संजय सक्सेना
भारतीय जनता पार्टी देश को कांग्रेस मुक्त भले नहीं कर पाई हो लेकिन उत्तर प्रदेश को गांधी मुक्त बनाने की और उसके कदम तेजी से बढ़ रहे हैं.बीजेपी नेताओं को लगता है कि ऐसा मोदी-योगी के कुशल नेतृत्व में होने जा रहा है .ऐसा कैसे होगा? यह समझना मुश्किल नहीं है.एक तरफ इस बात की प्रबल संभावना है कि बीजेपी के लिये लगातार मुसीबत साबित हो रहे राहुल गांधी के चचेरे भाई और पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी का टिकट कट सकता है, वहीं उनकी माता मेनका गांधी को उम्र दराज होने के कारण लोकसभा से साइड लाइन करने की तैयारी की जा रही है.मेनका गांधी और वरूण गांधी अब बीजेपी के लिये अनुपयोगी हो गये हैं,बीजेपी इन दोनों नेताओं को यह सोच कर पार्टी में लाई थी कि वरूण गांधी के जरिये वह सोनिया और राहुल गांधी को सियासी आईना दिखायेगें,लेकिन ऐसा तो हुआ नहीं उलटे वरूण गांधी बीजेपी और पीएम मोदी के लिए ही सिरदर्द बन गये.पूरे कार्यकाल के दौरान वरूण गांधी केन्द्र की मोदी सरकार के कामकाज की आलोचना में लगे रहे,जबकि राहुल गांधी के खिलाफ मंुह तक नहीं खोला.इसी के चलते वरूण का टिकट कटना तय है.यदि ऐसा हुआ तो बीजपी गांधी मुक्त हो जायेगी.
बात प्रदेश को गांधी मुक्त करने की कि जाये तो आज की तारीख में यूपी में कांगे्रस सिर्फ रायबरेली में दिखाई दे रही है.बाकी जगह वह सिमट चुकी है. राहुल गांधी को तो 2019 में ही बीजेपी ने अमेठी से हार का स्वाद चखाकर, ना केवल अमेठी बल्कि प्रदेश से बाहर कर दिया है.अब बीजेपी की मंशा रायबरेली को सोनिया मुक्त करने की है. इसके लिए पिछले पांच सालों में बीजेपी ने सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में काफी मेहनत की है. बीजेपी को जिसका फल आगामी लोकसभा चुनाव में मिलता दिख रहा है.रायबरेली में सोनिया गांधी की स्थिति अब उतनी मजबूत नहीं रह गई है जितनी पहले हुआ करती थी. यहां से प्रियंका वाड्रा के भी चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही है.बीजेपी दोनों ही दशा में गांधी परिवार से मुकाबला करने के लिए कमर कसे हुए है.बीजेपी रायबरेली में कांग्रेस की उन दोनों संभावनाओं को खत्म कर देना चाहती है जिसके अनुसार रायबरेली में सोनिया गांधी की जगह प्रियंका वाड्रा को चुनाव लड़ाये जाने की चर्चा राजनीति के गलियारों में चल रही है.बीजेपी सोनिया गांधी या प्रियंका वाड्रा दोनों को ही अब यहां पर पैर जमाये रखने का मौका नहीं देना चाहती है.
दरअसल, प्रियंका वाड्रा ने 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश से भले ही अपने को समेट लिया हो लेकिन रायबरेली में उनकी राजनीतिक गतिविधियां जारी हैं. इसीलिए राजनीति के जानकार प्रियंका वाड्रा के रायबरेली से चुनाव लड़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं करते हैं.यदि सोनिया गांधी राजनीतिक दबाव के चलते रायबरेली से चुनाव लड़ती है तो प्रियंका वाड्रा के लिए अमेठी दूसरी सबसे सुरक्षित सीट रह सकती है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि यहां से राहुल गांधी के चुनाव हारने के बाद मौजूदा सांसद स्मृति ईरानी ने काफी मेहनत की है. इसलिए हाल फिलहाल राहुल गांधी की तो दाल अमेठी में नहीं गलती दिखाई दे रही है वहीं प्रियंका वाड्रा को भी यहां से चुनाव लड़ने के लिए सौ बार सोचना होगा. अमेठी की सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि 48 सालों तक उत्तर प्रदेश की अमेठी विकास से वंचित रही, जबकि लोकसभा में इसका प्रतिनिधित्व गांधी परिवार के लोग करते रहे थे। स्मृति ईरानी ने कहा कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ही इस संसदीय क्षेत्र का विकास होना शुरू हुआ।ईरानी ने कहा कि राजमोहन गांधी ने गांधी परिवार के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उन्हें गांधी परिवार के खिलाफ लड़ने के लिए नकली गांधी बुलाया गया था। मेनका गांधी और शरद यादव को भी अपमानित किया गया था। शरद यादव से कहा गया कि वह जाकर गाय चराएं। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में यदि अमेठी के बाद रायबरेली में भी गांधी परिवार का उम्मीदवार हार जाता है तो यूपी पूरी तरह से गांधी परिवार मुक्त हो जाएगा.सोनिया की हार की संभावनाओं से इसलिए इनकार नहीं किया जाता क्योंकि पिछले 5 सालों से वह रायबरेली से पूरी तरह से कटी हुई हैं, जबकि भाजपा ने यहां काफी मेहनत की है.
