- जनसांख्यिकीय परिवर्तन है भारत के लिए गंभीर मुद्दा
संजय दीक्षित
भारत में 1950 से 2015 के मध्य मुस्लिम जनसंख्या में 43.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान हिन्दुओं
की जनसंख्या में 7.8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है I देश में रहने वाले बहुसंख्यक हिन्दुओं सहित अन्य मतावलम्बियों की
जनसंख्या पर (65 वर्ष की समयावधि के) यह आकंड़े प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा तैयार की गई “शेयर
ऑफ़ रिलीजियस माइनॉरिटीज : ए क्रॉस-कंट्री एनालिसिस (1950-2015)” नामक रिपोर्ट से सामने आए हैं I 67 पृष्ठों की यह
रिपोर्ट अर्थशास्त्री शमिका रवि, अब्राहम जोस और अपूर्व कुमार मिश्रा ने तैयार की हैI यह सभी प्रधानमंत्री की आर्थिक
सलाहकार परिषद के सदस्य हैं I
वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था मंथन के दौर से गुजर रही है I कोविड महामारी के बाद विश्व के लगभग सभी देशों में
अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं द्वारा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का विश्लेषण किया जा रहा है I कई दशकों से वैश्विक
स्तर पर जारी विभिन्न परिवर्तनों के बीच जनसांख्यिकीय परिवर्तन भी तेजी से हो रहा है, जिससे दुनिया भर के देशों में
जनसंख्या बदल रही है I 1950 और 2015 के बीच 65 वर्षों के दौरान 167 देशों में हुए जनसंख्या परिवर्तन को रिलीजियस
माइनॉरिटीज : ए क्रॉस-कंट्री एनालिसिस (1950-2015) रिपोर्ट के माध्यम से सामने लाया गया है I रिपोर्ट बताती है कि
विश्व में समग्र समूह के रूप में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, भारत में मुस्लिमों की
संख्या तेजी से बढ़ी है I
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में बहुसंख्यक हिंदू जनसंख्या 1950 में 84.68 प्रतिशत थी, वह 2015 में घटकर 78.06
प्रतिशत रह गई है, जबकि 1950 में मुस्लिम जनसंख्या का जो हिस्सा 9.84 प्रतिशत था, जो 2015 में बढ़कर 14.09 प्रतिशत
हो गया है I इसी तरह देश में ईसाई जनसंख्या का हिस्सा 2.24 प्रतिशत से बढ़कर 2.36 प्रतिशत, सिख जनसंख्या का हिस्सा
1.74 प्रतिशत से बढ़कर 1.85 प्रतिशत, बौद्ध जनसंख्या का हिस्सा 0.05 प्रतिशत से बढ़कर 0.81 प्रतिशत हो चुका है I इसी
तरह भारत में जैन मतावलम्बियों की जनसंख्या में हिस्सेदारी 0.45 प्रतिशत से घटकर 0.36 प्रतिशत रह गई है I आकंड़े
बताते हैं कि देश में पारसी जनसंख्या में 85 प्रतिशत की भारी गिरावट हुई है, जो 1950 में 0.03 प्रतिशत थी, 2015 में
घटकर 0.004 प्रतिशत रह गई। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में, मालदीव को छोड़कर सभी बहुसंख्यक देशों में
मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ी है I
रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में शामिल अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव,
नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका के साथ ही म्यांमार के विषय में बताया गया है कि सार्क से जुड़े चार देशों में बहुसंख्यक धार्मिक
संप्रदाय की हिस्सेदारी में कमी हुई है, जबकि पांच अन्य देशों में इसकी हिस्सेदारी बढ़ी है। रिपोर्ट बताती है कि सभी मुस्लिम
बहुसंख्यक देशों में बहुसंख्यक धार्मिक वर्ग की अर्थात मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि दर्ज की गई है I मालदीव को छोड़कर पांच
गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देशों क्रमशः म्यांमार, भारत और नेपाल में बहुसंख्यक धार्मिक वर्ग की जनसंख्या में गिरावट आई है,
जबकि श्रीलंका और भूटान में उनकी हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है I
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1950 में तत्कालीन पूर्वी और पश्चिमी अर्थात पाकिस्तान और वर्तमान बांग्लादेश में मुस्लिमों की
जनसंख्या 76 प्रतिशत, हिंदुओं की जनसंख्या में 23 प्रतिशत और बौद्ध एवं ईसाई क्रमशः 0.66 प्रतिशत और 0.17 प्रतिशत
थे। 2015 में बांग्लादेश में हिंदू जनसंख्या घटकर 8 प्रतिशत रह गई I बांग्लादेश में हिंदू जनसंख्या को 65 वर्ष से अधिक समय
