हिंदी और भारतीय संस्‍कृति

राजेश कुमार

संस्कृत की ‘भाष’ धातु से ‘भाषा’ शब्द बना है जिसका अर्थ है – वाणी को व्यक्त करना । भाषा विचारों के
विनिमय का सशक्त माध्यम होती है। काल, देश भौगोलिक स्थिति, पर्यावरण एवं जैव विविधता से इसका गहरा नाता- रिश्ता होता है। यह संस्कृति को समृद्ध बनाती है। इसलिए किसी भी समाज में भाषा का विशेष महत्‍व होता है क्योंकि यदि भाषा ना हो तो सामाजिक व्यवहार और क्रियाकलाप संभव न हो। मौन का सन्नाटा पसर जाए और चारों ओर अव्यक्त का माहौल निर्मित हो जाए । भाषा ही व्यवहार को गति देती है, इसलिए इसे जगत के व्यवहार का मूल कहा गया है। भाषा, लिपि और संस्कृति का गहरा संबंध होता है । भारतीय चिंतन धारा में संस्कृति की संकल्पना बेहद व्यापक है । हमारे यहां संस्कृति को पूर्णता का पर्याय माना गया है। संस्कृति केवल कल्चर नहीं है, बल्कि यह कल्चर से कहीं ज्यादा व्यापक और तर्कसंगत है। सच पूछा जाए तो हिंदी, भारतीय संस्कृति और परंपराओं की समर्थ संवाहिका है । संस्कृति यदि चिंतन का मूर्त रूप है तो भाषा उसका माध्यम है।

संस्कृति की अभिव्यक्ति जनसाधारण की भाषा में होती है और हिंदी जनसाधारण की भाषा है । इस भाषा के तहत जनसाधारण के जीवन के सभी रंग – रूप राग – रागिनी, हर्ष, उल्लास, द्वेष – विद्वेष, भाव- विचार, वेदना आदि का मूर्त -अमूर्त, सजीव एवं जीवंत चित्रण मिलता है । भाषा में ही संस्कृति और संस्कारों के सभी अवयव एवं तत्व अंतर्निहित होते हैं। अत: संस्कृति के जितने भी वैविध्य एवं विराट रूप हैं, वे सभी हिंदी भाषा एवं साहित्य में समाहित हैं। जैसे – राष्ट्रीय गौरव एवं अस्मिता, संस्कृति, रीति – रिवाज परंपरा, वस्त्र- परिधान, वेशभूषा संस्कृति, खानपान, सौंदर्य मूलक संस्कृति, बाल रूप के वैविध्य पक्षों की संस्कृति, योग और स्वच्छता संस्कृति, पर्यावरणीय- संपोषणीय संस्कृति, ज्ञान- विज्ञान परिमार्जन संस्कृति, पर्यटन संस्कृति, देशाटन-संस्कार, राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय विनिमय संस्कृति, आत्म चेतस से विश्व चेतस की ओर उन्मुख संस्कृति, लोकरंजन -लोकमंगल की संस्कृति, मानवतावादी – विश्वकल्याणवादी संस्कृति समन्वय – समाहार संस्कृति आदि।

इसके अलावा संस्कृति की अभिव्यक्ति लोकनाट्य, लोक नृत्य, लोक गीत, लोक संगीत एवं लोक संस्कृति एवं धर्म तथा अध्यात्म में भी होता है। भारत में शासन – प्रशासन, व्यापार -वाणिज्य, सामाजिक-व्यवहार आदि का भी लोकजन की भाषा से ही उद्भव हुआ है। आज विश्व के राष्ट्रों में भारत की इस संस्कृति एवं संस्कारों का, विशेष रूप से रीति-रिवाज परंपरा यथा होली, दीपावली, छठ, वस्त्र परिधान (साड़ी -लूंगी) खानपान, समोसा – जलेबी व्यापार- वाणिज्य शब्दावली में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। आज हिन्दी दुनिया के तमाम देशों के लोगों के लिए भारत को जानने और उससे अनुराग का अहम साधन बन चुकी है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारत के प्रति रुचि की जड़ें गहरी और पुरानी है, जिन्‍हें हिंदी का आधार मिल रहा है। कर्मकांड, ज्योतिष, धर्म – अध्यात्म, देशज ज्ञान- विज्ञान, प्राकृतिक चिकित्सा, योग और आयुर्वेद सहित विविध क्षेत्रों में हिंदी का प्रसार हो रहा है।

