
प्रियंका सौरभ
मैं पिछला साल का पौधा हूँ,
जिसे तुमने कैमरे की फ़्लैश में रोपा था,
हाथ में कुदाल नहीं,
पर हाथ में ढेर सारे लाइक्स थे।
तुमने मेरी जड़ों पर मिट्टी डाली,
पर न पानी डाला, न परवाह की,
तस्वीर में मैं हरा था,
पर असल में सूखता रहा धीरे-धीरे।
तुम अगली सुबह ऑफिस चले गए,
मैं धूप में जलता रहा,
मुझमें छांव बनने की आशा थी,
पर मैं खुद ही छांव को तरसता रहा।
आज तुम फिर आए हो,
नए पौधे के साथ,
फिर वही रिबन, वही फोटो,
फिर एक नया स्टेटस — “#GoGreen”
मुझे देखा भी नहीं तुमने,
जो बीता था वो बीज,
अब बस टूटे पत्तों का ढेर है।
मैं चीखना चाहता हूँ —
“नए पौधे लगाओ ज़रूर,
पर पुराने को संभालो भी तो कभी!”
मैं पेड़ नहीं बन सका,
क्योंकि तुम्हारे वादे
सिर्फ पर्यावरण दिवस तक थे।