भारत में कैसे कम हो पाएंगे सड़क हादसे

रमेश सर्राफ धमोरा

भारत में आज कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता है। जिस दिन देश के किसी ना किसी भाग में सड़क हादसा न हुआ हो। जिसमें कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़े। विकास की प्रतीक मानी जाने वाली सड़कें विनाश का पर्याय बनती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में सड़क हादसों में मारे गए 10 लोगों में से कम से कम एक भारत से होता है।

भारत में 2021 में हुए सड़क हादसों की ताजा रिपोर्ट सामने आई है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि देश में वर्ष 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है। यह आंकड़ा औसतन 426 लोग प्रतिदिन या हर घंटे 18 लोगों का है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल देश भर में 4.03 लाख सड़क दुर्घटनाओं में मौतों के अलावा 3.71 लाख लोग घायल भी हुए थे।

आंकड़ों से पता चलता है कि देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों (2021) पर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक रोड एक्सीडेंट के मामले 2020 में 3,64,796 से बढ़कर 2021 में 4,03,116 हो गए। मौतों में 16.8% बढ़ोतरी हुई है। 2020 में 1,33,201 और 2021 में 1,55,622 लोगों ने सड़क हादसे में अपनी जान गवाई है। साथ ही 2021 में प्रति हजार वाहनों की मौत दर 2020 में 0.45 से बढ़कर 2021 में 0.53 हो गई है। विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं तेज गति के कारण हुई हैं।

देश में मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितंबर 2019 से लागू हुआ था। इसका मकसद देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क हादसों में लोगों की मौत की संख्या को कम करना था। लेकिन अब जैसे-जैसे देश में अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है तो देश उसी पुरानी अवस्था की ओर बढ़ रहा है। परिवहन और यातायात दोबारा तेज होने के साथ ही सड़क हादसों की संख्या और उनसे होने वाली मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।

भारत में होने वाले सड़क हादसे में करीब 26 फीसदी खतरनाक या लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग की वजह से होते हैं। पिछले साल इनकी वजह से 42 हजार 500 लोगों की जान चली गई और एक लाख से अधिक लोग घायल हो गए। कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था। उससे सड़क हादसों में लगभग बीस हजार लोगों की जान जाने से बचायी गईं। अप्रैल से लेकर जून 2020 तक सड़क हादसों में 20 हजार 732 लोगों की मौत हुई। जबकि 2019 में अप्रैल से जून के बीच 41 हजार 32 लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई थी।

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि भारत का राजमार्ग ढांचा 2024 तक अमेरिका के बराबर हो जाएगा। जिसके लिए समयबद्ध मिशन मोड में काम चल रहा है और ग्रीन एक्सप्रेसवे और रेल ओवर ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतमाला 2 के लिए जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी मिलने की संभावना है और एक बार इसके बाद यह देश में एक मजबूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं को पूरा करेगा। गडकरी ने कहा मुझे विश्वास है कि भारत के राजमार्ग 2024 तक अमेरिका के बराबर हो जाएंगे। भारत की लंबाई और चौड़ाई में हरित एक्सप्रेसवे के नेटवर्क सहित एक मजबूत बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए समयबद्ध मिशन मोड में काम चल रहा है। गडकरी ने उम्मीद जतायी कि 2025 तक सड़क दुर्घटनाएं और इसके कारण होने वाली मौतें 50 प्रतिशत तक कम हो जाएंगी।

गडकरी का कहना है कि जानलेवा सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिये राज्यों को केन्द्रीय सड़क कोष के एक हिस्से का इस्तेमाल करना चाहिये और दुर्घटनावाली जगहों को दुरुस्त करना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम न सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों पर बल्कि राज्य राज मार्गों पर भी हादसों की संख्या कम करने की कोशिश कर रहे हैं । जिलों में सड़क सुरक्षा समितियां गठित की जानी चाहिये। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ सांसदों को करनी चाहिये और जिलाधिकारियों को इनका सचिव बनाया जाना चाहिये। यह समिति जिला स्तर पर दुर्घटना के सभी पहलुओं को देखे।

सरकार सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने के लिए तेजी से काम कर रही है। इसके लिए नीतिगत सुधारों और सुरक्षित प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। 2030 तक भारतीय सड़कों पर जीरो एक्सीडेंट की दृष्टिगत करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। गडकरी ने बताया कि तमिलनाडु में हादसों और मृत्यु संख्या में 53 प्रतिशत की गिरावट आयी है। गडकरी के अनुसार सरकार सड़क पर दुर्घटना संभावित क्षेत्र की पहचान करने और इसके समाधान के लिए 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी।

सड़कों पर बने मोड़ों जैसे टी जंक्शन और टी वाई पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती है। देश भर में हुए कुल हादसों में से 37 फीसदी हादसे उन्हीं चौराहों और मोड़ों पर होते हैं। उनमें से तकरीबन 60 फीसदी हादसे टी और टी वाई जंक्शन पर रिकॉर्ड किए गए। इनकी सबसे बड़ी वजह ड्राइवरों की गलती रहती है। स्पीड सीमा को पार करना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, ओवरटेकिंग और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना कुछ ऐसी गलतियां हैं। जिनसे बड़ी संख्या में सड़क हादसे हो रहे हैं। कुल सड़क हादसों में से 84 फीसदी हादसों के पीछे ड्राइवरों की गलती होती है।

शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है। जिनमें ज्यादातर बसें पुरानी हो चुकी हैं। कई अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए हमें इस समय सड़कों पर चल रही बसों के मुकाबले कई गुना अधिक बसों की जरूरत है। बसों की कम संख्या व बढ़ती भीड़ के चलते कोविड-19 के दौर में भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है। इससे कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने का खतरा मंडराता रहता है।

सड़क हादसों के कारण अक्सर परिवारों की आमदनी के स्रोत को नुकसान होता है व उनकी रोजी रोजगार छिन जाता है। संबंधित परिवार को आर्थिक दिक्कतें होती हैं। जो लोग सड़क दुर्घटनाओं में बच भी जाते हैं उनके इलाज में भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। हालांकि 2019 का मोटर व्हीकल एक्ट सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को बीमा के जरिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराता है। लेकिन इस कानून से सड़क हादसों के शिकार लोगों को होने वाली मानसिक क्षति की भरपाई नहीं होती। इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में सालाना करीब 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है।

देश की सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इस पर नियंत्रण के उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही वाहनों की सुरक्षा के मानकों की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। स्कूलों में सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरूकता अभियान चलाए जाए। भारी वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को परमिट दिए जाने की प्रक्रिया में कड़ाई बरती जाए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए योग्यता भी तय की जाए। साथ ही छोटे बच्चे और किशोरों के वाहन चलाने पर कड़ाई से रोक लगे। तेज रफ्तार, सुरक्षा बेल्ट का प्रयोग न करने वालों और शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। तभी देश में सडकों पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लग पायेगी।

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।)