गर्मी से त्रस्त कविता : मई

Heat stricken poem: May

रावेल पुष्प

हाय री मई
तू अब तक नहीं गई
बोल और कितना जलाएगी
सारे शरीर का पानी तो पी चुकी
अब क्या कलेजा भी खाएगी
क्या अभी तक तेरी आग ठंढी नहीं हुई
कितने वर्षों की आग छिपाये थी
जो बरसाये जा रही हो ?
कुछ तो लोगों पे रहम खा
अब और दिल न जला
हमारी तो जान जा रही है
और तुम्हारा ये झटका हुआ
ख़ुदा के लिये अब बस करो, बस करो
पानी पी पीकर पेट तो हमारा मटका हुआ
ऐसे में बात कहें हम सांची
हर ओर घरों में,रस्तों में
लोग झल्ला रहे -मोरे गेले बांची
तुम तो कम से कम अब जाओ
फिर न जाने किस जून में पड़ेंगे
इंदर की किरपा कुछ हुई तो हुई
नहीं तो सड़े अंडों सा सड़ेंगे
इससे तो अच्छा है भईया
इस आग लगी गर्मी से निजात पाएं
और चल दरिया में डूब जाएं…