कैसे योगी मॉडल से बिछ रहा है बीजेपी सरकारों का जाल

How the Yogi model is creating a web of BJP governments

संजय सक्सेना

बात करीब 11 साल पुरानी है जब साल 2014 की लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में दस्तक दी थी, तब देश गुजरात मॉडल के नाम से गूंज रहा था। उद्योग, निवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर और बिजली के मोर्चे पर गुजरात को एक आदर्श राज्य के रूप में पेश किया गया था। उस समय विकास ही सबका समाधान नारा था। लेकिन समय के साथ राजनीति की भाषा, जन-अपेक्षाएं और सत्ता की परिभाषाएं बदल गईं। 2025 के राजनीतिक परिदृश्य में अब भाजपा नरेन्द्र मोदी के गुजरात मॉडल से ज्यादा योगी आदित्यनाथ के यूपी मॉडल या योगी मॉडल को प्रचारित कर रहीं हैं। इसका कारण है जनता के बीच सुरक्षा, सख्ती और सीधी कार्रवाई की बढ़ती लोकप्रियता।

योगी आदित्यनाथ ने 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद जो रास्ता चुना, उसने पारंपरिक प्रशासन की धारणा को ही पलट दिया। उन्होंने कानून-व्यवस्था को विकास की पहली शर्त घोषित किया। अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए बुलडोज़र को प्रतीक के रूप में अपनाया गया। पिछले कुछ वर्षों में बुलडोज़र बाबा की छवि ने न सिर्फ प्रदेश की राजनीति में बल्कि पूरे देश में पहचान बना ली है। अवैध निर्माण, माफियाओं की संपत्तियों के गिराए जाने और अपराधियों के खिलाफ पुलिस की त्वरित कार्रवाई,इन सभी ने योगी मॉडल को एक अलग पहचान दी। जहाँ गुजरात मॉडल विकास, निवेश और उद्योगों के प्रमोशन पर केंद्रित था, वहीं योगी मॉडल कानून, व्यवस्था और सख्ती का प्रतीक बन गया। जनता का बड़ा वर्ग अब विकास को सुरक्षा से जोड़ने लगा है। लोगों का मानना है कि जब तक कानून का राज नहीं होगा, तब तक निवेश और विकास भी टिक नहीं पाएंगे। यही सोच योगी मॉडल को सबसे अलग और जीवंत बनाती है। यह एक ऐसा मॉडल है जो गरीबों के उत्थान की बात भी करता है और अपराधियों को सजा देने में कोताही भी नहीं दिखाता।

बीजेपी ने इस मॉडल को अपने चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा बना लिया है। उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में भाजपा नेताओं ने योगी आदित्यनाथ की छवि को चुनावी अभियान में वन मैन आर्मी जैसा इस्तेमाल किया। उनके भाषणों में बुलडोज़र चलेगा और माफिया-मुक्त राज्य जैसे वाक्य आम हो चुके हैं। इस रणनीति ने भाजपा को कई राज्यों में सीधा लाभ दिया है क्योंकि लोगों के बीच योगी की छवि एक ऐसे प्रशासक की बनी है जो ना किसी से डरता है, न जाति या धर्म देखकर निर्णय लेता है। योगी मॉडल का प्रभाव केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं है। असम और मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी सरकारी कार्रवाई के लिए योगी स्टाइल शब्द का प्रयोग होने लगा है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार ने भी अपराध और अवैध निर्माण के खिलाफ बुलडोज़र एक्शन कोउत्तर प्रदेश से प्रेरित बताया। दिल्ली से लेकर कर्नाटक तक भाजपा शासित राज्यों में अपराधियों पर बुलडोज़र चलने लगे हैं। यह दिखाता है कि योगी आदित्यनाथ ने प्रशासनिक सख्ती को राष्ट्रीय राजनीतिक रणनीति का नया चेहरा बना दिया है।

