धनंजय कुमार
अक्सर यह सुनने को मिलता है कि कोई समय पर अस्पताल पहुंच जाता तो उसकी जान बच जाती। समय पर अस्पताल पहुंचने पर बेशक जान बचती है। इसलिए पहली नजर में यह सवाल अटपटा लग सकता है कि भारत के अस्पताल मरीजों के लिए कितने सुरक्षित हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इलाज के दौरान हुई त्रुटियों की वजह से भी भारी संख्या में मरीजों की जानें जा रही हैं।
पिछले महीने बैंगलुरू में ‘दी इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस’ (आईआईएससी) के जेएनटाटा आडिटोरियम में मरीज सुरक्षा का अभियान चला रही संस्था ‘कंसोर्टियम आफ एक्रेडिटेड हेल्थकेयर आर्गेनाइजेशन’ (काहो) की देखरेख में दो दिनों तक इसी सवाल पर डाक्टरों और वैज्ञानिकों ने माथा पच्ची की। यह सवाल छोटे- बड़े सरकारी- प्राइवेट सभी अस्पतालों को लेकर है। कोई भी अस्पताल इलाज के दौरान हुई त्रुटियों एवं उनसे हुई मौतों के मामले में अछूता नहीं है।
इसलिए सिर्फ समय पर अस्पताल पहुंचना ही जरुरी नहीं है बल्कि यह भी जरुरी है कि इलाज के दौरान कोई चूक न हो। सिर्फ भारत ही नहीं इस स्थिति से बड़े बड़े अमेरिकी अस्पताल तक प्रभावित हैं। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ अमेरिका में हर साल इलाज के दौरन हुई त्रुटियों से दो लाख पचास हजार ( 250,000) लोगों की मौत हो जाती है। इस मामले में भारत में क्या स्थिति होगी इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
आखिर यह कैसै तय हो कि कौन अस्पताल मरीजों के लिए कम असुरक्षित है और कौन सबसे ज्यादा सुरक्षित है। अस्पतालों को इलाज की गुणवत्ता और वहां मरीजों की सुरक्षा की स्थिति के आधार पर मान्यता (एक्रेडिटेशन) मिलती है। यही एकमात्र पैमाना है। भारत में ‘दी नैशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फार हास्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स’ (नाभ) नामक संस्था अस्पतालों को मान्यता देता है। अस्पतालों को मान्यता देने वाली दुनिया की सबसे बड़ी संस्था अमेरिका की जेसीआई ( ज्वाइंट कमीशन इंटरनैशनल) है। भारत के ज्यादातर अस्पताल नाभ से मिली मान्यता के आधार पर ही श्रेष्ठ होने का दावा करते हैं।
भारत के जिन अस्पतालों को जेसीआई से मान्यता मिली है वे सबसे श्रेष्ठ अस्पताल होने का दम भरते हैं। जेसीआई से मान्यता की शर्तें तो बेहद कड़ी हैं ही, इसे हासिल करने में भारी खर्च भी आता है। जेसीआई मान्यता हर अस्पताल के बूतें की बात नहीं है। अभी भारत के अस्पतालों के बीच श्रेष्ठता का तमगा हासिल करने के लिए नाभ से एक्रेडिटेशन की होड़ सी मची है।
बहरहाल, बैंगलूरु में यह बात साफ रेखांकित हुई कि मेडिकल टेक्नालाजी के क्षेत्र में हो रही नई नई खोजें व आविष्कार चिकित्सीय त्रुटियों को कम करने में कारगर सिद्ध हो रही हैं। इसमें एआई ( आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) की बड़ी भूमिका होने वाली है। इंडियन इंस्टीच्यूट आफ साइंस भी इस मामले में बड़ी भूमिका निभाने की तरफ अग्रसर है। अस्पतालों में मरीजों की लगातार आटोमेटिक मानिटरिंग (निगरानी) के लिए जो टेक्नालाजी लगाई जा रही हैं उससे चिकित्सीय त्रुटियां बहुत हद तक कम हो रही हैं।
