सीता राम शर्मा ” चेतन “
यह युद्ध का नहीं कूटनीति का युग है, अमेरिका सहित कुछ देश अतंरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में, विशेषकर भारत-रुस मैत्रीपूर्ण संबंधों को कम करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री की इस बात का कूटनीतिक सदुपयोग करने का प्रयास अब तक जारी रखे हुए हैं । अच्छी बात यह है कि रुस ने इस पश्चिमी कूटनीति का जवाब पूरी राजनीतिक परिपक्वता और दूरदर्शिता के साथ दिया है । पुतिन ने मोदी के उस वक्तव्य पर पश्चिमी देशों के अत्यधिक खुशी दर्शाने और उस वक्तव्य को तव्वजो देने की कुटनीति का जवाब लगातार भारत और मोदी की प्रशंसा से दिया है ! भारत और रुस पुराने और सच्चे मित्र देश हैं और बने भी रहेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए और ना ही किसी को इनकी मित्रता को कूटनीति से कम या खत्म करने में अपने समय और शक्ति को नष्ट करने की बुद्धिहीनता का परिचय देना चाहिए । भारत और रुस ना तो युक्रेन हैं और ना ही इनका नेतृत्व इतना अदूरदर्शी और विवेकहीन है कि उसे कोई भी देश झूठे सपने या झूठा भय दिखा कर बरगला और उलझा सके । संकटग्रस्त बना सके ।
फिलहाल बात प्रमुखता से भारत की अंतरराष्ट्रीय नीति और कूटनीति की, तो उसे पश्चिमी देशों के अतीत और वर्तमान के साथ वैश्विक भविष्य को ध्यान में रखते हुए कुछ क्षेत्रों में अपनी जारी नीति के साथ वैश्विक कूटनीति में जरुरी बदलाव करने की जरूरत है । बदलती हुई वैश्विक परिस्थितियों में जब आतंकवाद और जातीय कट्टरता ने वैश्विक मानवता के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है और मित्रता के आधुनिक वेश में पूरी आत्मीयता और अपनत्व का प्रदर्शन करते हुए एक देश के द्वारा दूसरे को कमजोर करने की शत्रुता साधी जा रही है या अपनी स्वार्थ पूर्ती की जा रही है, तब हर एक मित्र, सामान्य अथवा शत्रु राष्ट्र के साथ बढ़ाए जाने वाले हर एक कदम पर पूरी सजगता और गहन दृष्टि के साथ सामने वाले की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है । भारत को अपनी वैश्विक नीति और कूटनीति में वसुधैव कुटुम्बकम के अपने आदर्श, आत्मीय और प्राचीन जीवन सिद्धांत, भाव और जीवन शैली को केंद्र में रखते हुए, उसका प्रचार-प्रसार करते हुए ना सिर्फ अपनी भूमिका का कुशलतापूर्वक निर्वहन करना चाहिए बल्कि सामने वाले हर राष्ट्र को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए । वैश्विक व्यापार हो या व्यवहार सबमें मनुष्यता के भाव, कर्म और नैतिक मापदंड का निर्वहन आवश्यक रूप से होना चाहिए । गौरतलब है कि वर्तमान समय में व्यापार के बाद व्यवहार के स्तर पर आज दो देशों के बीच जो संबंध बनते या बनाए जाते हैं, उनमें मुख्य रूप से अपनी सुरक्षा से संबंधित संबंध हैं । जिसके तहत या तो एक दूसरे को अपने द्वारा इजाद किए गए सुरक्षा संबंधी उत्पाद बेचने, बनाने, रखने में सहयोग करना है या फिर सुरक्षा संबंधी जानकारी का आदान प्रदान करना और उसमें सहयोग लेेना-देना है । इन दो तरह के द्विपक्षीय संबंधों के रहने पर ही हर तरह की आपदा विपदा में अब दो राष्ट्र एक दूसरे के साथ खड़े होते हैं । कभी-कभार ही ऐसा दिखाई देता है कि कोई राष्ट्र इन दोनों तरह के रिश्ते ना होने के बावजूद भी दूसरे राष्ट्र के साथ खड़ा होता है । उसे सहयोग देता है । भारत को वैसे सहयोगी के रूप में मनुष्यता मात्र के आधार पर विश्व के हर एक राष्ट्र के प्रति अपनी आत्मीयता और भलमानसता का परिचय देते हुए ना सिर्फ उसके साथ खड़ा होना चाहिए बल्कि विश्व भर के शक्ति संपन्न और सहयोग के समर्थ राष्ट्रों का ध्यान उनके विकास पर आकर्षित करने का हर संभव निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए । भारत का और हर भारतीय का एक वैश्विक महास्वप्न है कि भारत विश्व गुरु बने । भारत मानवता के कल्याणकारी धार्मिक और वैचारिक विरासत से समृद्ध राष्ट्र है, जिसके पास विश्व शांति और सौहार्द का एक संतुलित दृष्टिकोण और मनुष्यता के व्यवहार का अनुभव सिद्ध मार्ग उपलब्ध है, जिस पर वह विश्व और वैश्विक मानवता को अग्रसर कर सकता है । वर्तमान समय और विश्व को उसी मार्ग की आवश्यकता भी है । अब सवाल यह उठता है कि एक अत्यंत शक्तिशाली, कुटिल, स्वार्थी और हिंसक हो चुकी