नरेंद्र तिवारी
मैं सेंधवा हूं। मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित बड़वानी जिले की सबसे बड़ी तहसील मुझमें 100 साल पुरानी नगरपालिका स्थित है, एक विशाल जनपद जिसमे 124 ग्राम पंचायतें शामिल है, जिनके और बढ़ने की संभावनाएं चल रही है। एक 37 एकड़ में फैला काले पत्थरों से निर्मित परमार कालीन विशालकाय ऐतिहासिक किला भी है, जो मेरे इतिहास की कहानी कहता प्रतीत होता है। मैं एमपी की आर्थिक राजधानी इंदौर से 150 किलोमीटर आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित हूं। इसी राजमार्ग पर मुझसे 450 किलोमीटर की दूरी पर भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई स्थित है। महाकाल की नगरी उज्जयिनी की मुझसे दूरी 215 किलोमीटर एवम नर्मदा किनारे स्थित प्रसिद्ध ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग महज 141 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। देवी अहिल्या की राजधानी प्रागेतिहासिक नगरी महिष्मति अब महेश्वर 89 किमी दूरी पर ही है। जीवनदायिनी मां नर्मदा आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर मुझसे 70 किमी की दूरी पर और कहीं तो इससे भी समीप कलकल बहती है। इन ऐतिहासिक, धार्मिक और आर्थिक महानगरों से दूरियों का जिक्र करना अपनी भौगोलिक स्थिति समझाने का प्रयास भर है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मेरा भी अहम योगदान रहा है। अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुझमें निवासरत स्वतंत्रता के दीवानों ने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर दिया था। महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेज जज की हेट (केप) को किला गेट के सामने जला दिया था। वनवासी स्वतंत्रता वीरों के डर से गौरी सरकार कांप जाती थी। आजादी के आंदोलन के दौरान शहर के युवाओं ने कई बार किले की प्राचीर पर तिरंगा भी फहराया था। यूं तो मेरा नाम धनिकों की बस्ती के रूप में पहिचाना जाता हैं। किंतु फिलहाल मेरे क्षेत्र के ग्रामीण और शहरी दोनों पलायन कर महाराष्ट्र और अन्य प्रदेशों में जा रहे है। शहरी लोग जहां व्यापार की अपनी नवीन इकाइयों की स्थापना महाराष्ट्र करने और रोजगार की तलाश में तो ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी श्रमिक मजदूरी करने महाराष्ट्र और गुजरात की और जा रहे हैं। यह सिलसिला विगत 20 बरसों से अधिक बढ़ गया है। मेरा व्यवसायिक अतीत बेहद सुनहरा रहा हैं। मेरे अंदर 100 से अधिक जिनिंग–प्रेसिंग कारखाने संचालित होते थै। एशिया की बड़ी कपास मंडियों में मेरा नाम शुमार था। बहुत दुखी और पीड़ादाई मन से अपने अतीत का बखान कर रहा हूं। अब यह बीते दिनों की सुनहरी यादें है। अब मुझमें 15 जिनिग–प्रेसिंग भी बमुश्किल संचालित होती है। मेरे ग्रामीण श्रमिक भी अब मुझसे मुंह मोड़ने लगे है, मैं इन श्रमिको के परिवार का पालन पोषण करने में सक्षम नहीं रहा, शहर के व्यवसायियों के लिए मैं अब फायदा का सौदा नहीं रहा हूं। मेरे शहर और ग्रामीण के बाशिंदे बेहद निराश होकर मुझे उजाड़ कहने लगे है। मेरी पीड़ा, दुख और बैचनी का कारण यही है। मैं अब नवीन विकास और तरक्की की चाह रखता हूं। राजनीतिक रूप से आजादी के बाद से मेरा नेतृत्व दोनो ही प्रमुख सियासी दलों ने किया। मेरे क्षेत्र के मतदाताओं ने दोनों ही दलों के नेताओं को भरपूर अवसर दिए। किंतु यह अवसर मेरे विकास में सहायक न हो सकें। किसी दल के प्रदेश प्रधान ने कहा हम नर्मदा का पानी लाएंगे। किसी ने रेल की पटरी का आश्वासन दिया था। जनता ने समय–समय पर सबको अवसर दिए। किंतु अब तक न नर्मदा मां की धारा आई और न ही रेल की पटरियां मुझसे होकर गुजरी। एक अदद राष्ट्रीय राजमार्ग ही मुझसे होकर गुजरता है। जिस पर स्थित सीमा चौकियां गलत अर्थों में मेरी पहिचान कराती रही, अब भी करा रही है। इन जांच चौकियों से तरक्की की बजाय अपराध फलता–फूलता रहा है। अवैध कमाई पर आश्रित स्वार्थी तत्वों ने खूब अवैध कमाई की, इसी अवैध कमाई ने अपराधों को जन्म दिया, शहर जिस सांप्रदायिकता के लिए बदनाम रहा है, वह भी इस अवैध कमाई के जरियों पर कब्जे की लड़ाई मात्र थी।
