कैसे-कैसे कटोरे हैं

सुरेश सौरभ

एक जमाना हुआ करता था, जब दरवाजे-दरवाजे फटे-पुराने कपड़े पहन कर भिखारी घूमते थे और सदा लगाते थे-भगवान के नाम से, राम के नाम से, अल्लाह के नाम से, अठ्ठन्नी चवन्नी कोई दे दे माई। कोई आटा-दाल-चावल दे दे भाई।.. दूधो नहाओ पूतो फलो बिटिया। दुनिया माया है। दिया-लिया साथ है। भगवान करे तुम्हारी बढ़ती बनी रहे। घर अन्न-धन से भरा रहे आदि इत्यादि और फिर लोग-बाग अपने घरों से निकल-निकल कर आटा-सीधा रुपया धेली आदि इत्यादि कुछ न कुछ उन्हें दे दिया करते थे। वह जमाना अब तो गया-बीता हो गया। अब तो भिखारी भी नये-नये टाइप के, नये-नये ब्रान्ड के, नई-नई ठसक के आने लगे हैं, जो आटा-सीधा दाल-चावल रुपया धेली कपड़ा लत्ता नहीं, सिर्फ वोट मांगते हैं-राम के नाम पर, भगवान के नाम पर, हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर, मंदिर-मस्जिद के नाम पर। यानी युग बदला, भिखारियों का ट्रेन्ड भी बदला और ड्रेसें भी और साथ ही मंगतों का लहजा-मुलाहिजा भी चेंज हुआ। फटे-पुराने कपड़े पहनने वाले भिखारी अब तमाम टाइप के धार्मिक कपड़े पहन कर आ रहे हैं। तभी तो वह डंके की चोट पर चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं कि हम हर किसी को कपड़े से पहचान लेते हैं। इसलिए हमारे कपड़े देखकर आप लोग भी हमें पहचान लो और हमें वोट दो। तुम हमें वोट दोगे। हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। तुम्हारे धर्म की रक्षा करेंगे। देश की रक्षा करेंगे। हम अवतारी महामानव हैं। धर्म की रक्षा के लिए ही भगवान ने हमें धरती पर भेजा है। धर्म है, तो देश है। इसलिए बराबर धर्म की रक्षा में मैं लगा हुआ हूं। देखो पाकिस्तान में एक-एक रोटी के लाले हैं, यहां हम इतना गल्ला मुफ्त में बांट रहे हैं कि लोग जी भर कर खाते-खाते, अपने आस-पास की गऊ माताओं और कुत्ते बिल्लियों तक को खिला रहे हैं, है न मेरी ये जादुई सोच और सही सूझ-बूझ का कमाल। अगर मैं अपनी सही सूझ-बूझ का, सही प्रयोग न करता तो हालात पाकिस्तान की तरह बद से बदतर हो जाते और हमें भी गली-गली गधे बेच कर अर्थव्यस्था सुधारनी पड़ती। जब कि सबको पता है गधे बेचकर पाक अपनी दुर्दशा कभी नहीं सुधार पाया, तो हम क्या खाक सुधार पाते।

सांसदी ले लेकर पार्षदी तक, एक ही गीत गूंज रहा है, जो राम लाएं हैं, हम उनको लाएंगे। राम कहीं नहीं गये थे। न कहीं जाएंगे। न जाने की भूत-भविष्य में उनकी कोई प्लानिंग है। बस उनके नाम से वोट मांगने वाले तरह-तरह के बहरूपिये आ रहे हैं। मंगते आ रहे हैं। अपनी दुकानदारी चमकाते हुए, लोगों को, वे ठगते घूम रहे हैं। देश बेच रहे हैं। रेल, बैंक, भेल जैसी सरकारी कंपनियो को बेच-बेच कर नाली की गैस से बेेकारों को चाय बनवाने पर तुले है। अंधभक्ति चरमोत्कर्ष पर है। अगर वे दिन को रात कहें तो अंधभक्त रात कहेंगे। रात को दिन कहें तो अंधभक्त दिन कहेंगे। धर्म खतरे में है, का खौफ लोगों में पैदा करके ‘अंधभक्ति की वैक्सीन’ कोरोना की मुफ्त वैक्सीन की तरह रेवड़ियों की तरह बांटी जा रही है। लगाई जा रही है। फिलहाल स्थानीय निकाय के चुनाव में आप कह सकते हैं। वाह क्या सीन है। वाह कैसे-कैसे कटोरे हैं। वाह क्या नेता हैं जिन्हें दरवाजे-दरवाजे हाथ फैला कर मांगना पड़ रहा है वोट। जय लोकतंत्र। जय संविधान।