आखिर कैसे आएगा कानून का राज ?

सीता राम शर्मा ” चेतन “

पिछले कुछ दिनों से देश के कई हिस्सों में जिस तरह सामाजिक और राष्ट्रीय सौहार्द को बिगाड़ने और हिंसा फैलाने का सुनियोजित षड्यंत्र रचा जा रहा है और फिर उसे सफलीभूत भी किया जा रहा है, वह देश के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, होना भी चाहिए । उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे के साथ पिछले महिने कश्मीर के सच पर रीलीज हुई फिल्म द कश्मीर फाइल्स आने के बाद रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव के दिन जिस तरह एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत देश के कई हिस्सों में उत्सव मनाते लोगों पर पथराव की घटना हुई, वह बेहद चिंतनीय स्थिति है । इसी चिंता और उसकी गंभीरता के कारण देश की राजधानी दिल्ली में हुई ऐसी ही एक घटना पर अब आखिरकार देश के गृहमंत्री अमित शाह ने वहां के प्रशासनिक अधिकारियों को यह आदेश दिया है कि उस घटना के उपद्रवियों पर ऐसी कठोर कार्रवाई हो कि वह एक मिसाल बन जाए और फिर कभी कोई वैसा उपद्रव करने का साहस ना कर सके । निःसंदेह यही होना चाहिए और सिर्फ अभी और दिल्ली में ही नहीं पूरे देश भर में जब, जहां कहीं भी ऐसो घटना घटे दोषियों पर ऐसी ही कठोर कार्रवाई होनी चाहिए कि भविष्य में फिर कभी कोई वैसा करने की सोच भी ना सके । मैंने देश समाज की कई अलग-अलग क्षेत्र की समस्याओं पर चिंतन करते हुए कई बार उनका जो एकमात्र समाधान लिखा और बताया है, वह है कानून का राज । गौरतलब है कि देश समाज से लेकर एक परिवार और व्यक्ति तक के लिए जब उसके राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन तथा सुव्यवस्था को जीने वाले पूर्ण प्रभावी कानून होंगे और उनके अनुसार ही हर व्यक्ति अपना जीवन जीने को बाध्य होगा या कह सकते हैं कि जब देश का हर व्यक्ति कानून के अनुसार सहर्ष, सुरक्षित, सौहार्दपूर्ण जीवन जीने का सही सलीका सीख लेगा, तब उस स्थिति को हम कानून का राज कह सकेंगे और यह तब संभव होगा जब नियम विरूद्ध किसी भी छोटे-बड़े अपराध करने वाले असमाजिक और अपराधी लोगों को कानून के अनुसार त्वरित दंड देने की पुख्ता व्यवस्था हमारे पास होगी । देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए हमें सबसे पहले और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होगी प्रशासनिक व्यवस्था के उन जिम्मेवार बड़े-छोटे अधिकारियों और कर्मचरयों पर, जिनके कंधों पर देश समाज में कानून को लागू कराने की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी होती है । कानून का राज स्थापित कराने वाला यह तबका जब कर्तव्यपरायण हो पूरी कानूनी जानकारी, समझ, ईमानदारी, पारदर्शिता, निष्पक्षता और कठोरता से कानून को देश समाज में लागू करेगा तब आपरूपी देश समाज से अपराध के साथ उसकी मानसिकता भी खत्म हो जाएगी । सच मानिए यही सबसे मुश्किल काम है, जिस पर अभी देश की सरकार और न्यायिक व्यवस्था को बहुत काम करने की जरूरत है । कानून के राज पर बात करते हुए आज मैं प्रशासनिक अव्यवस्था के