प्रदीप शर्मा
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) की एक रिपोर्ट सुर्खियों में है. रिपोर्ट में पुराने आंकड़ों का इस्तेमाल कर यह बताया गया है कि 1950 से 2015 के बीच भारत की आबादी में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी बढ़ी है. वहीं हिंदू आबादी की हिस्सेदारी घटी है. रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि 1950 से 2011 के बीच भारत में सभी धार्मिक समूहों की आबादी लगातार बढ़ी थी। इस बात के प्रमाण हैं कि जनसंख्या के बढ़ने और न बढ़ने का सीधा कनेक्शन महिलाओं की साक्षरता, सशक्तिकरण, बाल मृत्यु दर के स्तर और अन्य सामाजिक-आर्थिक पहलुओं से है. यदि पीएम-ईएसी जनगणना के उन्हीं पुराने आंकड़ों को देखे, जिसका वह हवाला दे रहा है तो पता चलेगा कि उत्तर भारत में ‘हिंदू’ और ‘मुस्लिम’ दोनों की जनसंख्या बढ़ने दर का दक्षिण भारत की तुलना में बहुत अधिक है।
ईएसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 1950 से 2015 के बीच भारत की आबादी में हिंदुओं हिस्सेदारी में 7.82 प्रतिशत की गिरावट आई, वहीं मुस्लिम आबादी का हिस्सा 9.84 प्रतिशत से बढ़कर 14.09 प्रतिशत हो गया। ईसाई आबादी का हिस्सा 2.24 प्रतिशत से बढ़कर 2.36 प्रतिशत हो गया, सिख आबादी का हिस्सा 1.24 प्रतिशत से बढ़कर 1.85 प्रतिशत हो गया और बौद्ध आबादी का हिस्सा 0.05 प्रतिशत से बढ़कर 0.81 प्रतिशत हो गया। जैन और पारसी समुदाय की हिस्सेदारी में भी गिरावट देखी गई। जैनियों की हिस्सेदारी 0.45 प्रतिशत से घटकर 0.36 प्रतिशत हो गई और पारसी आबादी की हिस्सेदारी 85 प्रतिशत से घटकर 0.03 प्रतिशत से 0.0004 प्रतिशत हो गई।
जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, 1951 में हिंदुओं की आबादी 33.36 करोड़ थी, जो 2015 में बढ़कर 99.53 करोड़ हो गई. यानी इस अवधि में हिंदुओं की संख्या 69.17 करोड़ बढ़ी. जहां तक मुसलमानों की संख्या की बात है तो 1951 में उनकी संख्या 3.54 करोड़ थी, जो 2015 में बढ़कर 17.97 करोड़ हो गई. यानी इस अवधि में मुसलमानों की संख्या 14.42 करोड़ बढ़ी। आबादी में किसकी कितने प्रतिशत हिस्सेदारी बढ़ी या घटी है, उसे भी देख लेते हैं. 1951 में देश की जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी 84.98% थी, जो 2015 में घटकर 78.06% हो गई है. यानी आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 6.92 प्रतिशत कम हुई. इसी अवधि में मुसलमानों की हिस्सेदारी 9.91% से बढ़कर 14.09% हो गई. यानी आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 4.81 प्रतिशत बढ़ गई.
लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा पहले ही मुस्लिम विरोधी अभियान चला रही है. रिपोर्ट आने के बाद मीडिया इसके कुछ हिस्सों का हवाला देकर सनसनीखेज खबरें दिखा रही है, जो भाजपा की झूठी कहानी को आगे बढ़ाने जैसा लग रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने एक चुनावी रैली में मुसलमानों को ‘ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले’ कहा था। चुनाव से पहले ही इस बात के संकेत मिलने लगे थे कि जनसंख्या वृद्धि चुनावी चर्चा का केंद्र बिंदु बन जाएगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अंतरिम बजट भाषण में ‘जनसंख्या वृद्धि की चुनौतियों’ से निपटने के लिए एक समिति गठित करने की बात कही थी.
