नसीहत का कितना असर हुआ है।