पिछले दिनों के कुछ कड़वे अनुभव साझा करना चाहूँगा, जो इस देश के हर कोने में हर दिन, हर मिनट हजारों, लाखों लोग भोगने को विवश हैं, भोग रहे हैं । हर आम आदमी नगरपालिका से जन्म प्रमाणपत्र निर्गत कराने से लेकर सरकारी अस्पताल, शिक्षण संस्थान, थाना, कोर्ट कचहरी के साथ लगभग सभी सरकारी विभागों की कार्य प्रणाली का दंश झेलते हुए आजीवन प्रशासनिक अधिकारियों का कहर झेलने को विवश हैं । व्यक्तिगत स्तर पर देखें तो हर परिवार में कुछ गलत लोग हैं, कुछ उनके प्रभाव में आकर उनका साथ देते हैं तो कुछ बहुत चाहकर भी हमारे ढ़ीले और भ्रष्ट तंत्र के कारण गलत लोगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं करवा पाते, उन्हें सुधार नहीं पाते या कह सकते हैं कि उन्हें ठीक होने को विवश नहीं कर पाते । ठीक परिवार के जैसी ही स्थिति समाज, गांव और शहर की है, जहां कुछ ग़लत और अपराधी लोगों के प्रभाव या आतंक से बहुतायत लोग डरे-सहमे होते हैं, तो कुछ सरल, उचित और निष्पक्ष प्रशासनिक और न्याय व्यवस्था नहीं होने के कारण बहुत चाहकर भी उनका विरोध नहीं कर पाते । फलस्वरूप देश समाज में सर्वत्र अपराध और अपराधी लोगों का बोलबोला है । एक हालिया घटनाक्रम का जिक्र करूं तो एक परिवार में, जिसमें एक बियासी वर्षीय बुजुर्ग पिता और सतहत्तर वर्षीय उनकी पत्नी के साथ उनके चार पुत्र रहते हैं, बेहद लाचार और दुखदाई जीवन जीने को अभिशप्त हैं । जीवन भर कठोर श्रम कर तमाम व्यक्तिगत बुराईयों, फिजूलखर्ची और नशों से दूर रहने वाले इस वृद्ध दंपति ने जो कुछ भी अर्जित किया है, उसे पाने की हवस तो उनकी तीन संतानों में है पर सेवा का कोई भी भाव और कर्म उनके जीवन चरित्र में नहीं है । एक संतान को जब तक उनके पास रूपया-पैसा दिखा, मिलता रहा या मिलने की आस दिखी, सेवा की औपचारिकता निभाता रहा, पर जैसे ही आगे स्वार्थपूर्ति होती दिखाई नहीं दी, किनारा करते हुए लड़ाई झगड़ा करना, यातना देना प्रारंभ कर दिया । चौंथा पुत्र जिसने सदैव पूरे घर परिवार की चिंता की और अपने परिवार की हर तरह से सुरक्षा, समृद्धी और उज्जवल भविष्य का प्रयास किया, वह आज भी अपने वृद्ध माता-पिता के साथ है । उनके बुढ़ापे का सहारा है । पर तीनों भाईयों की दृष्टि में वह उनका शत्रु है । अब सेवाभाव और संतान दायित्व से विमुख हुए वे तीनों पुत्र माता-पिता की जायदाद के हकदार बने उनके साथ-साथ अपने उस भाई और उसके परिवार के शत्रु बने हुए हैं । वे आए दिन सबके सामने खुलेआम उसे मारने की धमकी दे रहे हैं । यहां सबसे महत्वपूर्ण, आश्चर्य और चिंता की बात यह है कि वे चोरी और सीनाजोरी की बात को चरितार्थ करते हुए जब थाने जाते हैं तब थाने के अधिकारी भी उस बियासी वर्षीय बुजुर्ग को सबको समान रूप से संपित्त बांटने, देने की हिदायत तो देते हैं पर उस बुजुर्ग पिता की सेवा करने की बात एक बार भी उन कर्तव्यविमुख नालायक बेटे-बहुओं से नहीं कहते ! क्या ऐसे अधिकारियों के क्षेत्र में हम लाचार बुजुर्गों और लोगों की शांति और सुरक्षा की कल्पना कर सकते हैं ? यहां एक बेहद चौंकाने वाला तथ्य यह भी कि