क्या श्रीलंका,बांग्लादेश और नेपाल में भड़के सार्वजनिक आक्रोश का भूत भारत घुस गया ?

Has the ghost of public outrage that erupted in Sri Lanka, Bangladesh and Nepal entered India?

अशोक भाटिया

बुधवार को आशंका जताई जा रही थी कि श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में भड़के सार्वजनिक आक्रोश और हिंसा का भूत सीमा पार कर भारत में घुस गया था और लेह विस्फोट कुछ ही घंटों में उसके पड़ोस में आग की तरह भड़क गया था, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी और 70 लोग घायल हो गए थे। सुरक्षा बलों के बारह वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया और संपत्ति को नुकसान पहुंचा दिया गया और सुरक्षा गार्डों को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। इसके विपरीत, सुरक्षा बलों पर आत्मरक्षा में हमला किया गया , जिसमें चार लोगों के मारे जाने की खबर है। प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी और लेह स्वायत्त हिल काउंसिल के कार्यालयों पर हमला किया, जिससे सुरक्षा बलों के लिए प्रदर्शनकारियों की पहचान करना आसान हो गया।इस तरह की धारणा शुरू में फैलाई गई थी। लेकिन, फिर वह चला गया।

बताया जाता है कि प्रदर्शनकारियों की चार मांगें रही हैं। पहली लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। दूसरी, लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। तीसरी, लद्दाख में लोकसभा सीटें बढ़ाकर दो की जाएं और चौथी लद्दाख की जनजातियों को आदिवासी का दर्जा दिया जाए। छात्रों ने इन मांगों के समर्थन में रैली भी निकाली । बता दें कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 निरस्त करते हुए केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया था। जम्मू-कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश जबकि लेह, लद्दाख और करगिल को मिलाकर एक प्रदेश बनाया गया था। अब उसी लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठ रही है।

दरअसल लद्दाख 31 अक्टूबर, 2019 को केंद्र शासित प्रदेश बन गया, जब केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त कर दिया। बाहर से आक्रमण का भय नहीं था, लेकिन जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों में बहुत बड़ा डर पैदा हो गया है। छठी अनुसूची में शामिल होने से नागरिकों को स्वायत्तता और स्वशासन के वही अधिकार मिलते हैं जो असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों को मिलते हैं यही लद्दाख की मांग है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाना, अलग राज्य का दर्जा देना संवेदनशील और जोखिम भरा है, इसलिए जब हमें विश्वास हो जाएगा कि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है, तो हम लद्दाख के लोगों की मांगों पर जरूर विचार करेंगे।

केंद्र सरकार लद्दाख के लोगों की मांगों के प्रति सकारात्मक है और आंदोलनकारी संगठनों के साथ बातचीत करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। आंदोलनकारी संगठनों के बीच पहले दौर की वार्ता 27 मई को हुई थी और दूसरा दौर 25 जुलाई को होना था, लेकिन किसी कारण से इसे 25-26 सितंबर और फिर 6 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया गया था। अचानक भड़कने की वजह बताना मुश्किल है। प्रदर्शनकारियों को मांगें कितनी भी जायज क्यों न लगें, लेकिन संवैधानिक प्रावधानों का सवाल ही है। ऐसे मामलों को वैध तरीके से निपटाया जाना चाहिए, न कि अनुचित आक्रामकता से, जो सीमा पार हुआ वह भारत में नहीं हो सकता।

अब लेह में हिंसा के बाद सरकार ने और कड़ा कदम उठाया है। सरकार ने क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की एनजीओ का एफसीआरऐ लाइसेंस रद्द कर दिया है। अधिकारियों के अनुसार, हिंसा और सामूहिक तनाव फैलाने के मामलों की जांच के बाद यह फैसला लिया गया। सरकार ने स्पष्ट किया कि किसी भी संगठन को देश में कानून और व्यवस्था बिगाड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सोनम की एनजीओ के खिलाफ विदेशी योगदान नियमों का उल्लंघन और रिपोर्टिंग में अनियमितताओं का हवाला दिया गया है। इस कदम को सुरक्षा और सामाजिक शांति सुनिश्चित करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। इस बीच सोनम वांगचुक का भी बयान आया है। उन्‍होंने कहा क‍ि मेरा जेल में होना शायद युवाओं को ज्‍यादा जगाएगा। यह एक तरह से सरकार को धमकी देने वाली बात है। उधर, स्‍कूलों में दो द‍िन की छुट्टी कर दी गई है। इस बीच खबर आ रही क‍ि ईडी भी इस मामले की जांच शुरू कर सकती है। वह फेमा के तहत केस रज‍िस्‍टर कर सकती है।

लेह में हुई हिंसा को लेकर लेफ्टिनेंट गवर्नर कविंदर गुप्ता ने बड़ा बयान देने लायक है मीडिया से बातचीत में उन्होंने साफ कहा कि यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी बल्कि लद्दाख को जलाने की सुनियोजित साजिश थी। एल जी का आरोप है कि इस पूरे मामले में एक राजनीतिक पार्टी शामिल थी और हिंसा फैलाने के लिए बाहरी लोगों को बुलाया गया था। एल जी गुप्ता ने बताया कि हिंसा के दौरान नेपाल के 7 लोग घायल हुए, जिससे यह शक और गहरा हो गया है कि इसमें विदेशी हाथ भी शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास पूरी जानकारी है कि कौन विदेश जाता है और पैसा कहां से आता है। यही नहीं,एल जी के अनुसार हिंसा के बाद कई लोग लेह से भाग गए हैं और अब पूरे मामले की जांच तेज़ी से चल रही है।एल जीका यह भी दावा है कि इस उपद्रव को अंजाम देने के लिए बाहर से लोगों को बुलाकर माहौल खराब करने की कोशिश की गई। उनका कहना है कि साज़िश करने वालों का हिसाब ज़रूर होगा और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

