ललित गर्ग
विपक्ष बात-बात पर तू-तू, मैं-मैं करते हुए बात का बतंगड़ बनाकर देश का भारी नुकसान कर रहा है। संसद को चलने नहीं दे रहा है, आधे-अधूरे बयान के हिस्से को प्रचारित कर घटिया एवं सस्ती राजनीति करते हुए देश को गुमराह कर रही है। बेबुनियाद एवं भ्रामक मुद्दों को उछाल कैसे गुल खिलाये, कैसे देश को अंधेरों में धकेला जाये, इसी फिराक में कांग्रेस एवं समूचा विपक्ष दिनरात लगा है, इसका प्रमाण है गत दिवस संसद में गृह मंत्री अमित शाह के डा. आंबेडकर को लेकर दिए गए बयान पर विपक्ष का हंगामा, तीखी नोकझोंक एवं होहल्ला। इस हंगामे का आधार यह है कि गृह मंत्री ने यह कह कर आंबेडकरजी का अपमान कर दिया कि यदि आंबेडकर, आंबेडकर करने वाले इतना नाम भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। मुश्किल यह है कि हंगामा करने वाले यह स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर ऐसा कहने से आंबेडकरजी का अपमान कैसे हो गया? विडम्बना देखिये कि आजादी के बाद से अब तक आंबेडकर का अपमान करने, तिरस्कार करने एवं उनकी उपेक्षा करने वाला दल एकाएक उनका इतना हिमायती कैसे हो गया? यह सारा हंगामा विपक्ष इसलिये कर रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भारतीय जनता पार्टी ने आंबेकडर को शीर्ष राष्ट्रनायकों में शुमार कर किया है और उनकी नीतियों, सिद्धान्तों एवं मूल्यों को राजनीति का अहम हिस्सा बनाया है। विपक्ष डरा हुआ है कि भाजपा आंबेडकर को आजादी के बाद प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के बाद उचित स्थान देकर दलित समुदाय के हितों की वास्तविक चिन्ता की है, जिससे दलित वोट भाजपा के पक्ष में जाता हुआ दिख रहा है। इसलिये शाह के बयान को तोड़-मरोड एवं आधा-अधूरा प्रस्तुत कर बेवजह का हंगामा करने पर तुले विपक्ष एवं उनके नेताओं ने जो एवं जैसे तर्क दिए हैं, वे विचित्र ही नहीं, हास्यास्पद भी हैं।
बाबा साहेब आंबेडकर पर घडियाली आंसू बहाने वाला विपक्ष एवं विशेषतः कांग्रेस यह भूल रही है कि आंबेडकर का सर्वाधिक अपमान एवं उपेक्षा इन्हीं दलों ने की है। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आंबेडकर को पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि आंबेडकर मुस्लिम तुष्टिकरण की कांग्रेस नीति से नाखुश थे। उनका मत था कि धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ है, अतः सभी मुस्लिम को भारत छोड़ देना चाहिए? गांधी और नेहरू ने इस विचारधारा का विरोध किया? गांधी तो विरोध में भूख हड़ताल पर बैठ गए? बाबा साहेब ने गांधी से समझौता कर संविधान को मुस्लिम के अनुसार ड्राफ्ट कर दिया? फिर भी नेहरू बाबा साहेब के विरुद्ध लगातार लगे रहे। यहां तक आंबेडकर के चुनाव लड़ने पर नेहरू ने उनके खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी खड़ा कर उन्हें हरवा दिया? विडम्बना देखिये कि आंबेडकर के सचिव नारायण सदोबा काजरोलकर को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया। कांग्रेस ने न केवल दो बार उन्हें चुनाव में हराया बल्कि केन्द्र सरकार में उनकी घोर उपेक्षा लगातार जारी रखी। इसी से नाराज होकर आंबेडकर ने मंत्री पद से इस्तिफा देते हुए नेहरू पर गंभीर आरोप लगाये। इतना ही नहीं आंबेडकर ने स्वयं के बनाये संविधान को जला देने की बात भी इसलिये कही थी कि संविधान का संचालन गलत हाथों में है।
इतिहास की इन त्रासद एवं विसंगतिपूर्ण स्थितियों के बावजूद आखिर कांग्रेस किस आधार पर आंबेडकर की तस्वीरें लेकर संसद परिसर में विरोध कर रही है। अपने आरोप को पुष्ट करने के लिए विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस नेता गृह मंत्री के बयान के एक हिस्से को तो प्रचारित कर रहे हैं, लेकिन उसके शेष हिस्से को सुनने के लिए तैयार नहीं, जिसमें उन्होंने कहा था कि डा. आंबेडकर का नाम लेने वालों ने किस तरह उनके विचारों के खिलाफ काम किया और उन्हें अपमानित करने में भी संकोच नहीं किया। लगता है कांग्रेस को यही नागवार गुजरा और इसी कारण वह संसद के भीतर-बाहर इस मामले को तूल देने में जुट गई। इसे तूल देने के लिए उसके नेताओं की ओर से संसद के दोनों सदनों में आज भी हंगामा बरपाया कि दोनों दलों के सांसदों के बीच मकर द्वार पर धक्कामुक्की में भाजपा सांसद प्रताप सारंगी के सिर में चोट देखी गई। