
अशोक भाटिया
डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने पर भारत को फायदे की उम्मीद थी। माना जा रहा था कि दोनों देशों के रिश्ते और बेहतर होंगे, लेकिन व्यापार समझौते पर बातचीत के अटकने के बाद सब कुछ उलट गया है। अमेरिका ने भारत पर उसके पड़ोसी देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा पहले 25 फीसदी व अब 50 फीसदी का टैरिफ थोप दिया है। अब सवाल यह है कि क्या यह बदलाव भारत की विदेश नीति को ही बदल देगा और भारत-रूस-चीन (RIC) के गठजोड़ को मजबूत करेगा?
गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने करीब एक महीने बाद 2 अप्रैल को भारत समेत 69 देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह 9 अप्रैल से लागू होने वाला था, लेकिन ट्रम्प ने तब इसे टाल दिया। अमेरिकी प्रेसिडेंट ने कहा कि वे दुनियाभर के देशों को अमेरिका के साथ समझौता करने के लिए 90 दिनों का वक्त दे रहे हैं।31 जुलाई को समझौते की तारीख खत्म हो गई। इस दिन ट्रम्प ने 100 से ज्यादा देशों पर टैरिफ लगाया। जिन देशों ने अमेरिका के साथ समझौता किया, उन पर 10 से 20% टैरिफ लगा और जिन देशों ने ऐसा नहीं किया, उन पर 25 से 50% का टैरिफ लगा। भारत पर पहले 25% व अब 50 % का टैरिफ लगा, क्योंकि उसने ट्रम्प की शर्तें नहीं मानीं।
अब भारत के प्रतिद्वंद्वी चीन से भी रिएक्शन आया है, जिसमें ट्रंप के नए टैरिफ की निंदा करते हुए अमेरिका की तुलना उस बदमाश से की है, जो दूसरों पर धौंस जमाता है। नई दिल्ली में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इशारों में अमेरिका के सामने न झुकने का संदेश दिया और कहा , ‘बदमाश को एक इंच दो, तो वह मील भर ले लेगा।’इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत के खिलाफ 50 फीसदी टैरिफ लगाने पर चीन से अब नई दिल्ली को बड़ा समर्थन मिला है। भारत में चीनी राजदूत शू फेइहोंग के अमेरिका को ‘बुली’ बताए जाने के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने बड़ा हमला बोला है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जैकून ने कहा कि अमेरिका रूसी तेल लेने पर भारत के खिलाफ टैरिफ लगाकर इसका दुरुपयोग कर रहा है। टैरिफ को लेकर चीन की एक स्पष्ट नीति है और इसका विरोध करता है। चीनी प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका तकनीक और ट्रेड के मुद्दों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। चीन का सरकारी मीडिया भी खुलकर भारत के समर्थन में लिख रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि चीन इस मौके को भुना रहा है और भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।
इससे पहले भारत में चीनी राजदूत ने एक्स पर एक पोस्ट करके अमेरिका पर कड़ा हमला बोला था। शू ने ट्रंप का नाम लिए बिना कहा, ‘बुली को एक इंच दो तो वह एक मील ले लेगा।’ भारत की तरह से ही ब्राजील भी 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ का सामना कर रहा है। यह अमेरिका की ओर से किसी ट्रेडिंग पार्टनर पर लगाया गया सबसे ज्यादा टैरिफ है। इससे पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी अमेरिका का नाम नहीं लिया लेकिन टैरिफ को हथियार के रूप में इस्तेमाल करके अन्य देशों को दबाने के फैसले की आलोचना की थी।