इस मॉडल की एक और खास बात यह है कि यह जन-संवेदनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। देश के सामान्य नागरिक को लगता है कि अपराध, भ्रष्टाचार और माफियाओं के खिलाफ सख्त एक्शन ही असली न्याय है। योगी आदित्यनाथ इस भावना को भाँपने में कामयाब रहे हैं। जहां जनता विकास शब्द से अब अमूर्त परिणाम चाहने लगी थी, वहीं बुलडोज़र मॉडल उसे तात्कालिक और दृश्य परिणाम देता है,जमीन पर गिरता मकान, धराशायी होती अवैध इमारतें, और अपराधियों की गिरफ्तारी। यह जनता को यह भरोसा दिलाता है कि शासन केवल फाइलों में नहीं, ज़मीन पर काम कर रहा है। आर्थिक मोर्चे पर भी योगी मॉडल ने अपनी पहचान बनाई है। उत्तर प्रदेश निवेश के मामले में अग्रणी राज्यों में शामिल हो गया है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में अरबों का निवेश आकर्षित करना यह दिखाता है कि सख्त कानून-व्यवस्था वातावरण में भी उद्योग स्थापित हो सकते हैं। विदेशी निवेशक अब उत्तर प्रदेश को सुरक्षित निवेश स्थल मानने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बार सार्वजनिक मंचों पर योगी सरकार की प्रशंसा कर चुके हैं कि उन्होंने प्रशासनिक सख्ती के साथ सुशासन की नई परिभाषा लिखी है।

राजनीतिक दृष्टि से योगी मॉडल ने भाजपा को विकास बनाम अपराध जैसी नई बाइनरी दी है। इससे पार्टी को विपक्ष के मुकाबले एक नैतिक बढ़त मिली। विपक्ष जब बेरोजगारी, महंगाई जैसी बात करता है तो भाजपा योगी मॉडल का उदाहरण देकर जवाब देती है कि अपराधमुक्त समाज ही हर विकास की नींव है। यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ आज भाजपा के भीतर मोदी के बाद सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। उनका चेहरा न केवल हिंदुत्व की राजनीति का प्रतिनिधि है, बल्कि परिणाम देने वाले प्रशासक की भी छवि बन चुका है।

दिलचस्प बात यह है कि योगी मॉडल की चर्चा केवल भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रही। नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में भी राजनीतिक विश्लेषक इस पर टिप्पणियाँ कर चुके हैं। नेपाल के कई प्रादेशिक नेताओं ने खुले मंच से कहा कि अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी आदित्यनाथ जैसी सख्त शासनशैली की जरूरत उनके यहां भी है। बांग्लादेश की सोशल मीडिया पर भी बुलडोज़र एक्शन चर्चित विषय बन चुका है। दक्षिण एशिया के कई देशों में लोगों के बीच यह धारणा बनने लगी है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी अगर सख्त नेतृत्व हो तो अपराध और अराजकता पर लगाम लगाई जा सकती है। बेशक कुछ आलोचकों का मानना है कि योगी मॉडल कानूनी प्रक्रिया के लिए चुनौती खड़ी करता है। वे कहते हैं कि बुलडोज़र से न्याय नहीं, बल्कि ठोस कानून से बदलाव होना चाहिए। लेकिन समर्थकों की दलील है कि योगी सरकार ने आम नागरिक में कानून के प्रति विश्वास जगाने का काम किया है। अपराधियों में भय और जनता में भरोसा पैदा करना, प्रशासन की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। यही योगी मॉडल की सबसे मजबूत नींव है।

इस बीच भाजपा के अंदर भी यह बहस चल रही है कि आने वाले वक्त में योगी मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर कैसे उतारा जाए। केंद्र की नीतियों में योगी शैली की झलक पहले से दिख रही है,जैसे जनकल्याण के साथ सख्ती का मेल। मोदी-योगी संयोजन भाजपा के लिए एक नई राजनैतिक ऊर्जा का स्रोत बन चुका है। एक ओर मोदी अंतरराष्ट्रीय छवि संभालते हैं, तो दूसरी ओर योगी जमीनी शासन का प्रतीक बन गए हैं। आज जब भाजपा किसी नए राज्य में चुनावी अभियान शुरू करती है, तो योगी आदित्यनाथ के भाषणों की मांग सबसे ज्यादा होती है। वे नारे लगाते हैं जो माफिया चलेगा, वो बुलडोज़र देखेगा और भीड़ में जोश भर जाता है। लोगों को योगी में वह नेता दिखाई देता है जो भयमुक्त समाज बनाने का दावा करता है। यही छवि अब भाजपा का नया चेहरा बन चुकी है। इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य में स्पष्ट है कि योगी मॉडल अब केवल एक शासन पद्धति नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विचारधारा बन चुका है,जिसने सुरक्षा और सुशासन को एक-दूसरे को पूरक बना दिया है