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घायल सांसद ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने एक सांसद को धक्का दिया, जो मेरे ऊपर गिरे। आरोप पर जवाब देते हुए राहुल ने कहा कि हां! ऐसा हुआ। वे हमें प्रवेश द्वार पर रोकने की कोशिश रहे थे। ये तर्क एवं त्रासद स्थितियां संसदीय गरिमा को धुंधलाने वाली है। कांग्रेस के तर्कों का स्तर न केवल राजनीतिक विमर्श का गिराने वाला ही नहीं, बल्कि यह बताने वाले भी हैं कि नेतागण किस तरह तिल का ताड़ बनाने में माहिर हो गए हैं। कांग्रेस भाजपा के बारे में तथ्यहीन एवं भ्रामक अफवाहें फैला रही है। कांग्रेस नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक गरीब और बेरोजगारी का गीत गाते रहे हैं, लेकिन उनके शासनकाल में न तो गरीब खत्म हुए और न बेरोजगारी? नीयत में खोट और अनुभवहीनता का जब सत्ता प्राप्ति के संदर्भ में समन्वय हो जाता है, तो ऐसी हास्यास्पद स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। भारत की राजनीति में इस समय यही स्थिति बन गई है।
राजनीतिक बहस का स्तर इतना छिछलादार, स्तरहीन एवं बेबुनियाद नहीं होना चाहिए। झूठ को जोर-जोर से चिल्लाकर कहने से वह सच नहीं हो जाता। यह अच्छा हुआ कि गृह मंत्री ने अपने बयान पर कोई सफाई देने के बजाय दो टूक यह कहना उचित समझा कि उनके पूरे वक्तव्य को सुना जाए। वैसे यह तय है कि विपक्षी नेता ऐसा नहीं करने वाले, क्योंकि उन्हें यही साबित करना है कि आंबेडकरजी का अपमान हो गया, संविधान खतरे में आ गया इसलिये गृहमंत्री को अपने पद से इस्तिफा दे देना चाहिए। आखिर इसे मूर्खतापूर्ण राजनीति न कहा जाए तो क्या कहा जाए? इस पर हैरानी नहीं कि राहुल गांधी को फिर से यह नजर आने लगा कि मोदी सरकार संविधान बदलने जा रही है। कांग्रेस नेता गृह मंत्री के बयान को लेकर आसमान सिर पर उठाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे इस सच को नहीं छिपा सकते कि उनके शासनकाल में डा. आंबेडकर की किस तरह उपेक्षा और अनदेखी की गई। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि जहां जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को तो उनके जीवनकाल में ही भारत रत्न से सम्मानित कर दिया गया, लेकिन आंबेडकरजी को यह सम्मान दशकों बाद 1990 में मिल सका।
यहां तक संसद के केन्द्रीय कक्ष में मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू एवं इन्दिरा गांधी की तस्वीरें तभी लग गयी लेकिन आंबेडकर की तस्वीर वी.पी. सिंह ने प्रधानमंत्री रहते लगायी गयी। क्या कांग्रेस बता सकेगी कि ऐसा क्यों हुआ? क्यों आंबेडकर की लगातार उपेक्षा होती रही?
डा. आंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 के अपने ऐतिहासिक भाषण में यह कहा था कि संविधान कितना अच्छा होगा, यह आगे चलकर उसे चलाने वालें सत्ता नेतृत्व की मानसिकता एवं नीयत पर निर्भर करेगा। 1975-77 में यह शब्दशः सत्य सिद्ध हुआ, जब पद पर बने रहने की लालसा ने संविधान के साथ अत्याचार करते हुए आपातकाल लागू किया गया, जिसे इतिहास भूलेगा नहीं। लेकिन आज जो संविधान बचाने का शोर सुनाई दे रहा है और जिसकी प्रति संसद से संभल तक लहराई जा रही है, वह देश का ध्यान भटकाने की कोशिश मात्र है, जनता को गुमराह करने की कुचेष्टा मात्र है। निश्चित ही यह दयनीय, विडम्बनापूर्ण एवं त्रासद है कि सत्ता पाने के लिए व्याकुल लोगों की व्यग्रता अब घातक उग्रता के रूप में प्रकट हो रही है। संसद के कार्य संचालन में जैसे व्यवधान डाले जा रहे हैं, वे न तो भारत के संविधान के प्रति कोई आदरभाव प्रकट करते हैं, न ही आंबेडकर के प्रति कोई श्रद्धा प्रकट करते हैं। आज हमारे विपक्ष के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जो इस स्थिति से देश को बाहर निकाल सके, राष्ट्रीय चरित्र को जीवित रखने का भरोसा दिला सके। प्रश्न है कि निराश करने वाला विपक्ष देश को कब तक अंधेरों में धकेलता रहेगा?