संदीप ठाकुर
सर्वोच्च न्यायालय ने 500 रुपये और 1000 रुपये मूल्य के नोटों को चलन से
बाहर करने के केंद्र सरकार के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली
याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को 24 नवंबर तक स्थगित कर दी। न्यायमूर्ति एस
ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई
स्थगित की। इससे पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन ने मामले में समग्र
हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा था। वेंकटरमन ने संपूर्ण हलफनामा
तैयार नहीं कर पाने के लिए खेद जताया और एक सप्ताह का समय मांगा। पीठ में
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी
रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी बी नागरत्ना भी शामिल रहे।
याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने
कहा कि संविधान पीठ से सुनवाई स्थगित करने के लिए कहना बहुत असामान्य बात
है। एक पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा कि यह असहज
करने वाली स्थिति है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सामान्य रूप से
संविधान पीठ इस तरह काम नहीं करती और यह बहुत असहज करने वाला है। शीर्ष
अदालत ने केंद्र को हलफनामा दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। पीठ
केंद्र के 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी करने के फैसले को चुनौती देने वाली
58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। गौरतलब है कि 16 दिसंबर, 2016 को
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र
सरकार के फैसले की वैधता और अन्य संबंधित विषयों को आधिकारिक निर्णय के
लिए पांच न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भेजा था।
8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात आठ बजे टेलीविजन पर
देश को संबोधित करते हुए ऐलान किया था कि रात 12 बजे यानी सिर्फ चार घंटे
बाद 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट चलन से
बाहर हो जाएंगे। यानी इन नोटों को स्वीकार नहीं किया जाएगा, ये बेकार हो
जाएंगे। तब नोटबंदी के कई फायदे बताए गए थे। लेकिन जानकार यह कहकर आलोचना
करते हैं कि इसका कोई फायदा तो हुआ नहीं, उल्टे अर्थव्यवस्था तबाह हो गई।
हालांकि, सरकार यह मानती नहीं है। नोटबंदी के सरकार के फैसले लेने के
तौर-तरीकों पर भी सवाल उठाया गया। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई
याचिकाएं दायर की गईं। नोटबंदी की घोषणा के एक महीने बाद दिसंबर 2016 में
पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के पास यह मामला भेजा गया था। लेकिन
तब इस पर सुनवाई आगे नहीं बढ़ पाई थी। लेकिन अब सुनवाई शुरू हाे गई है।
याचिकाकर्ताओं की दलील है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2)
किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए
सरकार को अधिकृत नहीं करती है। धारा 26 (2) केंद्र को एक खास सीरीज के
करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों
को। अब इसी का जवाब सरकार और आरबीआई को देना है