
निर्मल रानी
हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया ने पिछले दिनों अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉक्टर अली ख़ान के विरुद्ध एक शिकायत दर्ज की थी। जिसमें उन पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारतीय सेना की महिला अधिकारियों के बारे में सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था। अपनी शिकायत में रेनू भाटिया ने कहा कि ‘ प्रोफ़ेसर ख़ान ने अपनी पोस्ट में महिला सैन्य अधिकारियों की प्रेस ब्रीफ़िंग को “दिखावा” क़रार दिया और यह सुझाव दिया कि सरकार मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध काम करती है’, जिसे उन्होंने अपमानजनक और अस्वीकार्य माना। इस शिकायत के आधार पर, राई थाना पुलिस ने प्रोफ़ेसर ख़ान के विरुद्ध बीएनएस की धारा 353, 79, 152, और 169(1) के तहत मुक़दमा दर्ज किया, रेनू भाटिया की शिकायत के बाद ही 18 मई 2025 को प्रोफ़ेसर ख़ान की गिरफ़्तारी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश से हुई। हालाँकि बाद में 21 मई को सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अंतरिम ज़मानत भी मिल गयी।
दरअसल डॉ. अली ख़ान जोकि अशोका यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के साथ साथ राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख भी हैं, ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संबंध में में गत 8 मई एक सोशल मीडिया पोस्ट के द्वारा ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफ़िंग में शामिल महिला सैन्य अधिकारियों, कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह, की सराहना की थी। डॉ. अली ख़ान ने लिखा था कि ‘दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों द्वारा इन अधिकारियों की तारीफ़ करना अच्छा है, लेकिन यह “पाखंड” होगा यदि यह ज़मीन पर हक़ीक़त में नहीं बदला। उन्होंने यह भी कहा कि इन टिप्पणीकारों को मॉब लिंचिंग, अवैध बुलडोज़िंग और बीजेपी की कथित नफ़रत फैलाने वाली राजनीति के शिकार लोगों के लिए भी समान रूप से सुरक्षा की मांग करनी चाहिए।’ इसी पोस्ट को हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भारतीय सेना की महिला अधिकारियों का अपमान करने और सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने वाला माना। आयोग ने इसे राष्ट्रीय सैन्य कार्रवाइयों को बदनाम करने की कोशिश क़रार दिया, जिसके बाद ही डॉ. अली ख़ान के विरुद्ध प्राथमिकी व गिरफ़्तारी जैसी त्वरित कार्रवाई हुई।
इस घटनाक्रम के बाद ही हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया से मीडिया ने जानना चाहा कि डॉ. अली ख़ान के बयान में ग़लत क्या है ? इत्तेफ़ाक़ से उनका सामना इंडिया टुडे टेलीवीज़न चैनल पर इंटरव्यू लेने वाली पत्रकार प्रीति चौधरी से हो गया। इस इंटरव्यू में जब एंकर प्रीति चौधरी ने रेनू भाटिया से पूछा कि अली ख़ान ने सैन्य महिला अधिकारियों का अपमान कैसे किया? तो रेनू भाटिया बग़लें झाँकने लगीं और सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं दे पाईं। उन्होंने कहा, “एक व्यक्ति सिर्फ़ ऊपर और नीचे दो लाइनें आर्मी और देश के लिए लिखकर, उसके बाद सारा मीनिंग…” और फिर बात को अस्पष्ट छोड़ दिया। जब उनसे एंकर प्रीति चौधरी द्वारा बार बार पूछा गया कि अली ख़ान की कथित आपत्तिजनक दो लाइनें क्या थीं, तो उन्होंने जवाब में कहा, “आप प्लीज़ मुझे उसका मतलब बता दीजिए, जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार ने ऐसा किया। उसका क्या मतलब है और किसके लिए कहा।” इसके अलावा, रेनू भाटिया ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान के परिवार के कथित पाकिस्तान फ़ंडिंग कनेक्शन का ज़िक्र किया जोकि उनकी सोशल मीडिया पोस्ट से बिलकुल भिन्न था। बहरहाल इस इंटरव्यू में रेनू भाटिया की अस्पष्ट प्रतिक्रियाओं व उनके अस्पष्ट जवाब व अपनी ही शिकायत को न्यायसंगत न बता पाने के कारण सोशल मीडिया पर उनकी काफ़ी आलोचना हुई इसके लिये वे ट्रोलिंग का शिकार भी हुईं । साक्षात्कार के दौरान उनकी असहजता व उनका लाजवाब हो जाना इस बात का सुबूत था कि उन्होंने जो भी किया था वह पूर्वाग्रह,विद्वेष व वैमनस्य से प्रेरित था।
