पेरिस ओलंपिक में पूरी शिद्दत से भारतीय हॉकी टीम में अपनी भूमिका निभाने को प्रतिबद्ध हूं : सुखजीत सिंह

I am fully committed to playing my role in the Indian hockey team in Paris Olympics: Sukhjit Singh

  • अपने कोच और टीम के साथियों के भरोसे खरा उतरना चाहता हूं
  • फोकस ओलंपिक पर, मैं अपनी टीम को सर्वोच्च सम्मान दिलाने को कृतसंकल्प
  • सुखजीत ने साबित किया की जीवट और जज्बा हो तो आप अपना सपना पूरा कर सकते हैं

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : नौजवान स्ट्राइकर सुखजीत सिंह ने अपने संकल्प और जीवट से भारत की पेरिस ओलंपिक 2024 में शिरकत करने जा रही पुरुष हॉकी टीम में स्थान बनाया है। सुखजीत अपने नौजवान साथी स्ट्राइकर अभिषेक, मिडफील्डर राज कुमार पाल और फुलबैक जर्मनप्रीत सिंह और संजय के साथ भारत की 15 सदस्यीय हॉकी टीम के उन पांच खिलाड़ियों में से एक है जो पेरिस में अपना पहला ओलंपिक खेलेंगे।छह बरस पहले पीठ में लगी चोट के चलते सुखजीत सिंह के दाएं पैर ने आशिंक रूप से काम करना बंद कर दिया था लेकिन अपने जीवट और परिवार में खासतौर पर पिता अजित सिंह के सहयोग से उन्होंने अपने जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर से उबर कर भारत की पेरिस ओलंपिक में शिरकत करने वाली पुरुष हॉकी टीम में जगह बना कर साबित किया कि जीवट और जज्बा हो तो आप मुश्किल दौर से उबर कर अपना सपने का पूरा कर सकते हैं। भारतीय पुरुष हॉकी टीम अब ओलंपिक में शिरकत करने के लिए पेरिस पहुंच चुकी है और पूल बी में अभियान 27 जुलााई को न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच से करेगी।

ओलंपिक में कुल सबसे ज्यादा आठ बार और आखिरी बार मास्को में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने इसके चार दशक के बाद 2020 में टोक्यों में मनप्रीत सिंह की अगुआई में कांसे के रूप में अपना पहला पदक जीता था। जालंधर में जन्में 28 बरस के स्ट्राइकर सुखजीत सिंह ने महज छह बरस की उम्र में पहले पहल हॉकी पकड़ी और अपने पिता पंजाब पुलिस के लिए हॉकी खेल चुके अजित सिंह से प्रेरणा पाकर इसमें अपना और भारत का नाम रोशन करने का सपना संजोया। भारत के लिए अब 70 अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैच खेल 20 गोल कर चुके सुखजीत सिंह का भारतीय ओेलंपिक टीम में स्थान बनाने का सफर खासा मुश्किल पर जीवट से जीत पाने की कहानी बयां करता है। सुखजीत हार मानने की बजाय बेहतर करने के जज्बे से अब अपने सपने को पूरा करने की दहलीज पर पहुंच कर भारत का पेरिस ओलंपिक में गौरव बढ़ाने को बेताब हैं। सुखजीत ने चोट से उबरने के बाद अंतत: 2021-22 एफआईएच प्रो हॉकी लीग सीजन स्पेन के खिलाफ भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय हॉकी करियर का आगाज गोल करने के साथ किया। 2023 में भुवनेश्वर में पुरुष हॉकी विश्व कप में सुखजीत सिंह ने भारत के लिए छह मैचों में छह गोल किए। वह भारत की चेन्नै में बीते बरस एशियन चैंपियंस ट्रॉफी और हांगजू एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के अहम सदस्य रहे। सुखजीत सिंह ने भारत को एफआईएच प्रो लीग में भारत के लिए पांच गोल दागे।

सुखजीत कहते हैं, ’ भारतीय हॉकी टीम के लिए ओलंपिक में खेलना हमेशा मेरे और मेरे परिवार का सपना रहा है। ओलंपिक में अपने देश के लिए खेलना हर एथलीट का सपना होता है क्योंकि यह सबसे बड़ा मंच है। मेरे लिए गर्व की बात है कि मुझे यह मौका मिल रहा है। मेरा मानना है कि मेरी मेहनत और संकल्प का मुझे सिला मिला। अब मैं पेरिस ओलंपिक में पूरी शिद्दत से भारतीय हॉकी टीम में अपनी भूमिका निभाने को प्रतिबद्ध हूं। मैं अपने कोच और अपनी टीम के साथियों के भरोसे पर खरा उतरना चाहता हूं। मेरे लिए बीते दो बरस बहुत बढ़िया रहे।मैंने इस दौरान भारतीय सीनियर टीम के लिए खेलते हुए हर मैच से सीखा। मैंने अपना खेल बेहतर करते हुए भारतीय हॉकी टीम की कामयाबी में योगदान किया। अब मेरा पूरा फोकस पेरिस ओलंपिक पर है और मैं अपनी टीम को इसमें सर्वोच्च सम्मान दिलाने को कृतसंकल्प हूं। ‘

’पिता ने मुझे नाउम्मीद नहीं होने दिया, मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने देने में मदद की‘

2018 में 22 बरस के सुखजीत सिंह को भारतीय सीनियर हॉकी टीम के संभावितों में शामिल किया गया था लेकिन बदकिस्मती से पीठ में लगी चोट से उनके दाएं पैर ने आशिंक रूप से काम करना बंद कर दिया था। सुखजीत कहते हैं, ’ मेरे जीवन का यह अब का सबसे कठिन और मुश्किल समय था। पांच महीने तक बिस्तर पर रहना जेहनी और शारीरिक तौर पर बेहद थका देने वाला था । हॉकी खेलना तो छोड़ दे मैं चल तक नहीं सकता था। मैं खुद अपने आप खाना तक खा नहीं पाता था। हर बीते दिन के साथ भारत के लिए हॉकी खेलने का सपना और दूर होता लग रहा था और यह बेहद दिल तोड़ने वाला था। ऐसे मुश्किल दौर में मेरे परिवार खासतौर पर मेरे पिता अजित सिंह मेरे साथ खड़े रहे। मेरे पिता ने मेरे साथ खड़े हो मुझे नाउम्मीद नहीं होने दिया ।मेरे पिता ने मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने देने में मदद की। मेरे पिता का मुझे मैदान पर खेलते देखने का संकल्प बेहद गजब का था और इससे मुझे दर्द और चुनौतियों से उबरने में मदद मिली।‘