अब भले ही लेह-लद्दाख में हिंसा के एक दिन बाद हालात बेहद तनावपूर्ण लेकिन शांत दिखाई दे रहे हैं। जिस इलाके में बुधवार को बवाल हुआ था, वहां अब सन्नाटा पसरा है। सड़कें सूनी हैं और न पुलिसकर्मी नजर आ रहे हैं, न ही आम लोग बाहर निकल रहे हैं। स्थानीय प्रशासन ने एहतियात के तौर पर सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के साथ कॉलेज व आंगनवाड़ी केंद्रों को दो दिन के लिए बंद रखने का आदेश जारी किया है। बाज़ारों में भी दुकानें बंद हैं, जिससे आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो गई है। हिंसा की वजह से लोग डरे-सहमे अपने घरों में ही रहना बेहतर समझ रहे हैं। प्रशासन लगातार हालात पर नजर बनाए हुए है और शांति बहाली की कोशिश की जा रही है। हालांकि सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए इलाके में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही हालात सामान्य होंगे और जिंदगी पटरी पर लौटेगी।

महबूबा मुफ्ती ने सोनम वांगचुक के एफसीआरऐ लाइसेंस रद्द किए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह कार्रवाई शासन नहीं, बल्कि नाखुशी का प्रतिशोध है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वांगचुक सरकार विरोधी या राष्ट्रविरोधी नहीं हैं, बल्कि वे केंद्र सरकार से किए गए वादों का पालन कराने का प्रयास कर रहे हैं, खासकर लेह-लद्दाख में छठी अनुसूची लागू करने, वहां की जमीन, नौकरियों, पहचान और संवेदनशील संस्कृति की रक्षा के लिए। महबूबा मुफ्ती ने यह भी कहा कि जवाबदेही मांगना अपराध नहीं है। उन्होंने वांगचुक की उपलब्धियों की तारीफ करते हुए कहा कि जिन्होंने आइस स्टूपा बनाए, सोलर स्कूल स्थापित किए और नवाचार व आशा से लद्दाख को रोशन किया, उन्हें अब अंधकार में निशाना बनाया जा रहा है।

जैसे पहले बताया अब सोनम वांगचुक और उनकी संस्था के खिलाफ विदेश से प्राप्त फंडिंग की जांच में अब ईडी भी कूद गई है। उसने फेमा के तहत केस रज‍िस्‍टर क‍िया है। सीबीआई इसकी जांच पिछले दो महीने से कर रही है और आरोप है कि संस्था ने अवैध तरीके से विदेशी फंडिंग ली। इसके अलावा, सोनम वांगचुक की इसी साल 6 फरवरी की पाकिस्तान यात्रा को लेकर भी सवाल उठे थे। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल जांच चल रही है, लेकिन कोई मामला अभी दर्ज नहीं हुआ है। वहीं, सरकार ने वांगचुक को लद्दाख हिंसा के लिए जिम्मेदार भी ठहराया है।

अपनी गिरफ्तारी पर सोनम वांगचुक कहना है कि 2020 से हमें वादे दिए जा रहे हैं लेकिन कुछ भी नहीं निकला। बच्चे बेरोजगार हैं। नौकरियां नहीं निकलीं। वह लोग बाहर कभी नहीं आते थे, युवा बाहर नहीं आता था। अचानक कल निकल आए। यह किसी ने सोचा भी नहीं था। मैंने तो कहा था हिंसा निंदनीय है, मैं बहुत दुखी हूं ।। और फिर मैंने कहा क‍ि अचानक से ऐसे हजारों में युवा निकल गए मानो जैसे GEN Z र‍िवोल्‍यूशन हो। कुछ लोगों को इस शब्द से दिक्कत क्यों है? मैं भी इस शब्द का प्रयोग नहीं करता हूं ।। कल क्‍यूंक‍ि युवा खुद अपने लिए इस शब्द का प्रयोग कर रहे थे, इसल‍िए न‍िकल आया। सोनम वांगचुक ने कहा, इनकम टैक्स के समन आ रहे हैं, यहां लद्दाख में कोई टैक्स नहीं देता लेकिन मैं यहां अपनी मर्जी से टैक्स देता हूं… फिर भी मुझे नोटिस आ रहे हैं। कहना नहीं चाहता लेकिन यह विच हंटिंग की तरह है … मुझे लगता है क‍ि मेरा जेल में होना देश को ज्‍यादा जगाएगा।

केंद्र सरकार का भी स्पष्ट मानना है कि लेह में भड़की हिंसा स्वतः नहीं थी। इसके पीछे कुछ बड़ी ताकतें हो सकती हैं। सरकार का कहना है कि आंदोलन कर रहे नेताओं की केंद्र सरकार के साथ छह अक्टूबर को बैठक तय थी। इतना ही नहीं इस बैठक को और पहले करने के अनुरोध मिले थे। इसके बाद 25-26 सितंबर को भी एक अनौपचारिक बैठक होने वाली थी। इस बारे में भूख हड़ताल कर रहे वांगचुक की सभा से इसको लेकर हो रही घोषणा का वीडियो भी है, जिसमें कहा जा रहा है कि एक प्रतिनिधिमंडल केंद्र सरकार के साथ बात करने के लिए दिल्ली जा रहा है।