शिवराज की पांचवी शपथ में कितने विध्न कितनी बाधाएं

  • भाजपा आलाकमान के लिए शिवराज अमृत या हलाहल।

नरेंद्र तिवारी

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर अनेकों तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। इन चर्चाओं को भाजपा आलाकमान की कार्यप्रणाली से अधिक बल मिलता दिखाई दे रहा है। एमपी की राजनीति में सबसे बड़ा सवाल यह बना हुआ कि चार बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ग्रहण कर चुके प्रदेश के मामा याने की शिवराज सिंह चौहान पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर पाएंगे या नहीं ? शिवराज की पांचवी शपथ में कितने विध्न और कितनी बाधाएं है। शिवराज की राह में रोड़ा बनी इन विध्न बाधाओं पर नजर दौड़ाई तो तो पाया कि एमपी में 17 नवम्बर को विधानसभा की 230 सीटों पर मतदान होना है। दिसम्बर की 3 तारिख को परिणाम घोषित होगा। विधानसभा चुनाव को अब जबकि एक माह से भी कम समय शेष है। प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा के आलाकमान की नीति मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पीछे धकेलती दिखाई दे रही है। वह शिवराज जिन्होंने एमपी में सबसे अधिक समय मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड बनाया है। वह शिवराज जो एमपी से करीब 5 बार विदिशा से लोकसभा सदस्य रह चुके। वह शिवराज जो भाजपा के सांगठनिक पदों का भी लम्बा अनुभव रखते है। एमपी में मामा के नाम से विख्यात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जनता के परिचित और चुनाव जिताऊ चेहरे माने जाते रहे है। प्रदेश की राजनीति के अमृत समझे जाने वाले शिवराज क्या अब भाजपा के लिए अमृत नहीं रहे ? भाजपा आलाकमान की अब तक कि नीति तो यहीं दर्शाती प्रतीत हो रही है। जिसके अनुसार मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को कमतर औऱ किनारे करने की तस्वीर बनती दिखाई दे रही है। इसका उदाहरण 21 अगस्त को भोपाल के दौरे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता गृह मंत्री अमित शाह से जब पत्रकारों ने पूछा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की और से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा ? उन्होंने इसके जवाब में कहा शिवराज अभी मुख्यमंत्री हैं ही, चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, ये पार्टी का काम है और पार्टी ही तय करेगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह के बयान के सीधे मायने यह निकाले जा रहे है कि एमपी में शिवराज के चेहरे पर भाजपा 2023 का विधानसभा चुनाव नही लड़ने जा रही है। इसी क्रम में 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यकर्ता महाकुंभ में शामिल हुए। भोपाल के जम्बूरी मैदान में 40 मिनिट दिए अपने भाषण में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम एक बार भी नही लिया। इसे लेकर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया की प्रधानमंत्री ने शिवराज के नाम और काम दोनों से कन्नी काट ली है। इन सब चर्चाओं के बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चौथी सूची में विधानसभा उम्मीदवार के रूप में नाम घोषित होना भी इस बात का संकेत माना गया कि भाजपा आलाकमान यह मान चुका है कि शिवराज अब भाजपा के लिए अमृत नहीं रहे। अब वह परिस्थियां नही है कि उनके नाम से 2023 के विधानसभा चुनाव में विजय हासिल की जा सके। क्या भाजपा नैतृत्व को कुछ बड़े नेताओं के नाम जिसमे शिवराज भी शामिल है। पहली सूची में शामिलकर इन नेताओं की गरिमा बढाने की कोशिश नही करना चाहिए थी। इसके विपरीत केंद्रीय नैतृत्व उन्हें हलाहल (विष) मानता दिखाई दे रहा है।

प्रदेश में नए चेहरे की तलाश में भाजपा।

भाजपा द्वारा प्रदेश चुनाव में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गनसिंह कुलस्ते एवं कैलाश विजयवर्गीय जैसे बड़े चेहरों को मैदान में उतारकर प्रदेश में नए नैतृत्व के उभार की संभावनाओं को बल दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों ने शिवराज की पांचवी शपथ पर संदेह व्यक्त करना शुरू कर दिया है। इन संदेहों को शिवराज सिंह के बयानों से भी बल मिला, जब आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी जिले उन्होंने एक कार्यक्रम में भीड़ से कहा ‘मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि मैं अच्छी सरकार चला रहा हूँ या बुरी। इस सरकार को आगे बढ़ना चाहिए या नहीं? मामा को मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं?’ जनता से शिवराज के प्रश्न कहीं भाजपा आलाकमान को जवाब देने के लिए तो नहीं पूछे गए थै। इन सब कयासों के मध्य किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान लगाना उचित नहीं होगा। शायद शिवराज के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ना भाजपा आलाकमान की एमपी को लेकर चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। वर्तमान भाजपा अपने रणनीतिक निर्णयों को लेकर जानी जाती है। पांच राज्यो में चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व आयोजित हो रहे है। इन चुनावों को सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। मध्यप्रदेश देश का बड़ा राज्य है। चुनाव पूर्व अनुमान भी भाजपा आलाकमान के लिए परेशानी का सबब माने जा रहे है। एमपी में मिली पराजय भाजपा को लोकसभा में भी नुकसान पहुचा सकती है। इस लिहाज से एमपी में भाजपा की रणनीति प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़ने की दिखाई दे रही है। यह रणनीति 2018 विधानसभा में भाजपा को मिली पराजय के मद्देनजर भी आलाकमान द्वारा बनाई गयी प्रतीत होती है। भाजपा आलाकमान की इन सब रणनीतियों के मध्य यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि एमपी में चार दफा मुखिया का दायित्व सम्भाल चुके शिवराजसिंह अब भी प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़े चेहरे है। लाडली बहनों के भाई है। आम जनता के मामा को दरकिनार करना भाजपा हाईकमान को कहीं भारी न पड़ जाए। ऐसे समय जब शिवराज प्रदेश में अपने बल पर किला लड़ा रहे थै। प्रदेश में शिवराज के खिलाफ विरोध की लहर तो थी, किंतु शिवराज ही वह चेहरा है जिस पर प्रदेश की जनता का विश्वास है। आम आदमी सा लगने वाला शिवराज सिंह का चेहरा लाख विरोध के बावजूद भी प्रदेश की जनता की नजरों में बना हुआ है। मध्यप्रदेश में चुनाव पूर्व अनुमानों ने शायद आलाकमान को प्रदेश नैतृत्व को लेकर चुप्पी साधने पर मजबूर किया हो।

शिवराज की उपेक्षा का खामियाजा।

आलाकमान ने शिवराज को चेहरा घोषित नहीं कर सरकार के खिलाफ आ रहे चुनाव पूर्व अनुमानों को सच मानने की मान लिया है। भाजपा के केंद्रीय नैतृत्व की रणनीति के साथ भाजपा के कार्यकर्ता भी शिवराज को 2023 में एमपी के लिए उपयुक्त नही मानने की धारणा से ग्रसित हो गए है। शिवराज सिंह प्रदेश के एक मात्र लड़ाकू नेता है जो आमजनता के दिलो में राज करते हुए दिखाई दिए। अब जबकि भाजपा आलाकमान एमपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कर रहा है। एक प्रकार से शिवराज के प्रति केंद्रीय नैतृत्व का उपेक्षित रवैय्या भाजपा को नुकसान पहुचा सकता है। कुलमिलाकर भाजपा हाईकमान का मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को चेहरा घोषित नहीं करना, शिवराज जैसे बड़े नेता को चौथी सूची में जगह देना, चुनाव पूर्व अनुमानों में एजेंसियों का शिवराज सिंह को कमजोर बताना, कमलनाथ का अपनी सरकार गिरने के बाद लगातार भावुक अपील करते रहना। यह बड़े कारण है जो पांचवी बार शपथ की विध्न एवं बाधाएं दिखाई पड़ रहे है। इसके बावजूद शिवराज पूरी शिद्दत के साथ प्रदेश की जनता से जनादेश मांगने के प्रयास में लगे हुए है। लोकतंत्र में जनता ही सबसे बड़ी ताकत होती है। प्रदेश की जनता अपने वोट की ताकत से किस राजनीतिक पार्टी की सरकार बनाएगी। यह तो परिणामो के आने पर ही पता लग पाएगा। फ़िलहाल तो यह सवाल बना हुआ है। शिवराज पांचवी बार प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की शपथ ले पाएंगे या नही? कर्नाटक में भाजपा की पराजय के बड़े कारणों में स्थानीय चेहरों को दरकिनार करना भी माना गया था। भाजपा को यह समझना होगा कि विधानसभा के चुनाव में प्रादेशिक चेहरे का होना बहुत जरूरी है। लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव दोनों में मतदाताओं की सोच अलग-अलग रहती है।लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह सच है की नरेंद्र मोदी अब भी प्रधानमंत्री पद हेतु जनता की पसंद बने हुए है। उसी प्रकार एमपी विधानसभा चुनाव में भाजपा की और से मुख्यमंत्री पद का सबसे बड़ा चेहरा शिवराज सिंह चौहान है। भाजपा आलाकमान को शिवराजसिंह के दरकिनार करने की कोशिशों का खामियाजा उठाना पड़ सकता हैं। मध्यप्रदेश भाजपा में शिवराज ही ऐसे नेता है जो सर्व स्वीकार और सर्व मान्य है। शिवराज जैसा दूसरा कोई नहीं है।