हिंदी का अपनी गौरवमयी एवं समृद्ध अतीत रहा है । यह एक कालजयी एवं सार्वभौमिक भाषा है क्योंकि इसमें लचीलापन, स्वीकार करने का गजब का साहस, समन्वय एवं समाहार की अद्भुत क्षमता के साथ-साथ मौलिकता, सृजनशीलता, सरसता, सरलता, सहजता तथा वैज्ञानिकता है। इस अनूठेपन के कारण हिंदी अपने मूल से ही अनेकानेक देशज और विदेशज शब्दों जैसे तत्सम- तद्भव, अरबी, फारसी, हिब्रू, लैटिन, अंग्रेजी, फ्रेंच, रशियन, पुर्तगाली, डेनिश, चीनी एवं नित्य नए-नए शब्दावली आदि को अपने में समाहित किया है। यह भाषा संस्कृति -संस्कारों को आत्मसात कर उत्तरोत्तर समृद्ध और प्रतिष्ठित होती चली गयी। फलत: यह बोली और साहित्य के सोपानिक क्रमों को पार करते हुए अपनी भौगोलिक सीमा का अतिक्रमण कर अंतर – राजीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्‍ट्रीय भाषा बन गयी। हिंदी भाषा में वेग प्रवणता, भाव प्रवणता, गत्यात्मकता, लय, ताल, नाद, ध्वनि आदि का गजब मिश्रण है। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसकी बिंदी भी बोलती है।आज हिंदी विश्व की सभी भाषाओं में महारानी की तरह है। परिणामत:, भारत के शास्त्रीय संगीत ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है।

जहां हिंदी क्षेत्र में संचार तकनीकी ने हिंदी को वैश्विक पहचान दी, वहीं उदारीकरण एवं वैश्वीकरण ने अंतराष्‍ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा को एक ब्रांड और उत्पाद के रूप में स्थापित किया। यद्यपि प्रारंभ में हिंदी भाषा को प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी रूप से असमर्थ भाषा समझा जाता था, लेकिन समय के साथ इसमें प्रौद्योगिकी व तकनीकी उन्नयन हेतु लिए गए निर्णय, भारत सरकार की पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दावली की बढ़ती मांगों, अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा के बढ़ते अनुप्रयोग ने हिंदी भाषा के विकास को बल प्रदान किया।

हिन्दी को वैश्विक रूप से और भी निखारने के लिए भारत सरकार के कई मंत्रालय, विभाग एवं समितियां यथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, राजभाषा आयोग, इलेक्ट्रॉनिक विभाग, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, हिंदी सलाहकार समितियां या राजभाषा कार्यान्‍वयन समितियां आदि प्रयासरत है। राजभाषा आयोग अब तक लगभग चार लाख से अधिक शब्दावली का निर्माण कर चुका है।