परन्तु इससे बड़ा सवाल यह है कि रेनू भाटिया को बेनक़ाब करने का काम किसने किया ? निश्चित रूप से यह साहस इंडिया टुडे टेलीवीज़न की पत्रकार प्रीति चौधरी ने ही दिखाया जिन्होंने बार बार रेनू भाटिया को दर्पण दिखाया और उनसे यही पूछती रहीं कि ‘बताइये डॉ ख़ान के बयान में सेना या महिलाओं का अपमान कहाँ और किस पंक्ति में नज़र आता है ?’ दरअसल देश को आज ऐसी ही निष्पक्ष पत्रकारिता की ज़रुरत है। ‘गोदी मीडिया’ ने तो भारतीय मीडिया को केवल सनसनीख़ेज़ और पक्षपातपूर्ण बनाकर रख दिया है। आज दुनिया के बड़े अख़बार,पत्रकार और विश्लेषक भारतीय न्यूज़ चैनल्स और कुछ समाचार पत्रों को “हाइपर-नेशनलिस्ट” या सरकार-समर्थक कवरेज करने वाला बताते हैं तथा इसकी आलोचना करते हैं। अनेक भारतीय चैनल्स पर चीख़-चिल्लाकर बहस करने की शैली या अतिरंजित हेडलाइंस को पत्रकारिता जगत में अव्यवसायिक माना जाता है। भारतीय मीडिया को लेकर एक धारणा यह भी है कि भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता पर सरकारी और कॉरपोरेट दबाव बढ़ रहा है। इन्हीं कारणों से “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स” (RSF) जैसे संगठनों ने भारत की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग में गिरावट को उजागर किया है। 2025 में भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 161 वें स्थान पर था। इतना ही नहीं बल्कि पश्चिमी मीडिया में अक्सर इस बात पर भी चर्चा होती है कि भारतीय पत्रकारों को धमकियां, क़ानूनी कार्रवाइयां, या सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है।
13 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के.एम. जोसेफ़ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने नफ़रती भाषणों (Hate Speech) से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान टेलीवीज़न चैनल्स की भूमिका पर गंभीर टिप्पणी की थी। पीठ ने कहा था कि टीवी समाचार सामग्री पर नियामकीय नियंत्रण की कमी एक “बड़ा ख़तरा” है, क्योंकि चैनल टीआरपी की दौड़ में एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हुए समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं। उसी समय जस्टिस जोसेफ़ ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीएसए) से पूछा था कि कितनी बार एंकरों को नफ़रती भाषण फैलाने के लिए उनके कार्यक्रमों पर रोक लगाई गई है? जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि टीवी चैनल नफ़रती भाषण के प्रचार में शामिल होकर समाज में दरार डाल रहे हैं, और यदि चैनल कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन करते पाए जाते हैं, तो उनके प्रबंधन के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए। पीठ ने यह भी जोड़ा कि भारत को एक “स्वतंत्र और संतुलित प्रेस” की ज़रूरत है, और टीवी की तुलना में अख़बार पढ़ने वाले दर्शक कम प्रभावित होते हैं, क्योंकि ख़ासकर युवाओं पर टीवी का प्रभाव तुरंत और गहरा होता है।
मीडिया पर छाये ऐसे संकट में केवल एक ज़िम्मेदार व निष्पक्ष पत्रकारिता ही देश के लोकतंत्र के लड़खड़ाते कथित चौथे स्तंभ की साख को बचा सकती है। इसके लिये मीडिया को सत्ता का मुखपत्र नहीं बनना चाहिये न ही नफ़रती एजेंडा चलाना चाहिये। बल्कि सत्ता हो या विपक्ष सभी से ईमानदारी से सवाल पूछना चाहिये। बेशक आज झूठ व पाखंड को बेनक़ाब करने के लिये ईमानदार पत्रकारिता बेहद ज़रूरी है।