हालांकि, यह बयान देते हुए वित्त मंत्री ने अपने ही मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 की बातों का खंडन किया. आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि भारत में अगले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि में तेजी से गिरावट देखी जाएगी। वित्त मंत्री ने 2024 के अपने अंतरिम बजट भाषण में बिना किसी जनसांख्यिकीय डेटा के यह कह दिया कि भारत में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. जबकि ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जो यह साबित कर सके कि 2019 से 2024 के बीच भारत की घटती जनसंख्या दर बढ़ गई।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने मीडिया रिपोर्टिंग को भ्रामक और चिंताजनक बताया है. एक प्रेस रिलीज़ में कहा है ‘मुस्लिम आबादी में वृद्धि को दिखाने के लिए मीडिया जिस तरह आंकड़ों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहा है वह गलत बयानी का उदाहरण है. साथ ही यह व्यापक जनसांख्यिकीय रुझानों को नजरअंदाज करता है.’
फाउंडेशन ने कहा है, ‘भारत की जनगणना के अनुसार, पिछले तीन दशकों में मुसलमानों की दशकीय वृद्धि दर में गिरावट आ रही है. 1981-1991 में मुसलमानों की वृद्धि दर 32.9% थी, जो 2001-2011 में घटकर 24.6% हो गई. यह गिरावट हिंदुओं की तुलना में अधिक है. 1981-1991 हिंदुओं की वृद्धि दर 22.7% थी, जो 2001-2011 में घटकर 16.8% हो गई. 1951 से 2011 तक के जनगणना के आंकड़े उपलब्ध हैं. इस अध्ययन के आंकड़े काफी हद तक जनगणना के आंकड़ों से मिलते हैं. इससे पता चलता है कि संख्याएं नई नहीं हैं.’
अनेक विश्लेषणों बताते हैं कि अन्य धर्मों की तरह मुसलमानों में भी कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में पिछले कुछ दशकों में गिरावट आई है। मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के पूर्व प्रमुख केएस जेम्स ने 2021 में एक लेख में लिखा था कि 1951-61 से 2001-2011 की जनगणना अवधि में भारत के सभी धर्मों की तुलना में मुसलमानों की जनसंख्या सबसे ज्यादा बढ़ी थी. हालांकि, तब भी मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर में सात प्रतिशत और हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर में तीन प्रतिशत की गिरावट आई थी।
मुसलमानों में पारंपरिक रूप से अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में टीएफआर अधिक था, इसलिए स्वाभाविक रूप से उनमें टीएफआर में गिरावट भी किसी भी अन्य समूह की तुलना में अधिक मात्रा में होगी क्योंकि उनमें गिरावट की गुंजाइश ज्यादा है। पिछले साल ‘आइडियाज़ फॉर इंडिया’ द्वारा किए गए एक विश्लेषण में यह भी पाया गया था कि समय के साथ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच टीएफआर के बीच का अंतर कम हो गया है. इसका मतलब ये हुआ कि विभिन्न धार्मिक समूहों के लोगों द्वारा पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में अंतर कम हो गया है।
भारत ने 2011 के बाद से जनगणना नहीं की है. लेकिन अन्य वैश्विक सर्वेक्षणों से पता चलता है कि भारत जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल गया है और अब दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश है। 19 जुलाई, 2022 को राज्यसभा में सीपीआई (एम) सांसद जॉन ब्रिटास के एक प्रश्न के जवाब में स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने दावा किया था कि केंद्र सरकार जनसंख्या नियंत्रण हासिल करने में सफल रही है. पिछले दस वर्षों में संसद में पूछे गए किसी सवाल के जवाब में सरकार ने मुसलमानों को जनसंख्या वृद्धि का कारण नहीं माना है।
दुनिया ने भी भारत की घटती टीएफआर पर ध्यान दिया है. यूएनएफपीए ने नवंबर 2022 में कहा था, ‘अच्छी खबर यह है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर होती दिख रही है कुल 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (जो देश की आबादी का 69.7% है) में प्रजनन दर 2.1 के रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे आ गया है.’ और इस साल मार्च में द लांसेट में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था कि भारत की टीएफआर में और गिरावट आने वाली है. यह 2027 तक 1.75 तक पहुंच सकता है।