आज वैश्विक स्तर पर सॉफ्टवेयर आॅपरेटिंग सिस्टम, इंटरफेस, यूनिकोड, सर्च इंजन, हिंदी ब्लॉग, ब्राउजर एवं इंटरनेट के विकास ने हिंदी के क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न कर दी है। विशेषकर यूनिकोड सॉफ्टवेयर ( विंडोज, एक्सपी) एवं यूनिकोड फोंट (वर्ड पैड, पेजमेकर) शब्दावली संसाधन आदि का अहम योगदान है। अनुवाद में शब्द सिंधु, कंठस्थ 0.2 एवं गूगल अनुवाद ने वास्तव में, हिंदी भाषा एवं साहित्य को रूग्‍ण मानसिक्‍ता से मुक्त कर एक ग्लोबल भाषा बना दिया है। आज हिंदी अंग्रेजी की तरह शत-प्रतिशत कंप्यूटर की भाषा बन चुकी है । सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर हिंदी का प्रचलन बढ़ गया है, जिससे पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति की जड़ें गहरी होती जा रही हैं। भारतीय साहित्य अब वेबसाइटों के माध्यम से सर्वत्र उपलब्ध है । परिणामत:, आज कार्यालय, वित्तीय, व्यवसायिक – वाणिज्य, सौंदर्यशास्त्र, साज-सज्जा गणितीय एवं सांख्यिकी जेसे अनेक क्षेत्रों में कंप्यूटर के माध्यम से हिंदी की पहुंच बढ़ी है ।

उदयीमान साहित्यकारों के लिए सोशल मीडिया एवं वेबसाइट लॉन्चिंग पैड की भूमिका निभा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हिंदी क्षेत्र में पठन-पाठन सामग्री तैयार करने, शोध -अनुसंधान करने आदि के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा की स्थापना की गई है । वैश्विक स्तर पर विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस की स्थापना की गई है । विदेशों में भारतीय संस्कृति, धर्म और जीवन मूल्यों के प्रति अनुराग के साथ हिंदी शिक्षण के लिए बहुत बड़ी संख्या में लोग लगे हुए हैं । उनके लिए स्तरीय और पर्याप्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध करायी जा रही है। विदेशों में हिंदी शिक्षण से जुड़े पाठ्यक्रमों में हिंदी की सहज, संप्रेषण क्षमता और समृद्ध साहित्यिक विरासत को समाहित करते हुए भारतीय संस्कृति के साथ इसके तादात्मय को साकार करने के लिए विशेष प्रयत्न किए जा रहे हैं। विदेशों में ऐसे कई विद्वान हैं, जो भारतीय मूल के नहीं है फिर भी, भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों से प्रेरित होकर वे हिंदी के पक्षधर बन रहे है। अब अमेरिका के डॉक्टर हरमन बॉन को ही ले लीजिए । पिछले चार दशकों से वह अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ा रहे हैं। हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं पर शोध भी कर चुके हैं । हिंदी से उन्हें बेहद लगाव है। समर्पित भाव से वह हिंदी की सेवा में रत हैं। विदेशी मूल के अनेक विद्वान हिंदी को हृदयंगम कर रहे हैं। विदेशों में हिंदी पर महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है। खासियत यह है कि वही के लोग इस काम को अंजाम दे रहे हैं। विदेशी भाषा वैज्ञानिकों का ध्यान हिंदी पर केंद्रित हुआ है। डच के भाषाविद केटलर ने हिंदी व्याकरण पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। अंग्रेजी के विद्वान पिर्यसन ने हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किया है। फादर कामिल बुल्के ने अंग्रेजी हिंदी शब्दकोश रचकर पूरे विश्व में हिंदी का सम्मान बढ़ाया। इन गतिविधियों से जहां विश्व फलक पर हिंदी की पताका ऊंची हुई है, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का भविष्य भी उज्जवल दिख रहा है।

प्रौद्योगिकीय क्रांति का ही परिणाम है कि आज हिंदी भाषा में ई -गवर्नेंस, ई -चौपाल, ई -किसान बुलेटिन, ई – कृषि बाजार, जिससे भारतीय और विश्व किसान एक दूसरे के साथ जुड़ पाए हैं। हिंदी भाषा में तकनीकी उन्नयन ने सामाजिक अवरोध एवं भाषा की असमानता को समाप्त कर समरसता और सौहार्द बढ़ाने का कार्य किया है। हिंदी स्वयं प्रशिक्षण सॉफ्टवेयर लीला मोबाइल एप द्वारा और अन्‍य राजभाषा उपस्‍करों द्वारा हिंदी सीखने की आॅनलाइन सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।

कुछ वर्ष पूर्व तक हिंदी को रोजगार उन्मुख एवं रोजगार परक भाषा नहीं माना जाता था । लेकिन, आज हिंदी बाजार उन्मुख भाषा है । वैश्वीकरण, उदारीकरण, उपभोक्तावाद, बाजारवाद आदि प्रवृत्तियों ने तथा भारत के बढ़ते आयात- निर्यात ने हिंदी भाषा को उत्पाद एवं ब्रांड के रूप में स्थापित कर चुका है। हिंदी की इससे बड़ी जीत क्या होगी कि अंग्रेजी के विश्वस्तरीय शब्द को शो में चटनी, इडली, छोला- भटूरा, डोसा, चाय, सिंदूर, काजल भिंडी, यार जैसे शब्द स्थान पा चुके हैं। यह वैश्विक हिंदी में प्रगति का ही परिणाम है कि आज रशियन और जापानी चैनल भी हिंदी के रंग में सराबोर हैं। आज विश्व की बहुराष्ट्रीय कंपनियां अखिल भारतीय बाजार प्राप्त करने हेतु हिंदी भाषा पर विशेष बल दे रहे हैं। इस क्षेत्र में नित्य नए- नए शोध अनुसंधान किए जा रहे हैं । हिंदी क्षेत्र में तकनीकी रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। दूसरी ओर इस कार्य हेतु विज्ञापन का अधिकाधिक हिंदी भाषा में प्रयोग होने से हिंदी के अलग रोजगार उन्मुख आयाम खुले हैं । विश्व में बढ़ते कौशल युक्त युवाओं की मांग ने हिंदी को प्रसरणवादी भाषा बना दिया है। कॉरपोरेट कम्पनियां अपने यहां हिंदी जानने वाले को सम्मान दे रही है। अब उन्हें यह समझ आ चुका है कि अगर गांव-गांव तक पहुंच बनानी है तो हिंदी को अपनाना ही होगा।

भारत के निर्यातित उत्पाद (जेनेरिक दवा) एवं अन्य पर लेवलिंग हिंदी में होता है। अफ्रीका एवं अन्य राष्ट्रों में हिंदी भाषा के प्रति आकर्षण बढ़ा है । पर्यटन क्षेत्र एवं यातायात की सुगमता ने भी हिंदी को रोजगार उन्मुख भाषा के रूप में स्थापित किया है। आज हिंदी भाषा कई क्षेत्रों में रोजगार की संभावना लेकर आई है – जैसे प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, पत्रकार, पोस्टर, बैनर, विजिटिंग कार्ड, विवाह कार्ड, बधाई -पत्र, आमंत्रण -पत्र इत्यादि । आज कई सोफ्टवेयर और हार्डवेयर कंपनियों को हिंदी में एक बड़ा उपभोक्ता बाजार दिख रहा है। भारतीय संस्कृति के ज्ञान और मनोरंजन की दृष्टि से हिंदी की प्रभावी भूमिका से सभी अवगत हैं। फिल्म, टेलीविजन, एफ.एम. चैनल के माध्यम से हिंदी भाषी ही नहीं, हिंदीतर भाषी भी बड़ी संख्या में भारतीय संस्कृति और कला परंपराओं से जुड़े रहे हैं। फिल्म और टेलीविजन उद्योग ने अपनी पहुंच वैश्विक बाजार तक पहुंचाई है। इसे हिंदी भाषा का विश्व स्तर पर प्रसार तो हुआ ही साथ ही रोजगार की संभावना में भी वृद्धि हुई तथा बॉक्स आॅफिस पर जबरदस्त कमाई देखी गई है।

