मितिका चौधरी
सरकार की बजट की तैयारी शुरू हो गई है। सवाल उठ रहा है कि एक तरफ ढ़ाई लाख से ऊपर की कमाई पर आयकर और दूसरी तरफ आठ लाख से कम कमाने वाला आर्थिक रूप से कमजोर, यह उलटबांसी कैसे चलेगी? मद्रास हाईकोर्ट में बाकायदा याचिका दायर कर मांग की गई है कि आठ लाख रुपये तक की आमदनी को करमुक्त किया जाए। अदालत ने इस पर सरकार को नोटिस भेजा है और सुनावाई के लिए अगले माह की तारीख दी है।
पिछले सोमवार से वित्त मंत्री ने सरकार के बाहर के आर्थिक विशेषज्ञों और तमाम ऐसे लोगों के साथ बजट-बैठकें शुरू कर दी है जिन पर बजट का असर पड़ता है। बजट का नाम सुनते ही मध्यम वर्ग के मन में टैक्स का सवाल उठने लगता है। अर्थशास्त्रियों, उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों को छोड़ दें, तो कुछ साल पहले तक आम आदमी दो चीजें समझने के लिए ही बजट देखा या पढ़ा करता था। क्या महंगा और क्या सस्ता हुआ और दूसरा आयकर में क्या घटा और क्या बढ़ा। जीएसटी लागू होने के बाद महंगे-सस्ते का खेल करीबन बंद हो चुका है, लेकिन अभी आयकर के मामले में उम्मीद के दरवाजे खुले हुए हैं। आयकर रिटर्न की बारीकियों को जानकर हम अपनी आमदनी पर टैक्स को कम कर सकते हैं।
आयकर की गणना वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि होती है तथा इस दौरान प्राप्त आय इस वित्तीय वर्ष की मानी जाती है। वित्त वर्ष वह वर्ष होता है जो वित्तीय मामलों में हिसाब के लिए आधार होता है। चूंकि किसी वर्ष की आय पर आयकर का निर्धारण वर्ष समाप्ति के पश्चात अगले वर्ष किया जाता है अतः अगले वर्ष को कर निर्धारण वर्ष कहा जाता है। इसलिये जिस वर्ष में आय अर्जित की जाती है उस वर्ष को गतवर्ष के रूप में जाना जाता है। सामान्यतः माह मार्च का वेतन 1 अप्रैल को तथा आगामी वर्ष के फरवरी माह का वेतन मार्च को प्राप्त होता है इसलिये मार्च से आगामी वर्ष की फरवरी माह तक के वेतन को आयकर विवरणिका में शामिल किया जाता है। फिर भी वेतन की गणना करने के लिये यह देखना होगा कि वेतन कब उपार्जित हुआ है अथवा कब प्राप्त हुआ है, इन दोनों परिस्थितियों में जो भी पहले हो के अनुसार उसके अनुसार कर योग्य माना जाएगा।
आयकर वह कर है जो सरकार लोगों की आय पर आय में से लेती है। आयकर सरकारों के क्षेत्राधिकार के भीतर स्थित सभी संस्थाओं द्वारा उत्पन्न वित्तीय आय पर लागू होता है। कानून के अनुसार, प्रत्येक व्यवसाय और व्यक्ति कर देने या एक कर वापसी के लिए पात्र हैं, और उन्हें हर साल एक आयकर रिटर्न फाइल करना होता है। आयकर धन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसे सरकार अपनी गतिविधियों निधि और जनता की सेवा करने के लिए उपयोग करता है।
यदि गतवर्ष में कोई पिछला वेतन प्राप्त हुआ है तथा उस पर सम्बन्धित वर्ष में उपार्जन के आधार पर कर नहीं लगा है तो उस पर प्राप्ति के आधार पर कर लगाया जाएगा। यदि गतवर्ष में उपार्जित वेतन का भुगतान नहीं हुआ है तो उस पर गतवर्ष में ही कर लगाया जाएगा। यदि किसी कर्मचारी को नियोक्ता ने अग्रिम वेतन दिया है तो वह प्राप्ति वाले वर्ष में टैक्स देय होगा। गतवर्ष में कोई एरियर प्राप्त हुआ है तो वह भी गतवर्ष में कर योग्य होगा बशर्ते वह राशि उपार्जित होने वाले वर्ष में पहले ही कर योग्य न की गई हो। किन्तू एरियर पर धारा 89 की छूट का दावा किया जा सकता है। यदि कर्मचारी को अपने नियोक्ता से कोई बोनस, कमीशन अथवा फीस प्राप्त होती है तो वह जिस वर्ष में प्राप्त होगी वह वेतन के अन्तर्गत ही प्राप्ति वर्ष में कर योग्य होगी।