जेएनटाटा आडिटोरियम में इस मौके पर लगी ‘काहोटेक’ नामक प्रदर्शनी में भी इस बात पर मुहर लगी कि टेक्नालाजी ही इन त्रुटियों का ‘इलाज’ है। प्रदेर्शनी में अनेकों स्टार्ट अप कंपनियों ने भाग लिया। सभी स्टार्ट -अप पेसेंट सेफेटी की दिशा में ही नई नई खोजों में लगी हैं। बानगी देखिए- ‘डोजी’ नामक एक बेड ने सबों का ध्यान खींचा। मरीज की सुरक्षा के हिसाब इस बेड को बेहद प्रभावी खोज करार दिया गया। इस बेड पर लेटे मरीज की 24 घंटे लगातार अपने आप संपर्करहित मानिटरिंग होती रहती है। इस बेड की खासियत यह है कि किसी अनहोनी की चेतावनी अस्पतालकर्मियों को करीब 16 घंटे पहले ही मिल जाती है। इस बेड से अब तक 21 लाख लोगों की जानें बचाई जा चुकी हैं। निगरानी की हस्तचालित ( मैनुअल) पद्धति से ये जानें बचाना कतई संभव नहीं होता
पिछले एक दशक से कंसोर्टियम आफ एक्रेडिटेड हेल्थकेयर आर्गेनाइजेशन’ (काहो) भारत में मान्यता प्राप्त अस्पतालों में सटीक इलाज सुनिश्चित करने की दिशा में कार्यरत है। काहो के अध्यक्ष डा. विजय अग्रवाल कहते हैं- ‘नाभ या जेसीआई से मान्यता प्राप्त कर लेना भर अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा की गांरटी नहीं है। दरअसल मान्यता मिलना तो शुरुआत है। जब तक अस्पतालों में पेसेंटी सेफेटी की संस्कृति विकसित नहीं होगी तब तक मान्यता मिलने का कोई अर्थ नहीं। हमारा काहो संगठन देश के अस्पतालों में उसी संस्कृति को पैदा करने के लक्ष्य को साधने की दिशा में अग्रसर है। लक्ष्य बेहद कठिन है। अमेरिका में जेसीआई जैसी एक्रेडिटेशन संस्था है, इफरात पैसा है फिर भी वहां के अस्पतालों में इलाज की त्रुटि मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। सहज ही कल्पना की जा सकती है कि भारत में क्या स्थिति होगी। हम अस्पतालों के बीच इन त्रुटियों को कम से कम करने की अलख जगाने के साथ साथ इसके लिए जरुरी क्षमता विकसित (कैपेसिटी बिल्डिंग) के लिए विशेषज्ञता भी मुहैय्या कर रहे हैं’।
मरीजों की सुरक्षा के मामले में बेहतरीन रिकार्ड स्थापित करने वाले बैंगलूरू स्थित नारायणा हेल्थ के चेयरमैन एवं नामचीन हार्ट सर्जन डा. देवी शेट्टी इस काहो आयोजन के चेयरमैन भी थे। डा. देवी शेट्टी ने कहा- ‘टेक्नालाजी एवं मानिटरिंग (निगरानी) के आटोमेशन के अलावा इलाज में त्रुटियों को रोकने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। मेडिकल टेक्नालाजी के क्षेत्र में हो रही एक से एक खोजें पेसेंट सेफेटी की दिशा में एक नया अध्याय लिखने वाली है। मरीजों की लगातार निगरानी के लिए विकसित हो रहे सेंसर के उपयोग से इन त्रुटियों की संभावना नहीं के बराबर रह जाएगी। हेल्थकेयर में आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस ( एआई) के उपयोग से मरीजों की देखरेख की गुणवत्ता में खासा इजाफा होगा’।