आज आॅस्कर से पुरस्कृत फिल्म ‘अवतार’ ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गीत ‘जय हो’ ‘बालिका वधू धारावाहिक’ आदि ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है । ‘जय हो’ के माध्यम से तो कई देश के कैदियों को सुधारा जा रहा है। फीजी, सूरीनाम सहित कई देशों के मुख्य नगरों में शायद ही कोई ऐसा सिनेमाघर होगा जहां हिंदी फिल्म ना दिखाई जाती हो । कई हिंदी फिल्मों ने विदेशों में काफी पूंजी जुटाई है। यही कारण है कि हिंदी के बड़े बजट की फिल्में मुंबई, दिल्ली के साथ लंदन, न्यूयार्क, फ्रांस, जर्मनी सहित दुनिया के तमाम शहरों में सबसे पहले प्रदर्शित की जाती है।

कुछ समय पूर्व,ओबामा प्रशासन द्वारा हिंदी भाषा को प्रोत्साहित किया गया। टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमितनाका ने एक अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष दिया है कि विश्व में चीनी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के रूप में हिंदी सामने आई है। अंग्रेजी तीसरे स्थान पर चली गई है। अमेरिका में हिंदी यू एस नाम की संस्था हिंदी के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय कार्य कर रही है । यह संस्था 35 पाठ-शालाओं का संचालन करती है तथा हिंदी में सालाना परीक्षाएं आयोजित करती है। यह इस संस्था के प्रयासों से ही संभव हुआ है कि अमेरिका में दुकानों के साइन बोर्ड और हिंदी में भी दिखने लगे हैं । ब्रिटेन की यूके हिंदी समिति भी वहां हिंदी की अलख जगाए हैं । वहां करीब एक दर्जन ऐसी संस्थाएं हैं जो नियमित रूप से हिंदी के प्रचार प्रसार में संलग्न है । खाड़ी के देशों में भी हिंदी को लेकर चेतना बढ़ी है। और धीरे-धीरे यहां हिंदी सामान्य बोलचाल की भाषा बन रही है। उजबैक टू हिंदी शब्दकोश का निर्माण हो चुका है। वह दिन दूर नहीं जब हिंदी भाषा विश्व शब्दकोश में परिवर्तित हो जाएगा। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में कामकाज की भाषा के रूप में हिंदी को भी शामिल किया है। प्रकरण कुछ इस प्रकार है कि एक फरवरी, 1946 को पहले सत्र में वठरउ ने एक प्रस्ताव पास किया था। यूएन ने कहा था, संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक दुनिया के लोगों को इसके उद्देश्यों और एक्टिविटीज के बारे में पूरी जानकारी नहीं हो। बहुभाषावाद पर भारत कई वर्षों से यूएन में हिंदी को मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहा था। संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से बहुभाषावाद पर भारत के प्रस्ताव को पारित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी भाषाओं में हिंदी को शामिल कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। इनमें अरबी, चीनी(मैंडरिन), अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल है। इसके अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकामी भाषाएं हैं। लेकिन, अब हिंदी को भी यू.एन. में जगह दे दी गयी है। इसका साफ अर्थ यह है कि संयुक्त राष्ट्र के कामकाज, उसके उद्दश्यों की जानकारी यूएन की वेबसाइट पर अब हिंदी में भी उपलब्ध होगी। यह नि:संदेह बड़े ही गर्व की बात है।

