रेखा शाह आरबी
सावन खत्म होते ही धरती के सारे मुर्गो में भय का माहौल व्याप्त हो गया था। सब अपनी जान की सलामती को लेकर परेशान थे । मुर्गो की सलामती को लेकर कैसे कोई आस बंधाई जाए।यहां तो आधी आबादी डरी सहमी रहती है । पता नहीं कब कहां से कौन भेड़िया निकल जाए। कब कौन उनकी इज्जत तार तार कर दे उन्हे नोच-खसोट ले। सोचने की बात है जहां आधी आबादी डरी सहमी रहती है । वहां पर इनकी परेशानी कौन देखेगा । इंसान तो इंसानो को भी बक्शता नहीं है । वह तो मात्र एक मुर्गे थे। जिन इंसानों के नजर में इंसानो की कीमत नहीं है। उनके नजर में भला मुर्गो की क्या कीमत होगी!
मुर्गे ऊहापोह की स्थिति में थे । कि कल कौन रहेगा और कौन पेटलोक का वासी होगा । कौन सींक कबाब सिंकेगा। और कौन टंगड़ी कबाब बनकर टंग जायेगा । और कौन दो प्याजा बनकर मिर्च मसालेदार बनेगा । सारे मुर्गी मुर्गियां अपने ईश्वर को गुहरा रहे थे । और अपने सभी सगे संबंधियों से गले मिलकर उन्हें अंतिम विदाई दे रहे थे। और कह रहे थे -भाई अगर कल जिंदा रहे तो साथ में दाना चरने चला जाएगा। मुर्गे -मुर्गियों को पता नहीं था इंसानों से तो ऊपर वाला भी परेशान हो चुका हैं।
इधर मुर्गों की जान का मसला था । जिसमें इंसान मसाला मिलाकर चटकारे लेने वाला था । उधर इंसान तो इंसान है। उसे दूसरे की परेशानियों से क्या लेना देना। वह चटकारे लेने के साथ-साथ मुर्गों के ऊपर जोंक भी बनाकर उनका मजाक बना रहे थे । अब यह क्या बात हुई एक तो जान भी ले रहे हो। दूसरे मजाक भी बना रहे हो । इस बात ने मुर्गों और मुर्गियों की फीलिंग को हर्ट कर दिया।बस यही पर बात बिगड़ गई। वरना वह सब चुपचाप कढ़ाई में जाने को तैयार थे। मुर्गे और मुरगिया इंसानों को भला बुरा कहने लगे। इन इंसानों को तो दूसरों की फिलिंग्स का कोई कदर ही नहीं है । सींक कबाब और टंगड़ी कबाब और चिकन दो प्याजा बनाना तो बर्दाश्त कर लिया। लेकिन जोंक बनना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे। आखिर अपनी भी इज्जत है ।
लेकिन मुर्गी और मुर्गियों के हर्ट होने से क्या होता है । जब तक आप पावरफुल नहीं है ।तब तक आप अपनी इस देश में किसी को बात सुनाने की कल्पना भी मत कीजिए। हां आपकी बात सुनी जा सकती थी यदि आप इंसानों की थाली में परोसे जाने के वक्त अपना स्वाद बदल पाते। तो शायद उनको कुछ फर्क पड़ता । लेकिन यदि आप कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है। तो अपनी फिलिंग्स अपने पास रखिए। जैसे जनता बर्दाश्त करना सीख रही है आप भी बर्दाश्त करना सीखिए। अपने देश के नेताओं को ही देख लीजिए उनको तो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट भी कहता है तो उनको कुछ फर्क नहीं पड़ता है। एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं।