हिंदी में इठलाने और इतराने का सीजन

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विनोद कुमार विक्की

हिंदी पखवाड़ा के दौरान वैसे अहिंदी भाषी को भी राजभाषा पर इठलाने और इतराने का सौभाग्य प्राप्त होता है, जिनके गृहस्थी की साईकिल आजीवन क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी भाषा के टायर पर ही चक्कर खाती रही है।

हमारे मोहल्ले के शर्माजी यह सोच-सोच कर ही गौरवान्वित होते रहते है, कि उनका लौंडा शहर के नम्बर वन इंग्लिश मीडियम पब्लिक स्कूल में पढ़ाई करता है। शर्मा जी की ज्ञात छः पीढ़ियां जो खांटी हिंदी भाषी थे, तब तक पारिवारिक उपलब्धि के नाम पर बताने, गिनाने और दिखाने लायक कुछ भी नहीं था। जूनियर शर्मा के कॉन्वेंट में दाखिला लेने मात्र से ही शर्मा परिवार में खुशियां और उम्मीदों में इजाफा हो गया। अतिथियों के आगमन पर उत्साहित शर्मा जी सुपुत्र को बुलाकर सामने वाले अंकल, आंटी,अतिथि से ऐसे मुखातिब करवाते है, जैसे भारतीय प्रधानमन्त्री भारत दौरे पर आए विदेशी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को राजघाट एवं ताजमहल से रू-ब-रू करवाते हैं। मजाल क्या है, कि कोई रिश्तेदार शर्मा जी के घर आवें और जूनियर शर्मा के राइम्स वाचन सत्र का सहभागी होने से बच जाएं। जाॅनी-जाॅनी यस पापा, ट्विंकल-ट्विंकल लिट्ल स्टार, बा-बा ब्लैक शिप से हम्प्टी-डम्प्टी आदि राइम्स राॅकेट को जूनियर शर्मा आगंतुक के हिंदी पोषित मस्तिष्क की ओर धड़ाधड़ छोड़ने लगता है। मछली जल की रानी है एवं अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो पर अपना संपूर्ण बाल्यावस्था गुजारने वाला अतिथि चेहरे पर बनावटी मुस्कुराहट लाकर नाइस,गुड,वेरी गुड आदि कम्पलीमेंट्स मौखिक रूप से जारी कर आंग्ल भाषा पर अपनी पकड़ एवं प्रतिष्ठा बचाने का असफल प्रयास करते दिख जाता है।

एक दौर था जब कवि झन्नाटा जी की हिंदी रचनाएं संपादक तो दूर पैसे लेकर साझा संकलन निकालने वाले प्रकाशक भी छापने का जोखिम नहीं उठाते थे। छपास पीड़ित झन्नाटा जी ने वक्त के साथ इसका भी तोड़ निकाल लिया और हिंदी की खिचड़ी में उर्दू का छौंक लगाना सीख गये।

अपनी शायरी,गज़ल या कविता में इन दिनों जबरन ऊर्दू के भारी-भरकम शब्दों को घुसेड़ने लगें है।

कॉपी पेस्ट में आस्था रखने वाले संपादक महोदय भ्रमवश ऐसी रचनाओं को ओजपूर्ण एवं उत्कृष्ट मानते हुए प्रकाशित करके तथा पाठक वृंद समझ से परे उन रचनाओं पर अपनी सकारात्मक टिप्पणी दे कर स्वयं को बुद्धिजीवी साबित करने में लगे रहते हैं।

बहरहाल आधुनिकता के नाम पर हिन्दी की गद्दी पर अंग्रेजी अथवा क्षेत्रीय भाषा चाहे जितना आधिपत्य जमा लें लेकिन बहुआयामी भाषा हिंदी कई मायनों में आज भी प्रासंगिक है और हमेशा रहेगी। यथा, राजनीतिक पार्टियों की दुकान हिंदी एवं गैर हिंदी भाषी कस्टमर के नाम पर खुब चल रही है और हमेशा चलती रहेगी। पूर्वोत्तर राज्यों एवं महाराष्ट्र के निवासी और नेताओं को हिंदी भाषी प्रवासी के साथ भेद-भाव करने और जब तब सुताई कर अपनी राजनीति और क्षेत्र को चमकाने का मौका मिल जाता है। सरकारी कार्यालयों एवं रेलवे स्टेशन की दीवारों पर स्लोगन लिखने के काम में आज भी हिंदी भाषा का व्यापक प्रयोग किया जाता है। कॉन्वेंट में हिंदी लिखो प्रतियोगिता से लेकर वाह-वाह और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच आयोजित होने वाला कवि सम्मेलन अथवा साहित्य सम्मान कार्यक्रम आदि ऐतिहासिक समारोह हिंदी की बुनियाद पर ही सफलीभूत होता हैं। तो चलिए हम लोग भी राजभाषा को अपनाने की बजाय मनाने की परंपरा का निर्वाह करते हुए हिंदी पखवाड़ा को साथ-साथ सेलिब्रेट करते हैं।