इस बीच अमेरिका के विशेष व्यापारिक दूत स्टीव विटकॉफ और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई मुलाकात को अमेरिका ने सकारात्मक बताया है। विटकॉफ-पुतिन मुलाकात के बाद अमेरिका ने भारत पर और 25 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। हालांकि, चीन पर फिलहाल अमेरिका ने टैरिफ नहीं लगाया है। वाइट हाउस के एडवाइजर पीटर नवारो ने एबीसी न्यूज से साक्षात्कार के दौरान कहा कि अमेरिका रूसी तेल की खरीद पर चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने में जल्दबाजी नहीं कर रहा है। हम उस बिंदु पर नहीं जाना चाहते, जहां हम वास्तव में खुद को नुकसान पहुंचाएं। चीन पहले से ही कई वस्तुओं पर 50 फीसदी टैरिफ के अधीन है।
नवारो ने आगे कहा कि वॉशिंगटन रूस के साथ चीन के ऊर्जा संबंधों पर नजर रख रहा है। हम इंतजार कर रहे हैं। तत्काल किसी कार्रवाई की कोई योजना नहीं है। पीटर नवारो की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका रूस से ऊर्जा खरीदने वाले देशों पर व्यापार दंड कड़ा कर रहा है, लेकिन यह टैरिफ युद्ध को और बढ़ाने से होने वाले आर्थिक नुकसान की चिंताओं को भी रेखांकित करता है। भारत की तरह चीन पर भी रूस से तेल खरीदने की स्थिति में अमेरिका ने 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। लेकिन, ट्रंप ने सिर्फ भारत पर ही टैरिफ लगाया है; चीन के खिलाफ ऐसी कार्रवाई से फिलहाल वह बच रहे हैं।
बताया जाता है कि व्हाइट हाउस में विदेश विभाग के प्रिसिंपल उपप्रवक्ता टॉमी पिगॉट से जब पूछा गया कि पीएम मोदी सात साल में पहली बार चीन जा रहे हैं। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने ब्राजील और चीन जैसे देशों पर अमेरिकी टैरिफ की आलोचना की है। क्या आप चिंतित हैं कि टैरिफ के खिलाफ BRICS एकजुट हो रहा है? इस पर पिगॉट ने कहा कि भारत से व्यापार असंतुलने को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप बहुत स्पष्ट हैं, विशेष रूप से रूस से तेल खरीदने के संदर्भ में। आपने देखा भी होगा कि राष्ट्रपति ने इस पर सीधेतौर पर एक्शन भी लिया है।
उन्होंने कहा कि भारत हमारा स्ट्रैटेजिक पार्टनर है, जिनके साथ हमारे अच्छे और दोस्ताना संबंध हैं, जो जारी रहेंगे। जैसे की विदेश नीति में भी होता है, आपर हमेशा अपने साझेदार देश के साथ 100 फीसदी सहमत नहीं हो सकते लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप भारत के साथ व्यापार असंतुलन को लेकर स्पष्ट है।
बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में जापान और चीन की यात्रा पर जाएंगे। वह 31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच चीन के तियानजिन शहर में आयोजित होने वाली SCO समिट में हिस्सा लेंगे। रूस भी SCO का सदस्य है, वह समिट में अपने प्रतिनिधिमंडल को भेज रहा है, लेकिन राष्ट्रपति पुतिन की उपस्थिति अब तक तय नहीं है। SCO में 9 सदस्य देश हैं, इसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल है। पीएम मोदी की 2018 के बाद ये पहली चीन यात्रा होगी। साथ ही 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद वह पहली बार चीन की जमीन पर कदम रखेंगे। इससे पहले जून के महीने में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह चीन के किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षामंत्रियों की बैठक में शामिल हुए थे, जहां उन्होंने एक ऐसे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, जिससे भारत की आतंकवाद के प्रति सख्त नीति को लेकर स्थिति कमजोर पड़ सकती थी।
