दुनिया के लिये कितनी खतरनाक हो सकती है इजरायल-ईरान जंग

How dangerous can the Israel-Iran war be for the world

संजय सक्सेना

13 जून 2025 को ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के तहत इजरायल ने ईरान के कई परमाणु और सैन्य ठिकानों पर एक बड़ा हमला किया। इन हमलों में नतांज़ जैसे प्रमुख परमाणु संस्थानों, मिसाइल अड्डों और सैन्य कमांड सेंटर्स को निशाना बनाया गया। हमले में 200 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इजरायल का दावा है कि यह कार्रवाई ईरान की परमाणु क्षमता को रोकने के लिए आवश्यक थी। इसके जवाब में ईरान ने मिसाइलों और ड्रोन के जरिए इजरायल के कुछ क्षेत्रों पर हमला किया, हालांकि इनमें से अधिकांश हमले इजरायल और अमेरिका की वायु रक्षा प्रणालियों द्वारा निष्क्रिय कर दिए गए।

यह पहला अवसर है जब दोनों देश प्रत्यक्ष युद्ध की स्थिति में आ गए हैं। पहले के वर्षों में दोनों देश प्रॉक्सी लड़ाइयों तक सीमित थे, जैसे सीरिया, लेबनान और गाजा पट्टी के ज़रिए, लेकिन अब सीधा टकराव शुरू हो गया है। इससे मध्य-पूर्व में पहले से अस्थिर माहौल और अधिक जटिल हो गया है। अमेरिका ने इजरायल को सैन्य सहायता प्रदान की है और यह संकेत दिया है कि यदि संघर्ष बढ़ता है तो वह और अधिक समर्थन देगा। हालांकि, अमेरिका के अंदर इस मुद्दे पर मतभेद हैं। कुछ वर्ग संघर्ष को जल्द समाप्त करने के पक्ष में हैं, जबकि अन्य सतर्क रणनीति अपनाने की सलाह दे रहे हैं।

इजरायल के अनुसार, उसका लक्ष्य ईरान की परमाणु क्षमता को समाप्त करना है, जबकि ईरान का दावा है कि वह आत्मरक्षा कर रहा है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि ईरान अभी तक परमाणु हथियार बनाने का अंतिम निर्णय नहीं ले चुका है, लेकिन उसका कार्यक्रम तेजी से उस दिशा में बढ़ रहा है। इससे परमाणु युद्ध का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ईरान की प्रतिक्रिया में उसके प्रॉक्सी नेटवर्क का प्रयोग भी संभावित है। हिज़्बुल्लाह, हूथी विद्रोही और इराकी मिलिशिया जैसे समूहों को ईरान सक्रिय कर सकता है। इससे पूरे मध्य-पूर्व में लड़ाई के कई मोर्चे खुल सकते हैं। खासकर यदि हिज़्बुल्लाह इजरायल के खिलाफ सक्रिय हुआ, तो लेबनान सीमा पर भी युद्ध भड़क सकता है। इस स्थिति में इजरायल को दो-तरफा मोर्चा संभालना पड़ सकता है।

तेल और गैस की आपूर्ति पर इस युद्ध का बड़ा असर पड़ सकता है। ईरान होर्मुज़ जलसंधि के ज़रिए विश्व के लगभग 20 कच्चे तेल का मार्ग नियंत्रित करता है। यदि यह बाधित होता है तो वैश्विक स्तर पर पेट्रोलियम कीमतों में तेज़ उछाल आ सकता है। भारत जैसे देश, जो ऊर्जा आयात पर निर्भर हैं, उन्हें आर्थिक झटका लग सकता है। इसके साथ-साथ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं भी प्रभावित होंगी, जिससे महंगाई बढ़ सकती है।संघर्ष के मानवीय पहलू भी गंभीर हैं। मिसाइल हमलों से नागरिकों की मौत हो रही है, लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं और विस्थापन की आशंका बढ़ रही है। यदि युद्ध लंबा खिंचता है तो शरणार्थी संकट उत्पन्न हो सकता है, जिससे यूरोप और एशिया के देशों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।

इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस हमले को यहूदी अस्तित्व की रक्षा के लिए आवश्यक बताया है। उन्होंने कहा है कि अगर अब कार्रवाई नहीं की गई, तो भविष्य में परमाणु हमले की आशंका बनी रहेगी। वहीं, ईरान के सर्वाेच्च नेता अयातुल्ला खामनेई ने चेतावनी दी है कि उनका देश अपने दुश्मनों को करारा जवाब देगा। यह बयानों की भाषा इस बात की ओर संकेत करती है कि संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है और आगे और तीव्र हो सकता है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से युद्ध को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। अमेरिका, यूरोप, रूस और चीन ने कूटनीतिक माध्यमों से हालात शांत करने की अपील की है। ओमान में कुछ गुप्त वार्ताएं भी चल रही हैं, लेकिन इजरायल के आक्रामक कदमों और ईरान की जिद्दी प्रतिक्रिया के चलते इनका सफल होना संदिग्ध है।भारत के लिए यह संघर्ष विशेष महत्व रखता है। एक ओर यह देश की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है, वहीं खाड़ी क्षेत्र में बसे लाखों भारतीयों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। इसके अतिरिक्त वैश्विक व्यापार और आर्थिक स्थिरता पर भी इसका असर हो सकता है।

अगर यह युद्ध नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह पूरे मध्य-पूर्व को चपेट में ले सकता है और संभव है कि यह तीसरे विश्व युद्ध जैसी भयावह स्थिति की ओर बढ़े। इसलिए वैश्विक कूटनीति, संयम और त्वरित हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है।संक्षेप में, ईरान और इजरायल के बीच वर्तमान युद्ध सिर्फ दो देशों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह एक संभावित वैश्विक संकट की भूमिका है। इसमें न केवल क्षेत्रीय अस्थिरता, बल्कि आर्थिक संकट, मानवीय त्रासदी और परमाणु खतरे का भी सम्मिलन है। यदि यह समय रहते नहीं रुका, तो इसके परिणाम पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी हो सकते हैं।