हुमायूं कबीर की बाबरी मस्जिद चाल से ममता बनर्जी की सत्ता पर मंडराया संकट

Humayun Kabir's Babri Masjid move threatens Mamata Banerjee's power

अजय कुमार

पश्चिम बंगाल की राजनीति में इन दिनों हलचल मची हुई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो 15 साल से सत्ता की कमान संभाल रही हैं, अब चारों तरफ से घिरी नजर आ रही हैं। एक तरफ हिंदू वोटरों का झुकाव भाजपा की ओर हो चुका है, तो दूसरी तरफ उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की पुरानी राजनीति भी डगमगा रही है। ताजा संकट खड़ा कर दिया है उनकी ही पार्टी के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने। 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की प्रतिकृति बनाने की नींव रखने का ऐलान कर उन्होंने न सिर्फ तृणमूल कांग्रेस को बैकफुट पर धकेल दिया, बल्कि पूरे राज्य की सांप्रदायिक सियासत को नई हवा भी दे दी। यह घटना महज एक विधायक का विद्रोह नहीं, बल्कि ममता की सत्ता की नींव हिला देने वाली चाल लग रही है।

हुमायूं कबीर कौन हैं, यह जानना जरूरी है। मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर विधानसभा क्षेत्र से 2021 में तृणमूल के टिकट पर विधायक बने कबीर पहले भी विवादों के केंद्र में रहे हैं। ममता सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके वे मूल रूप से कांग्रेसी पृष्ठभूमि के हैं। 2011 में ममता के सत्ता में आने पर वे मंत्री बने, लेकिन 2015 में पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी। उन्होंने ममता पर आरोप लगाया कि वे अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को ‘राजा’ बनाने की कोशिश कर रही हैं। नतीजा यह हुआ कि उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। 2021 में वनवास खत्म हुआ और तृणमूल ने फिर मौका दिया। लेकिन अब फिर वही पुरानी कहानी। लोकसभा चुनाव के दौरान कबीर ने कहा था कि मुर्शिदाबाद में 70 फीसद मुस्लिम आबादी है, इसलिए हिंदुओं को भागीरथी नदी में डुबो देंगे। यह बयान सुर्खियां बटोर गया। अब बाबरी मस्जिद का राग छेड़कर वे ममता को सीधा चुनौती दे रहे हैं।

6 दिसंबर का दिन खास था। बाबरी विध्वंस की 32वीं बरसी पर कबीर ने बेलडांगा में शिलान्यास किया। कार्यक्रम में तीन लाख लोग जुटे, 40 हजार बिरयानी के पैकेट बंटे और सऊदी से आए धर्मगुरुओं ने आशीर्वाद दिया। मंच से कबीर ने कहा कि तीन साल में मस्जिद बनकर तैयार हो जाएगी। उन्होंने 25 नवंबर को ही ऐलान किया था कि 6 दिसंबर को नींव रखेंगे। तृणमूल ने इसे सांप्रदायिक राजनीति बताकर उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया। ममता ने कबीर को आरएसएस का मुखौटा करार दिया। पार्टी का कहना है कि निलंबन बाबरी मुद्दे के लिए नहीं, बल्कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए हुआ। लेकिन कबीर पीछे हटने को तैयार नहीं। उन्होंने कहा कि ममता मेरी हत्या भी करवा सकती हैं, लेकिन मस्जिद बनेगी। वे नई पार्टी बनाने और 90 मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं।

यह सब ममता के लिए कितना बड़ा झटका है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। बंगाल में मुस्लिम आबादी करीब 30 फीसद है। 2011 की जनगणना के मुताबिक 27 फीसद थी, जो अब बढ़कर 30 के आसपास पहुंच गई। मालदा, मुर्शिदाबाद जैसे सीमावर्ती जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की भरमार है। कबीर का दावा है कि 90 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट 35 फीसद से ज्यादा हैं। ममता ने हमेशा अल्पसंख्यक वोटों को सहारा बनाया। इमामों को तनख्वाह, धार्मिक जुलूसों का समर्थन सब कुछ किया। लेकिन अब कबीर की चाल से वोट बंटवारे का खतरा मंडरा रहा। भाजपा को इसका फायदा होगा, जो हिंदुत्व कार्ड खेल रही है। वीएचपी ने चेतावनी दी कि अगर बाबरी बहाने से हिंदुओं पर हमला हुआ तो कबीर और ममता जिम्मेदार होंगे। हाईकोर्ट ने भी दखल देने से इनकार कर दिया, जिससे कबीर को हौसला मिला।

ममता का मुस्लिम तुष्टिकरण अब उल्टा पड़ रहा है। वक्फ संशोधन कानून पर उनका यू-टर्न इसका बड़ा उदाहरण है। अप्रैल 2025 में ममता ने कहा था कि बंगाल में वक्फ कानून लागू नहीं होने दूंगी। तृणमूल ने सड़क से संसद तक हंगामा किया। मुस्लिम समुदाय खुश था। लेकिन बाद में उन्होंने पोर्टल पर वक्फ संपत्ति का ब्योरा अपलोड करने की इजाजत दे दी। इससे मुस्लिमों में गुस्सा भड़का। उन्हें लगने लगा कि ममता भी भाजपा जैसी हो गई हैं। बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव की तरह वादा किया, लेकिन महागठबंधन की हार देखकर रुख बदला। मुर्शिदाबाद में वक्फ विरोधी हिंसा हुई, जिसमें भाजपा ने ममता पर बांग्लादेश बनाने का आरोप लगाया। मौलाना साजिद रशीदी जैसे नेताओं ने राष्ट्रपति शासन की मांग की।

दूसरा बड़ा संकट है विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर )। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची साफ करने के लिए एसआईआर शुरू किया। ममता ने इसे अमित शाह की साजिश बताया। कहा कि अगर रोकतीं तो केंद्र राष्ट्रपति शासन लगा देता। एसआईआर से 46 लाख नाम कट सकते हैं, जिनमें ज्यादातर घुसपैठिए। ममता ने विरोध में रैलियां की। मालदा में कहा कि भाजपा अपनी कब्र खोद रही है। एसआईआर से 40 मौतें हुईं, जिनमें आधे हिंदू। ममता ने मुआवजा देने की घोषणा की और निगरानी टीम बनाई। लेकिन आयोग ने उनकी बाधा को नकार दिया। सीमावर्ती जिलों में वोटरों की संख्या दोगुनी हो गई, जो भाजपा घुसपैठ का सबूत बता रही। बंगाल में एक करोड़ फर्जी वोटर होने का दावा कर रही। मुस्लिम बहुल इलाकों में एसआईआर फॉर्म भरने की होड़ लगी, लेकिन ममता का विरोध जारी है। वे घुसपैठियों को सांत्वना दे रही हैं कि डरें नहीं, वापस बुलाएंगी। 20 साल पहले लोकसभा में घुसपैठ पर बवाल काटने वाली ममता अब उलट बोल रही हैं।

भाजपा इन सबका फायदा उठाने को बेताब है। 2021 में 77 विधायक जीतकर राज्य में मजबूत हुई। अब हिंदू वोट उसके पाले में हैं। वंदे मातरम विवाद से बंगाली अस्मिता जोड़ रही। मुस्लिम आउटरीच प्रोग्राम शुरू किया, ताकि बंगाली मुसलमानों को साधे। ओबीसी लिस्ट से 35 मुस्लिम जातियों को हटाने पर तृणमूल-भाजपा भिड़ गई। जाति सर्वे को भेदभाव बढ़ाने वाला बता रही। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी बंगाल में दखल दे रही, जिस पर भाजपा की मदद का आरोप है। कबीर का बीजेपी से पुराना रिश्ता रहा। 2019 में वे भाजपा से लड़े। अब कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने उन्हें मानसिक रूप से बीमार और भाजपा एजेंट कहा।

2026 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ममता की स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गई। न निगलते बन रहा, न उगलते। हुमायूं कबीर का खेल कामयाब हुआ तो तृणमूल का वोट बैंक बंट जाएगा। मुस्लिम वोट भाजपा को फायदा पहुंचाएंगे। बंगाल की सियासत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हो रहा। ममता को बड़ा सबक मिल सकता है। क्या वे अपनी सेकुलर छवि बचा पाएंगी? या भाजपा सत्ता की चाबी हाथ में ले लेगी? समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल हुमायूं कबीर की बाबरी चाल ने सबको चौंका दिया है। बंगाल की सड़कों पर बहस छिड़ गई है क्या यह ममता का अंतिम संकट है?