दुःख की बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस समय भारत से अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकाल रहे हैं। तभी तो उन्होंने सारे देशों को छोड़ सिर्फ भारत पर ही 50 फीसदी का टैरिफ ठोक दिया है। ट्रंप के दायरे में भारत ही नहीं, रूस और चीन भी आ गए हैं। इसका मतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति इस समय रूस, भारत और चीन पर एकसाथ हमलावर हो गए हैं। ऐसे में हर आदमी के मन में यही सवाल उठ रहा कि क्या ये तीनों देश मिलकर अमेरिका की दादागिरी खत्म कर सकते हैं। अमेरिका को सबसे ज्यादा लाभ ग्लोबल मार्केट में डॉलर में होने वाले ट्रेड से होता है। तो क्या, रूस-भारत और चीन मिलकर डॉलर का मुकाबला कर सकते हैं।
इस बात का जवाब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की झुंझलाहट से ही मिल जाता है। आपको याद होगा जब ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ट्रंप ने डॉलर का विकल्प बनाने को लेकर रूस, भारत और चीन को धमकी दी थी। ट्रंप ने कहा था कि अगर ब्रिक्स देश मिलकर डॉलर कमजोर करने की साजिश करते हैं तो इन देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगा दिया जाएगा। फिलहाल भारत ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की और उस पर ट्रंप 50 फीसदी का टैरिफ लगा चुके हैं। जाहिर है कि उनके मन में इस बात को लेकर काफी डर है कि अगर तीनों देश साथ आ गए तो डॉलर को नुकसान हो सकता है।
अमेरिकी डॉलर को टक्कर देने के लिए भारत ने भले ही अभी तक कोई खास कदम न उठाया हो, लेकिन रूस और चीन लंबे समय से कोशिश कर रहे हैं। चीन ने अपने ज्यादातर साझेदारों से स्थानीय मुद्रा युआन में कारोबार बढ़ाना शुरू कर दिया है। रूस ने भी यूक्रेन युद्ध के बाद डॉलर में लेनदेन को काफी हद तक कम किया है और अपनी स्थानीय मुद्रा में कारोबार कर रहा है। वैसे तो भारत ने भी ईरान, रूस सहित कुछ देशों के साथ रुपये में लेनदेन किया है, लेकिन अभी तक ग्लोबल मार्केट में कोई उल्लेखनीय डील स्थानीय करेंसी में नहीं हुई। हां, अगर तीनों ही देश मिलकर अपनी-अपनी करेंसी में कारोबार शुरू करते हैं तो डॉलर को कड़ी टक्कर दी जा सकती है।
ज्ञात हो कि अमेरिका को अपनी बादशाहत कायम रखने और कारोबार बढ़ाने के लिए बड़े बाजार की जरूरत है। यह बात पूरी दुनिया को पता है कि भारत और चीन दो सबसे बड़ी जनसंख्या यानी उपभोक्ता वाले देश हैं। यही दोनों देश दुनिया की फैक्ट्री भी हैं। चीन तो सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जबकि भारत दुनिया की दूसरी फैक्ट्री बनने की राह पर है। इसका मतलब है कि यह दोनों देश न सिर्फ बड़े उत्पादक हैं, बल्कि सबसे बड़े उपभोक्ता वाले देश भी हैं। अगर रूस के साथ मिलकर ये तीनों देश अपनी मुद्रा में लेनदेन और कारोबार करते हैं तो निश्चित रूप से डॉलर को बड़ी चुनौती मिल सकती है।
भारत, रूस और चीन का आपस में कुल व्यापार भी लगातार बढ़ता जा रहा है। वित्तवर्ष 2023-24 में रूस और भारत के बीच द्विपक्षीय कारोबार 65 अरब डॉलर से ज्यादा रहा था, जबकि भारत और चीन का कारोबार 130 अरब डॉलर से अधिक रहा है। इसी तरह, रूस और चीन का कारोबार भी 200 अरब डॉलर से ज्यादा ही रहा। इस तरह, अगर तीनों देशों के बीच कुल कारोबार को देखा जाए तो यह करीब 390 अरब डॉलर के आसपास रहा है। इसके 400 अरब डॉलर से भी ज्यादा पहुंचने का अनुमान है। अगर तीनों ही देश अकेले-अकेले अमेरिका का मुकाबला करेंगे तो यह मुश्किल होगा, क्योंकि उसका कुल कारोबार चीन से भी ज्यादा है। लेकिन, अगर चीन-भारत और रूस मिलकर अमेरिका के सामने खड़े होते हैं तो यह आंकड़ा अमेरिका के कुल कारोबार से कहीं ज्यादा बैठता है। आंकड़े साफ बताते हैं कि अगर तीनों ही देश मिलकर अमेरिकी डॉलर के सामने खड़े होते हैं तो निश्चित रूप से इसका मुकाबला ग्लोबल मार्केट में कर सकते हैं।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार