राहुल गांधी की जिद पर कितने भारी अमित शाह के तर्क

How much does Amit Shah's argument outweigh Rahul Gandhi's stubbornness?

राहुल गांधी की सरपरस्ती में कांग्रेस के मोदी सरकार पर वोट चोरी के आरोपों को जनता के बीच में कितना समर्थन मिल रहा है?

विवेक शुक्ला

बिहार में कांग्रेस की करारी हार के बाद, राहुल गांधी के पास यह सुनहरा अवसर था कि वह अपनी छवि सुधारते हुए अपने गठबंधन के साथियों के साथ तालमेल बिठाते। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने जो गलतियाँ की थीं, उन्हें सुधारने का यह समय था। चुनाव के दौरान, राहुल गांधी ने राजद के नेता तेजस्वी यादव को अकेला छोड़कर विदेश दौरा किया और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा में हस्तक्षेप किया। यह घटनाक्रम इतना गंभीर हुआ कि झारखंड की राजनीति में भी कांग्रेस को बाहर करने की बातें होने लगी थीं। राहुल गांधी की राजनीति की पहचान हमेशा जिद पर अड़े रहने की रही है। इस कारण से कांग्रेस के अंदर बहुत से नेता राहुल गांधी से खफा रहने लगे हैं। पर वे बेबस हैं।

जब कांग्रेस की अपनी स्थिति इतनी खराब हो, तो यह कोई अचरज की बात नहीं है कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे संसद में भी उखाड़-फेंके गए। खासकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कांग्रेस के चुनावी इतिहास को तर्कपूर्ण तरीके से खंडित किया। उन्होंने कांग्रेस के संस्थापक जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक के चुनावी कदाचार को सामने रखा।

अमित शाह ने स्पष्ट रूप से यह बताया कि आज़ादी के बाद, जब प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए मतदान हुआ था, तो सरदार पटेल के पक्ष में 28 वोट आए थे, जबकि नेहरू को केवल 2 वोट मिले थे, फिर भी नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया। शाह ने इसे स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र का पहला अपमान बताया। यह कांग्रेस के लिए एक शर्मनाक स्थिति थी, और इस पर पार्टी कोई ठोस जवाब नहीं दे पाई।

राहुल गांधी की रणनीति के बजाय, अब कांग्रेस का पूरा ध्यान यह आरोप लगाने पर केंद्रित हो गया है कि उनकी पार्टी के खिलाफ चुनावी धोखाधड़ी हो रही है। उनके पास तथ्यों और तर्कों का स्पष्ट अभाव है। यह उस पार्टी का दुर्भाग्य है, जिसका नेतृत्व यह मानने को तैयार नहीं कि उनकी पिछली गलतियों से कुछ सीखा जाए। राहुल गांधी की राजनीतिक शैली अब उस मुकाम पर पहुँच चुकी है, जहाँ चुनावी हार को ही अनुचित करार देना और सच्चाई को नकारना उनकी दिनचर्या बन चुकी है।

राहुल गांधी ने लगातार प्रधानमंत्री मोदी पर “वोट चोर” का आरोप लगाया, जो कि एक अप्रत्याशित और अनुशासनहीन आरोप था। लेकिन जब अमित शाह ने इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव में गड़बड़ी का हवाला दिया, तो कांग्रेस के सांसद चुप हो गए। अमित शाह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बताया कि इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध था, और इसे छिपाने के लिए संसद में एक कानून लाया गया था, जिससे प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं हो सकता।

इस बीच, अमित शाह ने सोनिया गांधी के वोटर बनने के मामले को उठाया, जहां उन्होंने सवाल किया कि कैसे एक विदेशी नागरिक के रूप में सोनिया गांधी मतदाता सूची में शामिल हो गईं। इससे कांग्रेस की साख और भी गिर गई, और पार्टी इस सवाल का जवाब नहीं दे सकी।

कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति इस समय एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) पर अटकी हुई है। राहुल गांधी का यह प्रयास है कि किसी तरह उनकी पार्टी की हार को छुपाया जा सके। वह लगातार आरोप लगा रहे हैं कि मुसलमानों को मतदाता सूची से बाहर रखा जा रहा है, लेकिन जब तक इस पर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते, यह आरोप बेबुनियाद नजर आते हैं।

बीजेपी ने इस मुद्दे को पूरी तरह से उठा लिया है, और कोई भी बाहरी नागरिक इस पर शिकायत नहीं कर रहा। राहुल गांधी के पास इस सवाल का भी जवाब नहीं है कि बाहरी नागरिक भारत के मतदाता कैसे बने। इसी बीच, ममता बनर्जी की सरकार और अखिलेश यादव भी एसआईआर पर सहयोग कर रहे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे जारी रखने के पक्ष में फैसला लिया है। अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि घुसपैठियों को पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। मोदी सरकार की यह प्रतिबद्धता है कि देश की जनसांख्यिकीय संरचना में किसी प्रकार की हेरफेर की अनुमति नहीं दी जाएगी।

अमित शाह की यह स्पष्ट नीति और दृढ़ संकल्प दिखाता है कि वह किसी भी बाहरी या अवैध गतिविधि को सहन नहीं करेंगे। वहीं राहुल गांधी, अपनी जिद और राजनीति में विफलताओं से बाहर निकलने के बजाय, एसआईआर जैसे मुद्दों को हवा देकर अपनी राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

बहरहाल, कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोट चोरी के आरोप का चुनावी परिणाम पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं देखा गया है। इस आरोप का कांग्रेस के लिए चुनावी लाभ प्राप्त करने में सफलता न मिलने के कारण, सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह आरोप सही तरीके से जनता तक पहुँचने में सक्षम हो पाया है या फिर यह आरोप सिर्फ राजनीतिक विपक्ष के ताने-बाने का हिस्सा बनकर रह गया है।

वोट चोरी के आरोपों के बावजूद, मोदी सरकार के समर्थक इसे कांग्रेस की निराशा और चुनावी रणनीति का हिस्सा मानते हैं। वे इसे विपक्ष के एक निरर्थक प्रयास के रूप में देखते हैं, जो भाजपा के मजबूत जनाधार को कमजोर नहीं कर सकता।

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, उनकी सरकार की योजनाओं, और भाजपा के चुनावी अभियान की मजबूती ने कांग्रेस के आरोपों को प्रभावी रूप से बेअसर कर दिया है। मोदी और उनकी पार्टी ने इन आरोपों को नकारा करते हुए इसे विपक्ष की राजनीति का एक तरीका बताया है। इसके अलावा, भारतीय चुनाव आयोग की भूमिका और उसकी स्वतंत्रता पर जनता का भरोसा भी कांग्रेस के आरोपों को कमजोर करता है।

इस प्रकार, कांग्रेस के आरोपों का असर उस स्तर पर नहीं हुआ है जैसा उम्मीद की जा रही थी। लोग मोदी के खिलाफ आरोपों को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे, क्योंकि वे उन्हें कांग्रेस की चुनावी रणनीति और खुद को हताशा की अभिव्यक्ति मानते हैं। आगे चलकर, इस मुद्दे का कितना असर होगा, यह तो चुनावों के परिणामों से ही स्पष्ट होगा, लेकिन फिलहाल यह आरोप कोई खास प्रभाव डालता हुआ नजर नहीं आ रहा।