बात अमेठी और रायबरेली से आगे की कि जाये तो बीजेपी का बससे अधिक फोकस यूपी पर ही है. मिशन 80 को पूरा करने के लिए बीजेपी लगातार प्लान बना रही है. माना जा रहा है कि बीजेपी करीब डेढ़ दर्जन सांसदों के टिकट काट सकती है वहीं जातीय समीकरणों को देखते हुए कई नए चेहरों पर भी मंथन किया जा रहा है.इसी के साथ यूपी की हारी सीटों को लेकर भी बीजेपी ने अहम रणनीति बनाई है. यूपी में जिन सीटों पर नए चेहरों को लेकर चर्चा हैं उनमें पहला नाम सहारनपुर का जहां से बीजेपी के राघव लखनपाल की जगह नए चेहरे को मौका दिया जा सकता है. इसके साथ ही बिजनौर सीट पर कुंवर भारतेंद्र सिंह की जगह नया जाट चेहरा आगे किया जा सकता है, नगीना सीट से यशवंत सिंह की टिकट पर सस्पेंस, मुरादाबाद से कुंवर सर्वेश कुमार की जगह नया चेहरा संभव है, संभल सीट से परमेश्वर लाल सैनी की टिकट पर, अमरोहा से कंवर सिंह तंवर की टिकट पर संशय है. इसी तरह से मैनपुरी से प्रेम सिंह शाक्य की जगह नया उम्मीदवार उतारा जा सकता है. वहीं रायबरेली से दिनेश प्रताप सिंह और अंबेडकर नगर से मुकुट बिहारी वर्मा, श्रावस्ती से दद्दन मिश्रा, लालगंज से नीलम सोनकर, घोसी से हरिनारायण राजभर का टिकट कट सकता है.उधर गाजीपुर से 2019 में बीजेपी की तरफ से लोकसभा प्रत्याशी रहे मनोज सिन्हा की जगह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को सीट दी जा सकती है. जौनपुर से कृष्ण प्रताप सिंह की जगह निषाद पार्टी के प्रत्याशी को यहां से लड़ाया जा सकता है.यह वह बीजेपी नेता हैं जो 2019 में लोकसभा चुनाव जीत नहीं सके थे.
बात मौजूदा भाजपा के मौजूदा सांसदों, जिनका टिकट कटने की उम्मीद है उसमें कानपुर से सत्यदेव पचैरी (76साल),बहराइच से अक्षयवर लाल(77),बाराबंकी से उपेंद्र सिंह,गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह(73)त्र मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल(73), हाथरस से राजवीर दिलेर,मथुरा से हेमामालिनी (75),बरेली से संतोष गंगवार (75), फिरोजाबाद से चंद्रसेन जादौन(73) का और कैसरगंज से बृजभूषण शरण सिंह,लखीमपुर खीरी से अजय मिश्र टेनी,पीलीभीत सेवरुण गांधी, सुल्तानपुर से मेनका गांधी, बदायूं से सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्य का भी टिकट कटना तय लग रहा है.
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक 80 सीटें हैं. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी में किस पार्टी ने कितनी सीटें जीती थी कि बात की जाये तो 2019 में यूपी की 80 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए ने जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में एनडीए में बीजेपी और अपना दल (एस) एक साथ मिलकर लड़े थे और एनडीए का 51.19 प्रतिशत वोट शेयर रहा था. जिसमें बीजेपी के खाते में 49.98 प्रतिशत और अपना दल (एस) को 1.21 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. वहीं महगठबंधन (बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल) को 39.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. जिसमें बसपा को 19.43 प्रतिशत, सपा को 18.11 प्रतिशत और रालोद को 1.69 प्रतिशत वोट मिला था. इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में 6.36 वोट शेयर मिला था.