कैसे हो पायेगी विपक्षी दलों की एकता ?

रमेश सर्राफ धमोरा

भाजपा की केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के नेता एकजुट होने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं। शरद पवार, लालू यादव, उद्धव बालासाहब ठाकरे, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, जयंत चौधरी, ममता बनर्जी, एचडी देवेगौड़ा, ओम प्रकाश चौटाला सहित वामपंथी दलों के नेता इसके लिए लगातार मीटिंग का आयोजन कर आपस में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह सभी नेता चाहते हैं कि भाजपा को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दल एक साथ एक साझा मंच पर आकर चुनाव लड़े। जिससे भाजपा को हराया जा सके। मगर इनके प्रयासों के सिरे चढ़ने से पहले ही विरोधी दलों के कुछ नेता एकला चलो की नीति अपनाकर विपक्ष की एकता में फूट डालने का काम कर रहे हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिला कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बनने का सपना देख रहे हैं। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली व पंजाब में कांग्रेस को हराकर ही अपनी सरकार बनाई है। गुजरात विधानसभा चुनाव में भी आप ने 14 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। गुजरात में कांग्रेस के वोट कटने से कांग्रेस मात्र 17 सीटो पर ही सिमट गयी थी। अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि वह देश के कई प्रांतों के साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे। गुजरात के प्रदर्शन के बाद आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी मिल जाएगी। ऐसे में अरविंद केजरीवाल खासे उत्साहित नजर आ रहे हैं।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति के नाम से नया नामकरण कर अगले लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में चुनाव लड़ने के मंसूबे पाल रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पिछले कुछ समय से विपक्षी दलों से दूरी बनाती नजर आ रही है। चर्चा है कि उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अंदर खाने तालमेल हो गया है। जिसके चलते वह विपक्ष से अलग हटकर अपना अलग ही राग अलापने लगी है।

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कुछ दिनों पूर्व अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर विपक्षी दलों को झटका दिया है। मायावती ने कहा है कि वह किसी भी राजनीतिक दल से चुनावी गठबंधन नहीं करेगी। कांग्रेस ने असम में अपने गठबंधन सहयोगी सांसद बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट पार्टी से गठबंधन को समाप्त कर दिया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बदरुद्दीन अजमल असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा के इशारों पर कांग्रेस को कमजोर करने का काम कर रहे हैं।

यह सब कुछ ऐसी ताजा घटनाएं है जो देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करेगी। विपक्ष की राजनीति कर रहे कुछ दलों को कांग्रेस से आपत्ति है। वह कांग्रेस व भाजपा से समान दूरी बना कर रखना चाहते हैं। हालांकि केरल, त्रिपुरा में वामपंथी दल और कांग्रेस आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं। मगर पश्चिम बंगाल व देश के अन्य प्रदेशों में एक साथ गठबंधन कर लेते हैं। समाजवादी पार्टी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन करने से इंकार कर दिया था। इस कारण कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा था।

तमिलनाडु में पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में द्रमुक ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। जिसमें दोनों ही दलों को जबरदस्त सफलता मिली थी। द्रमुक को विधानसभा में अकेले ही बहुमत मिलने के कारण उसने राज्य सरकार में कांग्रेस को अभी तक शामिल नहीं किया है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल व जनता दल यूनाइटेड की सरकार में कांग्रेस भी शामिल है। मगर कांग्रेस को सत्ता में नाम मात्र की हिस्सेदारी मिली है। जिससे बिहार के कांग्रेसी नेता संतुष्ट नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में शिवसेना नेता उद्धव बालासाहब ठाकरे ने भाजपा को दूर कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस के साथ मिलकर एक नया प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार बनाई थी। जो सफलतापूर्वक चल भी रही थी। मगर शिवसेना के कुछ नेताओं द्वारा बगावत करने के कारण अघाड़ी सरकार गिर गई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केंद्र सरकार का नेतृत्व करते हुए करीबन पौने नौ साल का समय हो चुका है। वह बिना किसी चुनौती के एक छत्र राज कर रहे हैं। 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीतकर भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दो बार केंद्र में सरकार बनाकर देश की राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने के लिए विपक्षी दलों के नेता बड़े-बड़े दावे करते रहते हैं। मगर प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति के सामने सभी विपक्षी दल पस्त नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के एक छत्र नेता बनने के पीछे उनकी विपक्षी दलों में फूट डालकर राज करने की सबसे कारगर नीति है जो पूरी तरह सफल हो रही है।

विपक्षी दलों द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ जब भी कोई बड़ी मुहिम चलाई जाती है तो उसमें फूट पड़ ही जाती है और वह मुहिम फ्लॉप हो जाती है। राजनीति के जानकार इसके पीछे मोदी का ही हाथ मानते हैं। मराठा क्षत्रप शरद पवार ने कई बार विपक्षी दलों के नेताओं को एक मंच पर लाने का प्रयास किया जो सीरे भी चढ़ता नजर आया। मगर अंत में उसका भी वही हश्र हुआ और विपक्षी दल एक मंच पर नहीं आ पाए।

कई विपक्षी दलों के नेताओं का मानना है कि विपक्ष की एकता में सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस है। मगर वह इस बात को भूल जाते हैं कि कांग्रेस पार्टी आज भी देश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। संसद में उसके सबसे अधिक सांसद है। ऐसे में कांग्रेस के बिना विपक्ष की राजनीति कैसे सिरे चढ़ सकती है। कांग्रेस पार्टी का आज भी पूरे देश में कम या ज्यादा जनाधार है।

हालांकि कई प्रदेशों में क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत है तथा वहां उनकी सरकार चल रही है। मगर केंद्र से मिलने वाले लाभ की बदौलत कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं यथा उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी सहित अन्य कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार से अघोषित समझौता कर रखा है। जब भी केंद्र को शक्ति प्रदर्शन करने की जरूरत होती है तो विपक्षी दलों के कई नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़े नजर आते हैं। ये नेता किसी भी पार्टी से चुनावी गठबंधन नहीं करना चाहते हैं। पूर्वात्तर राज्यों की क्षेत्रीय पार्टी के नेता भी आर्थिक हितों के चलते केन्द्र सरकार को नाराज नहीं करना चाहते हैं। इससे विपक्ष की राजनीति कमजोर होती है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के लिए भारत जोड़ो पदयात्रा कर रहें है। जिसमें वह भाजपा विरोधी सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित कर रहे हैं। मगर उनके यात्रा में भी कई विपक्षी दलों के नेताओं ने शामिल होने से इंकार कर विपक्ष की एकता को पलीता लगा दिया। विपक्षी दलों की आपसी फूट का फायदा उठाकर भाजपा 2024 में तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने की योजना बना रही है। यदि विपक्षी दलों की सिर फुट्टवल इसी तरह चलती रही तो भाजपा को लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है।

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)