हिंदी के प्रसार में इंटरनेट, फैक्स तथा अन्य विद्युत यंत्र आदि की महत्वपूर्ण भूमिका हैं और अब हिंदी अपने संक्रमण के दौर से बाहर निकल चुकी है । यह दुर्बोधता एवं पूर्वाग्रह से मुक्त होकर एक ताकतवर अंतरराष्‍ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। आज विश्व के लगभग डेढ़ सौ देशों में हिंदी बोली एवं समझी जाती है। इनमें से कुछ राष्ट्रों विशेषकर मॉरीशस, सूरीनाम, फीजी, गुयाना, टोबेगो, जमैका आदि राष्ट्रों की आधी जनसंख्या हिंदी बोलती है। विदेशों में आज विश्‍व के लगभग 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की पढ़ाई, शोध-अनुसंधान एवं अन्वेषण के कार्य स्वतंत्र रूप हो रहे हैं। कई राष्ट्रों में हिंदी के स्वतंत्र विभाग की स्थापना की गई है। यदि हम हिंदी भाषा और साहित्य के प्रसार के कारणों को देखें तो पाते हैं कि वर्तमान में भारत सरकार द्वारा हिंदी के विकास के क्षेत्र में सार्थक एवं प्रभावी प्रयास किए गए हैं । विश्व हिंदी सम्मेलनों द्वारा लिए गए निर्णयों का क्रियान्वयन किया गया हैं। राष्ट्रीय स्तर पर जन जागरूकता एवं जन सहभागिता फैलाई गई है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों एवं अन्य संस्थाओं की भूमिका भी हिंदी के विकास में उल्लेखनीय है। भारत सरकार द्वारा द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय संस्कृति विनिमय संधियां अनिवार्य रूप से हिंदी भाषा में भी की जाती है। उदारीकरण और वैश्वीकरण, भारत की आर्थिक संपन्नता एवं प्रौद्योगिकी क्षमता, विश्व में बढ़ते कुशल श्रमिकों की मांग, भारत में विश्व के सर्वाधिक युवा बल का होना, हिंदी के क्षेत्र में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के उन्नयन और विकास, प्रवासी भारतीय दिवस की भी अहम भूमिका है। प्रवासी भारतीय दिवस के माध्यम से विश्व के तमाम देशों से प्रवासी भारतीय नागरिक एकत्रित होते हैं तथा अपनी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट कर हिंदी को बढ़ावा देते हैं । आज विश्व के अधिकांश देशों एवं राष्ट्र कंपनियां वैश्विक संगठन एवं संस्थाओं के प्रति आकर्षण एवं अभिरुचि बढ़ी है क्योंकि आज हिंदी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय जैसे समावेशी सिद्धांतों पर कार्य करते हुए सब के हितों के संरक्षण व संवर्धन करने में सक्षम है। वर्तमान समय में, चीन, मंगोलिया, मध्य पूर्व एशिया, यूरोप, खाड़ी देश, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि अनेक देशों में न केवल हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या बढ़ी है। वहां की सरकारों, संगठनों एवं कंपनियों द्वारा हिंदी क्षेत्र में शोध, अनुसंधान एवं अन्वेषण का कार्य अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। वैश्विक स्तर पर अधिकांश राष्ट्रों द्वारा हिंदी भाषा की स्वीकार्यता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आज हिंदी भाषाई साम्राज्यवाद और टकराव, भाषाई दासता से मुक्त होकर भाषिक सौहार्द शिक्षण एवं मित्रवत भाषा के रूप में स्थापित हो गया है। आज हिंदी ‘वैश्विक हिंदी विलेज’ एवं ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की तारों को झंकृत कर रहा है।

अत: निष्‍कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आज हिंदी का विस्‍तार विश्‍व स्‍तर पर हो रहा है, चूंकि हिंदी एक सरल, सहज भाषा के साथ ग्रहणशील भाषा है जो पूरी दुनिया को भारत जैसे सबसे बड़े देश से जोड़कर अपना व्‍यापार और वाणिज्‍य को बढ़ाना चाहती है तथा भारत के सबसे बड़े बाजार और उपभोक्‍ता के रूप में देखती हैं। आज समूचा विश्‍व भारतीय संस्‍कृति को अपनाना चाहता है जो उसे शांति और आध्‍यात्‍म का पाठ पढ़ाती है।