जब उनका चौंथा पुत्र थाने में यह बताता है कि उनके पास उन तीनों भाईयों के द्वारा पिछले कुछ वर्षों में किए गए अनाचार के पचासों ऑडियो-वीडियो उपलब्ध है जो यह सिद्ध करते हैं कि वे गलत और अपराधी हैं, जबकि उसने कभी उनके साथ कुछ गलत नहीं किया, यदि है तो वे दिखाएं, तब वह उन्हें देखने सुनने की बजाय यह कहते हैं कि इससे कुछ नहीं होगा !! यह चिंतनीय स्थिति है कि क्या ऐसा तंत्र अपराध और अपराध की मानसिकता को रोक सकता है ? क्या जब देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्री खुलेआम जनता से अपराध और भ्रष्टाचार से जुड़े साक्ष्यों के ऑडियो विडियो यह कहते हुए मांग रहे हैं कि ऐसे साक्ष्य मिलने पर दोषियों के विरूद्ध कार्रवाई होगी तब किसी थाने का कोई छोटा-बड़ा अधिकारी ऐसी बात कर सकता है ? गौरतलब है कि कानून की धारा पैंसठ बी में ऐसे इलेक्ट्रॉनिक एवीडेंस का स्पष्ट जिक्र है और देश के सुप्रीम कोर्ट ने इसके आधार पर कई बार सुनवाई की है और फैसले भी दिए हैं, पर थाने में उन्हें देखने समझने तक का कोई प्रयास नहीं किया जाता ! दूसरा मामला एक ग्रामीण इलाके का है जहां अंचल का एक कर्मचारी पूरे रौब से खुलेआम घूस लेता है, अनियमितता करता है, पर अंचलाधिकारी को उसकी शिकायत करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती, जबकि उसकी अनियमितता के लिए सिर्फ उसके कंप्यूटर पर उसके द्वारा किये जानेवाले कामकाज का निरिक्षण ही काफी है ! कमाल की बात यह है कि वह जो गलत जानकारी अंचलाधिकारी को देता है, उन्हें उसे देखने समझने का ज्ञान तक नहीं !! तीसरी घटना एक ऐसे विद्यालय की है जहां अभी 1705 छात्र पढ़ते हैं, नियमानुसार इतने छात्रों के लिए बियालिस शिक्षक चाहिए पर हैं सिर्फ सात ! जिसे सरकार एक माॅडल विद्यालय बनाने के लिए लगभग दो करोड़ रुपए खर्च कर रही है पर विद्यालय समिति के अध्यक्ष तक को ठेकेदार यह नहीं बताता कि कितनी राशी किस मद में खर्च होनी है और जिन नवीन तकनीक, उपकरण और संसाधनों पर राशि खर्च होनी है वे किस स्तर के होंगे या होने चाहिए । अफसरशाही, गैर जिम्मेवारी और भ्रष्टाचार की ये स्थिति लगभग पूरे देश की है । इन अलग-अलग क्षेत्र के उदाहरणों से हम देश की प्रशासनिक स्थिति की बदहाली को बखूबी समझ सकते हैं । अब सवाल यह कि ऐसे में कानून का राज कैसे संभव है ? जनता कानून पर भरोसा कैसे करे ? सबसे बड़ा सवाल यह भी कि ऐसा आखिर कब तक चलता रहेगा ? यह स्थिति कब बदलेगी और कौन बदलेगा ? देश की आम जनता में क्या ऐसे अधिकारी या कर्मचारी कानून का भय पैदा कर पाएंगे ? बात छोटे अपराध की हो या बड़े अपराध की, हर अपराध पर जब तक पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और सख्ती से कानून सम्मत कार्रवाई नहीं होगी, कानून का राज स्थापित नहीं होगा । एक अंतिम सवाल यह भी, कि देश के गृहमंत्री के आदेश पर जो कठोर कार्रवाई दिल्ली के उपद्रवियों पर होगी, क्या वैसी ही कार्रवाई पश्चिम बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र के साथ अन्य राज्य भी करेंगे ? हो यह आलेख भी इसी का प्रयास है ।