दुनिया के बीच अत्यधिक आबादी और कई आंतरिक समस्याओं से जूझते भारत को क्या वैश्विक शांति के उस मार्ग पर आगे बढ़ने और दुनिया का नेतृत्व करने का प्रयास करना चाहिए ? इसका जवाब हम एक प्रश्न के उदाहरण से बहुत सरलतापूर्वक जान समझ सकते हैं – क्या कई निर्धन, निर्बल के साथ कुछ अत्यंत समृद्ध और शक्तिशाली छात्रों को एक साथ शिक्षा देने वाले समर्थ गुरु पर कोई प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है ? क्या अत्यंत समृद्ध और शक्तिशाली छात्रों को शिक्षा देने के लिए, योग्य बनाने के लिए उनके गुरु का भी उनकी तरह धन तथा बल से अत्यंत समृद्ध और शक्तिशाली होना अनिवार्य है ? जवाब बहुत सरल और स्पष्ट है – नहीं । गुरु के पास तो सिर्फ और सिर्फ देने योग्य उपयुक्त ज्ञान का होना जरुरी है और बहुत अच्छा हो कि गुरु देते हुए ज्ञान को क्षमतानुसार अपने व्यवहार में भी चरितार्थ करे । भारत को भी यही करने की जरूरत है ।
अंत में एक बार फिर बात कूटनीति की, तो वर्तमान विश्व में भारत को बहुत स्पष्ट और शक्तिशाली आवाज में अपने लोकतांत्रिक होने की बात निरंतर कहनी चाहिए । साथ ही हर मंच से निरंतर यह बात भी करनी चाहिए कि वैश्विक शांति, सुरक्षा और समुचित विकास के लिए जरुरी है कि दुनियाभर के देश और लोग अब विश्व बंधुत्व के मार्ग पर आगे बढ़ें । आतंकवाद और युद्ध के खिलाफ खड़े हों । जो देश या लोग किसी भी रूप में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद से जुड़े हैं या आतंकवाद को प्रश्रय और समर्थन देते हैं, उनके विरुद्ध यह देखे बिना कि ये देश कौन सा है, इससे हमारे संबंध कैसे हैं, यह हमारे लिए कितना उपयोगी है या भविष्य में कैसे और कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है, इन तमाम बातों पर सोच विचार किए बिना उसके विरुद्ध हर संभव एकल और संयुक्त कठोर कार्रवाई करें । उसका बहिष्कार करें । ठीक इसी तरह देश के भीतर आतंकवादियों की जाति-धर्म और आबादी तथा स्थिति को देखे विचारे बिना उन पर और उनके तमाम छोटे-बड़े सहयोगियों पर अत्यंत कठोर कार्रवाई करें । सबसे जरुरी बात यह कि जब भी कोई देश अपने भीतर आतंकवादियों और उसके सहयोगियों या समर्थकों पर कठोर कार्रवाई करे तो कोई भी अन्य देश, चाहे वह उस देश का शत्रु देश ही क्यों ना हो, आतंकवादियों के पक्ष में किसी भी तरह की आवाज ना उठाए और ना ही आतंकवादियों, जिनका मानवता और मानवाधिकार से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं होता, उनके बचाव में किसी भी तरह के मानवाधिकार की दलीलें दें । यह जाने बिना कि आतंकवादी और उसके किसी भी सहयोगी या समर्थक की जाति कौन सी है, उसका धर्म कौन सा है, उसे संपूर्ण मानवता का शत्रु मानकर उसके विरुद्ध अत्यंत कठोर कार्रवाई करें और होती ऐसी हर कार्रवाई का समर्थन भी करें । भारत को वैश्विक मंचों से अब यह भी बहुत स्पष्टता के साथ कहना चाहिए कि अब वह आतंकवाद के विरुद्ध ना सिर्फ खुद ऐसी कठोर कार्रवाई करेगा बल्कि दुनिया के किसी भी देश के द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध ऐसी कठोर कार्रवाई का समर्थन भी करेगा । आतंकवाद के विरुद्ध ऐसी स्पष्ट धारणा और वैश्विक घोषणा को प्रथम दृष्टया कूटनीति ही कहा जाएगा, जिसका सहारा बिना देर किए अब भारत को लेना चाहिए । गौरतलब है कि स्वार्थ के लिए, विनाशकारी हथियारों के व्यापार के लिए, छोटे और कमजोर देशों की प्राकृतिक संपदा के दोहन के लिए, शत्रु देश को तोड़ने, कमजोर या अशांत करने के लिए, उसके भीतर उत्पात फैलाने के लिए बागी और आतंकवादियों के पालन पोषण और समर्थन देने के षड्यंत्र बहुत पहले से दुनिया के कई देश रचते रहे हैं, जिस पर अब बहुत खुले दिल और दिमाग से बात होनी चाहिए । वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए इन तमाम विषयों पर मानसिक और शाब्दिक चातुर्य के साथ भारत को अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करनी होगी । जब तक इन महत्वपूर्ण विषयों पर वैश्विक मंच पर सामुहिक सहमति और स्वीकार्यता का माहौल ना बने, ऐसी आवाजों की निरंतरता की कूटनीति के बैनर तले भारत को अपनी शांति और सुरक्षा के लिए, अपने सुरक्षित तथा समृद्ध भविष्य के लिए अपने हिस्से का काम निपटाते हुए आगे बढ़ना होगा ।