सभी राजकीय कर्मचारियों एवं गैर राजकीय कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के उपरांत प्राप्त होने वाली मासिक पेंशन पूर्णतः कर योग्य होगी। यह देय होने वाले वर्ष में कर योग्य होगी। एक सरकारी कर्मचारी को राजसेवा में रहते हुए यदि अवकाश के बदले कोई नकदीकरण होता है तो पूर्णत कर योग्य होगा। तथा यदि सेवानिवृत्ति पर राजकीय कर्मचारी अवकाश के बदले नकदीकरण प्राप्त होता है तो वह राशि पूर्णतयः कर मुक्त होगी।
वेतन में मूल वेतन, मंहगाई वेतन, ग्रेड-पे, अवकाश वेतन, अग्रिम वेतन, वकाया वेतन, नवीन पेंशन योजना में सरकार का अंशदान, बोनस, कमीशन, फीस, विशेष वेतन, निर्वाह भत्ता आदि सम्मिलित किये जाते है। महंगाई भत्ता, मकान किराया भत्ता, सीसीए, प्रतिनियुक्ति भत्ता, अंतरिम राहत, एनपीए, नौकर भत्ता, मेडिकल भत्ता, परियोजना भत्ता ओवरटाईम भत्ता, वार्डन भत्ता, टिफिन भत्ता (मकान किराया कुछ परिस्थितियों में कर मुक्त है)। आफिस कार्य हेतु आने-जाने, आफिस कार्य या ट्रांसफर के लिये की गयी यात्रा, आफिस के कार्य के निष्पादन हेतु हैल्पर रखने, अनुसंधान खर्च एवं पोशाक भत्ता वास्तविक व्यय की सीमा तक कर मुक्त होंगे।
आयकर में राहत की उम्मीद पालना गलत नहीं है। चुनाव जीतने के बाद सरकार पहले अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए कठोर कदम उठाती है, फिर चुनाव नजदीक आने पर लोक-लुभावन बजट पेश करती है। इसीलिए चुनाव से पहले के वर्षों में उम्मीदें बढ़नी शुरू हो जाती है। सबसे बड़ी वजह यह है कि कोरोना-काल में जहां देश की अर्थव्यवस्था और कारोबार को झटका लगा, वहीं आम आदमी की जेब और परिवार के बजट को भी चोट पहुंची। सरकार ने उद्योगों, व्यापारियों, गरीबों, यहां तक कि ईएमआई भुगतान करने वाले लोगों को कुछ न कुछ राहत देने की कोशिश की, पर जो लोग मध्यम वर्ग से आते हैं, पूरा टैक्स चुकाते हैं, जिन पर किसी तरह का कर्ज नहीं है, उनको बेसहारा छोड़ दिया। पिछले दो साल तो उन्होंने सब्र कर लिया, लेकिन इस साल जब महीने-दर महीने रिकार्डतोड़ टैक्स वसूली की खबरें आ रही हैं, तो उन्हें लगता है कि अब सरकार इस हाल में उनकी भी सुध ले।
सरकार को करमुक्त आमदनी की सीमा बढ़ानी चाहिए और टैक्स स्लैब को भी ऊपर उठाने चाहिए। यह सोचने वाले सिर्फ मध्यम वर्ग के लोग नहीं है। भारत के धनी उद्योगपतियों का संगठन सीआईआई भी वित्त मंत्री से अपनी बजट-चर्चा में सलाह दी है कि सरकार आयकर में कटौती स्लैब में बदलाव पर विचार करें। विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में मांग बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है जब भी आयकर में छूट या राहत दी जाती है तो यह बाजार में खपत बढ़ाने में मददगार होती है। कुल मिलाकर हालात ऐसे बनते दिख रहे हैं कि वित्त मंत्री इस बार मध्यवर्ग को, खासकर नौकारीपेशा लोगों को खुशखबरी दे सकती हैं।