से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है I उत्पीड़न और जबरन धर्मपरिवर्तन का ही परिणाम ही कहा जाएगा कि बांग्लादेश में
बहुसंख्यक धार्मिक समूह अर्थात मुस्लिम जनसंख्या में 18 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गईI इसी तरह पाकिस्तान में बहुसंख्यक
धार्मिक संप्रदाय (हनफ़ी मुस्लिम) का हिस्सा 77 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत हो गया है, जबकि हिंदू जनसंख्या में 13
प्रतिशत की गिरावट हुई है, जो 2015 में घटकर मात्र दो प्रतिशत रह गई। अफगानिस्तान में जो मुस्लिम जनसंख्या 1950 में
99.4 प्रतिशत थी, वह 2015 में 99.7 प्रतिशत हो गई, जिससे किसी सार्थक विश्लेषण के लिए कोई जगह नहीं बची। यहां
सुन्नी मुस्लिम जनसंख्या 88.7 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हुई, जबकि शिया मुस्लिम 10.7 प्रतिशत पर स्थिर रहे। रिपोर्ट
में मालदीव को एकमात्र ऐसा मुस्लिम-बहुल देश बताया गया है, जहां बहुसंख्यक समूह (शफ़ीई सुन्नी) की जनसंख्या 1950 में
99.8 प्रतिशत से घटकर 2015 में 98.4 प्रतिशत रह गई I इस बीच यहां बौद्ध, ईसाई और हिंदू जनसंख्या में मामूली वृद्धि ही
हुई I
रिपोर्ट में नेपाल की चर्चा करते हुए बताया गया है कि नेपाल में बहुसंख्यक हिन्दू जनसंख्या जो 1950 में 84 प्रतिशत थी,
2015 में कम होकर 81 प्रतिशत हो गई I इसी तरफ बौद्ध, जो 1950 में भी जनसंख्या का 11 प्रतिशत थे, उनकी जनसंख्या में
25 प्रतिशत की कमी हुई और हिस्सेदारी घटकर 8 प्रतिशत रह गई I इसके विपरीत नेपाल में मुस्लिम जनसंख्या 2015 में
बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गई, जिसमें 75 प्रतिशत की अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई I 1950 में नेपाल में ईसाई जनसंख्या लगभग
शून्य थी, जो 2015 में कुल जनसंख्या का दो प्रतिशत हो चुकी है I
रिपोर्ट के अनुसार भूटान में बहुसंख्यक जनसंख्या तिब्बती बौद्धों की है, जिसमें 1950 और 2015 के मध्य लगभग 18 प्रतिशत
की वृद्धि हुई I भूटान की कुल जनसंख्या में दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा 23 प्रतिशत हिंदुओं का था, लेकिन 2015 में हिंदू
जनसंख्या घटकर मात्र 11 प्रतिशत रह गई I श्रीलंका दूसरा ऐसा पड़ोसी देश है जहां बहुसंख्यक बौद्ध हैं I 1950 में यहां बौद्धों
की जनसंख्या 64 प्रतिशत थी, जिनमें से लगभग सभी बौद्ध थे I जनसंख्या का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा 20 प्रतिशत हिन्दू
जनसंख्या का था I 2015 तक बौद्ध जनसंख्या बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई, जबकि हिंदू जनसंख्या घटकर लगभग 15 प्रतिशत
रह गई I श्रीलंका में दो सबसे बड़े समूह ईसाई और मुस्लिम वर्ग हैं, जिसमें क्रमशः लगभग 9 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की वृद्धि
हुई है I यहां ध्यान देने लायक बिंदु यह भी है कि यहां मुस्लिम जनसंख्या कुल जनसंख्या के आधार पर दूसरे स्थान पर पहुंच
चुकी है और ईसाई जनसंख्या तीसरे स्थान पर आ गई है I म्यांमार में भी बौद्ध जनसंख्या में 10 प्रतिशत की गिरावट आई है,
जो 1950 में 84 प्रतिशत से घटकर 2015 में 75 प्रतिशत हो चुकी है I इसी अवधि में ईसाई जनसंख्या का हिस्सा 4 प्रतिशत से
बढ़कर 8 प्रतिशत तक पहुंच गया और स्वदेशी धर्मों को मानने वालों में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई I
रिपोर्ट में वैश्विक परिदृश्य की चर्चा करते हुए बताया गया है कि विश्व के 123 देशों में धार्मिक रूप से बहुसंख्यक जनसंख्या में
कमी हुई, जबकि 44 देशों में धार्मिक रूप से बहुसंख्यक जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई है I भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां
अल्पसंख्यकों को संवैधानिक-क़ानूनी अधिकार प्रदान किए गए हैं I इसीलिए भारत में अल्पसंख्यक जनसंख्या तेजी से बढ़
रही है I देश की बहुसंख्यक हिन्दू धर्मावलम्बियों की घटती हुई जनसंख्या गहन चिंता का विषय है I विकसित भारत के स्वप्न
को पूरा करने के लिए कार्य कर रहे नीति निर्धारकों को भारत में हो रहे जनसांख्यिकी परिवर्तन के कारण सामने मंडरा रहे
संकट पर भी विचार करना होगा I