चुनाव आयोग पर फूटा राहुल का ‘एटम बम’ ?

Has Rahul's 'atom bomb' exploded on Election Commission?

तनवीर जाफ़री

भारत वर्ष को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जहां दुनिया जानती है वहीं यहाँ होने वाले चुनाव भी पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कई बार विश्व के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल हमारे विशाल देश की चुनावी प्रक्रिया को देखने व समझने के लिये चुनावों के दौरान भारत आते रहे हैं। उधर भारतीय चुनाव आयोग जहां इस विशाल चुनाव के सफल संचालन का हमेशा श्रेय लेता आया है वहीं इन्हीं चुनावों में प्रायः कहीं न कहीं चुनावी धांधली के आरोप भी लगते रहे हैं। विगत में लोकसभा व विधानसभा के कुछ चुनाव तो ऐसे भी संपन्न हुये जिनके परिणामों ने चुनाव पूर्व होने वाले सभी सर्वेक्षणों को पूरी तरह नकार दिया। वैसे भी जब से देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM ) के माध्यम से वोट पड़ने शुरू हुये हैं उसी समय से मतदान की निष्पक्षता पर सवाल उठते रहे हैं। स्वयं भारतीय जनता पार्टी के ही वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी , पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी, व राज्यसभा सांसद जी.वी.एल. नरसिम्हा राव जैसे कई प्रमुख नेताओं ने समय-समय पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुये इसके इस्तेमाल का विरोध किया है।

बहरहाल 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद EVM की विश्वसनीयता का सवाल अब विपक्षी दलों द्वारा किया जाने लगा है। पिछले एक दशक से होने वाले लगभग सभी चुनावों में EVM से होने वाली धांधलियों के अनेक आरोप लगते रहे हैं। कभी EVM बदलने के तो कभी EVM चोरी होने के। कभी मतदाताओं को यह कहते सुना गया कि उन्होंने वोट तो कहीं और दिया परन्तु VVPAT मशीन किसी दूसरे निशान पर वोट पड़ा बताती है। हालाँकि पिछले चुनावों में कई बार कई राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें भी बनीं परन्तु EVM का विरोध निरंतर जारी रहा। दिल्ली में जंतर मंतर पर अनेक बार EVM विरोधी प्रदर्शन भी हुये। देश के वकीलों का एक बड़ा वर्ग खुलकर EVM के विरोध में खड़ा हुआ परन्तु सरकार व चुनाव आयोग EVM पर ही विश्वास जताते रहे। परन्तु अब मामला EVM की विश्वसनीयता से भी आगे बढ़कर वोटर लिस्ट में हो रही भयंकर धांधली का उजागर हुआ है। और इसका भंडाफोड़ किया है लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने।

गत 7 अगस्त को राहुल गांधी ने ‘बड़े पैमाने पर हो रही चुनावी धोखाधड़ी को उजागर किया। उन्होंने विशेष रूप से कर्नाटक के बेंगलुरु मध्य लोकसभा क्षेत्र में, महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए मतदाता सूचियों में, विशिष्ट अनियमितताओं को उजागर किया। राहुल गांधी ने दावा किया कि केवल (महादेवपुरा) क्षेत्र में, कुल 6.5 लाख मतदाताओं में से, 1 लाख से अधिक फ़र्ज़ी मतदाताओं को मतदाता सूची में जोड़ा गया, जिससे उस क्षेत्र में भाजपा की 1,14,046 मतों के महत्वपूर्ण अंतर से जीत हुई। उन्होंने मतदाता सूची में विसंगतियों के उदाहरण दिए और मतदाता सूचियों में हेराफेरी,डुप्लिकेट मतदाता,साक्ष्यों का विनाश और पारदर्शिता का अभाव:,असामान्य मतदान पैटर्न आदि विषयों को प्रमाण सहित उठाया। गांधी ने कथित वोट चोरी में शामिल चुनाव आयोग के शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारियों को चेतावनी भी दी कि उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद भी परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने उनके कार्यों को “देशद्रोही” और राष्ट्रहित के विरुद्ध क़रार दिया, और कहा कि कांग्रेस उन्हें जवाबदेह ठहराएगी। राहुल गांधी ने छः महीने की कड़ी मशक़्क़त के बाद कांग्रेस द्वारा जुटाए गए इन सबूतों को “परमाणु बम” का नाम दिया। उन्होंने कहा कि इनके सार्वजनिक प्रकाशन से चुनाव आयोग की भूमिका उजागर हो जाएगी और उसके पास “छिपने की कोई जगह नहीं बचेगी।”

