राकेश अचल
संगठनों पर लिखना आसान होता है लेकिन व्यक्तियों पर लिखना कठिन काम है और जब हिमंत बिस्वा शरमा जैसों पर लिखना हो तो और भी ज्यादा मुश्किल होती है। हिमंत जैसों का देश की सबसे बड़ी अदालत भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती। क्योंकि वे तो पहले से पूरी तरह बिगड़े हुए है। उनका हर बोल,हर कदम बिगड़ा हुआ होता है ,लेकिन भाजपा के लिए हिमंत बिस्वा शरमा पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। क्योंकि वे संघ और भाजपा के हिडन एजेंडे को खुल्ल्मखुल्ला लागू करने की कवायद करते रहते हैं।
हिमंत हिंदी में तो कोई शब्द है नहीं ,हिंदी में हेमंत है जो असमिया में जाकर हिमंत हो गया है। कायदे से तो हेंमत [हिमंत ] के व्यक्तित्व और कृतित्व में से सुगंध आना चाहिए थी, लेकिन उनमें से लगातार नफरत की दुर्गन्ध आ रही है। वे हर दिन कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिससे ये दुर्गन्ध और बढ़े। ,हिमंत ने अब सूबे के लोगों से कहा है कि वे मुसलमानों से मछलियां न खरीदें। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दावा किया है कि नागांव और मोरीगांव में मछली पालन करने वालों लोगों की वजह से किडनी की बीमारियां बढ़ रही है। उन्होंने दावा किया कि इन दो जिलों में मछली पालन में यूरिया का इस्तेमाल काफी ज्यादा हो रहा है। बड़ी संख्या में अप्रवासी मुसलमान मछली पालन के धंधे से जुड़े हैं।शरमा जी चाहते तो मत्स्य पालन में योरिया के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर सकते थे ,लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें ऐसा नहीं करना था। उनका मकसद लोगों के गुर्दे बचना नहीं बल्कि मुसलमानों को परेशान करना है।
आपको याद ही होगा कि ये वही हिमंत हैं जो हाल ही में विधानसभा में नमाज के लिए मिलने वाले ब्रेक को समाप्त कर सुर्ख़ियों में आये थे। ये अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्था थी ,कांग्रेस के राज में भी रही और अटल बिहारी बाजपेयी के राज में भी लेकिन मोदीजी के राज में हिमंत ने इसे समाप्त करने का करिश्मा कर दिखाया। कहते हैं न कि – समरथ को नहिं दोष गुसाईं ,रवि ,पावक ,सुरसरि की नाई। अब हिमंत भाजपा के सूर्य कहे जाएँ या भाजपा की गंगा या संघ की नफरत की आग कहना कठिन है क्योंकि वे इन सभी का मिश्रण हैं। हालाँकि उनके ही राज में असम और मिजोरम के लोग आपस में ऐसे भिड़ते हैं जैसे दो देशों के लोग।
हिमंत की हिम्मत की दाद देना चाहिए की वे जो काम 14 साल कांग्रेस में रहकर नहीं कर पाए वो सब उन्होंने भाजपा में आने के बाद 8 साल में कर दिखाए। उनकी रगों में हालाँकि कांग्रेस का डीएनए है लेकिन अब उनकी रगों में संघ का डीएनए ज्यादा प्रभावी नजर आ रहा है।हिमंत भाजपा के स्टार प्रचारक भी हैं। वे हर राज्य में चुनाव प्रचार के लिए भेजे जाते हैं ,लेकिन बंगाल में वे फ्लैप साबित हुये । उड़ीसा में चले ,लेकिन बाकी जगह नाकाम रहे। उन्होंने मनु स्मृति पढ़ी हो न पढ़ी हो लेकिन उनकी मानसिकता में मनुस्मृति गहरे तक बैठी है । उन्होंने एक बार ट्विटर पर लिखा था कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की सेवा करना शूद्रों का स्वाभाविक कर्म है। लेकिन बाद में वे पलट गए और ये पोस्ट हटाने के साथ ही उन्होंने अपनी इस टिप्पणी के लिए माफी भी मांग ली। दरअसल हिमंत डरपोक भी है। मुसलमानों से उन्हें बहुत डर लगता है इसीलिए वे कहा करते हैं कि- मेरे लिए डेमोग्राफी चेंज जीने और मरने का मुद्दा है । वे अक्सर कहते हैं कि कि असम में 1951 में मुस्लिम आबादी 12 प्रतिशत थी और वर्तमान समय में 40 प्रतिशत हो गई है. साथ ही असम में कई जिले बदल गए हैं।
अगर हिमंत हिंदी पट्टी के शर्माओं की तरह शरमा हैं तो मै कहना चाहूंगा कि पंडित जी जब भी मौक़ा मिलता है मुसलमानों को निशाने पर ले लेते है। वे पूर्व में असम विधानसभा ने निकाह को लेकर एक विधेयक पारित करा चुके हैं। इस नए बिल के तहत मुस्लिमों के विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन से जुड़ा कानून निष्प्रभावी किया गया है।हिमंत की कथा अनंत है । वे बड़बोले हैं, घाट-घाट का पानी पिए हुए हैं। उन्हें भ्र्ष्टाचार करना और करना दोनों आता है । वे चिड़िया-बल्ला खिलाड़ी है । उनके ऊपर भ्र्ष्टाचार के दर्जनों आरोप हैं लेकिन पिछले दस साल में ईडी ने उनकी और झांका तक नही। फिलहाल उनकी कोशिश पूर्वोत्तर में अमितशाह बनने की है। वे बन भी सकते हैं ,क्योंकि फ़िलहाल उन्हें रोकने वाला कोई है नहीं।