नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली : राजस्थान की दृष्टि से रविवार को तीन बड़ी घटनाएँ हुई पहली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को देश के सबसे लम्बे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे के प्रथम चरण सोहना से दौसाआठ लेन मार्ग को राष्ट्र को समर्पित किया और कुछ अन्य सड़क परियोजनाओं का शुभारम्भ करने के साथ ही राजस्थान को एकसाथ कई सौग़ातें दी । राष्ट्रीय महत्व के इस कार्यक्रम में हालाँकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शामिल नही हुए लेकिन उन्होंने जयपुर हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री मोदी से शिष्टाचारमुलाक़ात कर इस कमी की भरपाई की ।साथ ही उन्होंने दौसा जिले के धनवाड गाँव में आयोजित प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से वर्चुअल ढंग से जुड़ कर केन्द्र सरकार से एक बार फिर से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों की पेयजल और सिंचाई की दृष्टि से महत्वाकांक्षी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) की मंज़ूरी देने और इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने सहित अन्य कई माँगे रखी ।प्रधानमंत्री मोदी ने भी सार्वजनिक तौर से पहली बार बताया कि केन्द्र सरकार ने इस परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार को भेजी है और उनकी सहमति मिलने के बाद ही इस पर आवश्यक कार्यवाही की जायेंगी। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे के प्रथम चरण को राष्ट्र को सुपुर्द करने से पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली में स्वामी दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती के सालाना कार्यक्रमों का शुभारम्भ भी किया। यह सर्व विदित ही हैकि गुजरात में जन्मे दयानन्द सरस्वती की कर्म भूमि राजस्थान रही और उन्होंने यहाँ सत्यार्थ प्रकाश जैसा कालजयी ग्रंथ लिखा तथा अंतिम साँस भी प्रदेश के अजमेर में ही ली ।
राजस्थान के लिहाज से तीसरी बड़ी घटना राष्ट्रपति द्वारा प्रदेश के क़द्दावर भाजपा नेता और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चन्द कटारिया को असम का राज्यपाल नियुक्त करने की घोषणा करना है। दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़ और वागड़ अंचलसे पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हरिदेव जोशी के बाद कटारिया असम का राज्यपाल बनने वाले दूसरे बड़े दिग्गज नेता होंगे।कटारिया को राज्यपाल बनाने को राजस्थान की राजनीति विशेष कर मेवाड़ और इससे सटे इलाक़ों की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर माना जा रहा है।राजस्थान में इस वर्ष के अन्त में विधानसभा के चुनाव होने है । भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस दृष्टि से अब फ़ैसलें लेना शुरू कर दिया है। अभी प्रदेश भाजपा बिखरी सी लगती है और इस कारण पिछलें कई उप चुनावों में उसे पराजय का सामना करना पड़ा हैं।मीडिया में मुख्यमंत्री के कई दावेदारों के नाम आने और पार्टी के अलग अलग गुटों में बटें होने के साथ ही गहलोत सरकार के चार वर्ष पूरे होने के बावजूद प्रदेश में सत्ता विरोधी हवा नहीं होने को प्रदेश भाजपा द्वारा जनता के मध्य ज्वलन्त मुद्दे प्रभावी ढंग से नही उठायें जाने की कमजोरी माना जा रहा है।दिवंगत भेरोंसिंह शेखावत के कार्यकाल के बाद प्रदेश में हर पाँच वर्ष में हिमाचल प्रदेश की तरह सरकारें बदलने की परंपरा बनी हुई है । इस लिहाज से अबकी बार प्रदेश में सत्ता में आने की बारी भाजपा की है लेकिन प्रदेश में अभी भी पार्टी में अपेक्षित एकजुटता नही दिखाई दे रही। इस लिहाज से शीर्ष नेतृत्व ने वरिष्ठ नेता कटारिया को प्रदेश की राजनीति से अलग करने का फैसला कर अपना “ओपरेशन राजस्थान”शुरू कर दिया है ।साथ ही सत्तर से अधिक उम्र के नेताओं को सक्रिय राजनीति से दूर करना भी शुरू कर दिया हैं। हालाँकि कटारिया को राज्य से दूर करने के दूरगामी परिणाम क्या होंगे ? यह देखना होगा क्योंकि इसका सबसे बड़ा असर मेवाड़ और वागड़ के राजनीतिक परिदृश्य पर होने वाला है। इस संभाग में भाजपा के पास कटारिया से बड़ा कोई नही नेता है। माना जाता है कि जो दल इस अंचल में बढ़त लेता है प्रदेश में उसकी सरकार बनती है।कटारिया ने साठ-सत्तर के दशक में आरएसएस के स्वयंसेवक और पार्टी के एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक केरियर शुरू किया था। उस कालखंड में कांग्रेस के दिग्गज मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाडिया के प्रदेश ने एक छत्र राज के विरुद्ध तत्कालीन स्वतन्त्र पार्टी के नेता डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मणसिंह अकेले संघर्ष कर रहें थे और वे जनसंघ के भानु कुमार शास्त्री को भी हर संभव सहयोग करते थे।तब उदयपुर के डूंगरपुर हाऊस में कटारिया एक साधारण पार्टी कार्यकर्ता के रूप में झण्डे,बेनर, बेच,प्रचार सामग्री आदि लेकर फ़ील्ड में जाते थे। कालान्तर में 1977 में जनता सरकार के आगमन के बाद कटारिया का वर्चस्व बढ़ता गया। उन्होंने उदयपुर शहर और जनजाति इलाक़ों में भी अपना और पार्टी संगठन का प्रभाव बढ़ाया और धीरे-धीरे वे पूरे संभाग में भाजपा के एक छत्र नेता बन कर उभरें लेकिन पहले भेरोंसिंह शेखावत और बाद में वसुन्धरा राजे के मुख्यमंत्री बनने के कारण उन्हें इस पद पर आने का मौक़ा कभी नही मिल पाया।ढलती उम्र में प्रायः अपने बयानों से चर्चा में रहने के कारण और एक वर्ग विशेष के प्रति उनके अनुराग ने कटारिया को कई बार कमजोर भी किया, लेकिन संघनिष्ठ और बेबाक़ ठंग से अपनी बात रखने वाले कटारिया को विधानसभा में एक बार पुनःप्रतिपक्ष का नेता बनने से कोई रोक नही पाया। अब उन्हें राज्यपाल बनाने से भाजपा को राज्य विधान सभा में प्रतिपक्ष का नया नेता चुनना पड़ेगा। साथ ही विधानसभा चुनाव में अभी भी आठ नौ महीने का समय बाकी होने से पार्टी को उदयपुर शहर विधायक का पद खाली होने से एक और उप चुनाव का सामना भी करना पड़ेगा।हालाँकि पार्टी में वटवृक्ष बने कटारिया के प्रदेश की राजनीति से दूर जाने से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहें पार्टी के अन्य कई कार्यकर्ताओं की उम्मीदें अब अवश्य जगी हैं।
कुल मिला कर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गुजरात और अन्य प्रदेशों की तरह राजस्थान में भी अपने प्रयोग शुरू कर दिए है और इसकी बानगी कटारिया बने है। आगे केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का विस्तार और केन्द्रीय संगठन में फेरबदल भी होना है।देखना होगा कि आगे प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और कौन-कौन से प्रयोग कर राजस्थान के क़िले को हासिल करने की कौशिश करेगा।साथ ही सबकी निगाहें इस ओर भी रहेगी कि मरुस्थल प्रधान इस प्रदेश की राजनीति में अगले वर्ष ऊँट किस करवट बैठेगा?