दरअसल राहुल गाँधी के मांगने पर चुनाव आयोग ने लगभग तीन क्विंटल से भी अधिक काग़ज़ों के विशाल बण्डल उन्हें भेजे थे। राहुल ने अपने विशेषज्ञों के साथ इन काग़ज़ात में से केवल 4 किलो काग़ज़ का चुनाव किया और बड़ी बारीकी से उनका डेटा अध्ययन किया। जब इन काग़ज़ात में ही वोटों की बड़ी चोरी पकड़ी गयी तभी राहुल गांधी इस नतीजे पर पहुँच गये कि जब 4 किलो काग़ज़ात फ़र्ज़ी हैं तो शेष सैकड़ों किलो काग़ज़ात भी फ़र्ज़ी ही हैं। गोया अब सवाल महादेवपुरा विधानसभा का ही नहीं बल्कि देश की प्रत्येक विधानसभा और लोकसभा सीटों के चुनाव का है ? यही वजह है कि अब राहुल गाँधी देश की सभी 543 लोकसभा का वोटर डेटा मांग रहे हैं। वह इसीलिये “मशीन रिडेबल” डेटा की मांग कर रहे हैं ताकि डेटा और फ़ोटो एनालिसिस हो सके। कांग्रेस का मानना है कि यदि चुनाव आयोग ने मशीन डेटा दे दिया तो मात्र 7 दिनों में हर एक वोटर की पहचान हो जाएगी और SIR करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी। और मशीन डेटा से रोहंगिया , बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, नेपाली जो भी फ़र्ज़ी मतदाता होंगे सभी सामने आ जायेंगे।

परन्तु आश्चर्य है कि भारतीय इतिहास में पहली बार नेता प्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा चुनाव आयोग पर इतने गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। पूरी सरकार व प्रधानमंत्री तक को फ़र्ज़ी सरकार का फ़र्ज़ी प्रधानमंत्री बताया जा रहा है। परन्तु भाजपा व चुनाव आयोग दोनों ही एक दूसरे के पीछे छिपने की कोशिश कर रहे हैं। वही पुराना राग अलाप रहे हैं कि राहुल गांधी के आरोप “निराधार”, “शर्मनाक” और “लोकतंत्र का अपमान” हैं। और भाजपा नेताओं के अनुसार ये आरोप कांग्रेस की हार से उपजी हताशा का परिणाम हैं । उन्होंने कांग्रेस को क़ानूनी रास्ता अपनाने की चुनौती दी और निर्वाचन आयोग की ‘निष्पक्षता’ का बचाव किया। साथ ही भाजपा ने इसे कांग्रेस द्वारा संवैधानिक संस्थानों पर हमले के रूप में वर्णित किया।

याद कीजिये केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का वह आरोप जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके लोकसभा क्षेत्र में साढ़े तीन लाख वोटरों के नाम काट दिये गए थे। किसने कटवाये थे यह नाम ? क्यों काटे गये ? ऐसी अनियमिताओं की ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की नहीं तो किसकी है ? किसके इशारे पर होता है यह काम ? क्या यह देश के लोकतांत्रिक ढांचे के ख़िलाफ़ “साजिश” नहीं ? राहुल गांधी ने यह आरोप भी लगाया कि महाराष्ट्र में केवल पाँच महीनों में लगभग 40 लाख संदिग्ध मतदाताओं को मतदाता सूची में जोड़ा गया, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पैदा होता है। उधर महाराष्ट्र में ही कई प्रत्याशी भी यह कहते सुने गये कि भाजपा नियंत्रित अधिकांश बूथ पर शाम पांच बजे के बाद ‘अनजान मतदाताओं’ की बड़ी भीड़ इकठ्ठा हुई थी। कौन थे कहां से आये थे ये मतदाता ? चुनाव आयोग को नेता प्रतिपक्ष के प्रत्येक संदेह व आरोप का संतोषजनक उत्तर देना चाहिये ताकि देश और दुनिया यह जान व समझ सके कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव निष्पक्ष संपन्न होते हैं। और जो भी ऐसी साज़िशों के स्वयंभू ‘चाणक्य ‘ हों उन्हें बेनक़ाब कर उनके विरोध देशद्रोह का मुक़ददमा चलना चाहिये। अन्यथा राहुल से हलफ़नामा मांगने जैसी बातें करना तो उनके संगीन आरोपों से मुंह छुपाने का बहाना मात्र प्रतीत होती हैं।