साहित्य और सांस्कृतिक रही मेरी पहिचान अब कहीं खो गई है। मेरी धरती प्रतिभाओं की चेरापूंजी कही जाती थी। अब यह उमरठी के अवैध निर्मित हथियारों और मादक पदार्थ गांजे की अवैध खेती के नाम से कुख्यात हो चुकी है। मैं इस पहिचान से मुक्त होना चाहता हूं। किंतु अपराधियों का गठजोड़ मेरी अपराध मुक्ति की राह में रोड़ा बना हुआ है। जिला बड़वानी में एसपी दर एसपी हथियारों के अवैध जखिरों को पकड़ कर रिकार्ड पे रिकार्ड बना रहे है, किंतु कोई ऐसा अधिकारी अब तक नहीं आया जिसने अवैध हथियार निर्माण की प्रक्रिया को पूर्ण प्रतिबंध के विषय में सोचा हो। मेरे क्षेत्र में स्थित धवली पहाड़ी पट्टी के आदिवासियों के जहन में राजनीति के सौदेबाजी ने गांजे की खेती के बीज बोए, राजनीति और तात्कालिक पुलिस के गठजोड़ ने अवैध काम को रोकने के बजाए सरक्षण दिया।
मैं सेंधवा विधानसभा अपने विकास की चाह रखती हूं। अपने बदनामी दाग धोना चाहती हूं। इसके लिए औद्योगिक विकास की आवश्यकता सबसे महत्वपूर्ण है। क्षेत्र के व्यवसायी कपास के व्यापार पर आश्रित है। जिसका बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र से आता है। जब तक महाराष्ट्र के किसानों को बड़ा फायदा नहीं मिलता वह अपनी उपज लेकर मेरी ओर नहीं आते, निमाड़ का कपास इन व्यापारियों की आपूर्ति नहीं कर पाता सो अव्वल तो उद्योगपतियों को कपास के अलावा दूसरे व्यापार की इकाइयों के बारे में सोचना होगा।
प्रशासन को भी इस हेतु कोशिश करनी होगी। मां नर्मदा के जल की धाराओं को लाने की योजना को प्रदेश सरकार द्वारा जल्दी अमलीजामा पहनाना होगा। नर्मदा का पानी किसानों की उपज बढ़ाएगा। कपास का रकबा भी बढ़ेगा। मेरे क्षेत्र की खेती उन्नत होगी तो व्यापार भी बढ़ेगा। सरकार के औद्योगिक विभाग को भी नव उधमियों को क्षेत्र के मिजाज अनुसार नवीन व्यापारिक इकाइयों को स्थापित करने के बारे में चर्चा करनी चाहिए। क्षेत्र को शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत सी उपलब्धियों की दरकार है। शिक्षा के बड़े संस्थानों की बहुत जरूरत है।मेरे सम्पूर्ण विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख से अधिक लोग निवास करते है। मेरी सीमाओं से लगी महाराष्ट्र की सीमाएं है। मां बिजासन मेरे क्षेत्र की सीमा में स्थित है। मुझमें विकास की बहुत संभावनाएं है। अब में नवीन तरक्की और विकास की इबारत लिखना चाहता हूं। इस हेतु राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। मैं अब अपने रहवासियों के पलायन से तंग आ चुका हूं। अब शांत, स्वस्थ और अपराध मुक्त होना चाहता हूं। प्रदेश के नवीन मुखिया मेरे विषय में सोचेंगे, नर्मदा की जलधारा लाकर मेरे औद्योगिक और सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में सहायक बनेंगे। भगवान राजराजेश्वर और भिलटदेव नागलवाड़ी का आशीष मुझे बरसो से प्राप्त है। अब मुझे स्वयं को उजाड़ कहने में बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। मैं बदलना चाहता हूं। सरकार को अब मेरी तरक्की के विषय में सोचना चाहिए। मेरे क्षेत्र रहवासियों को और जनप्रतिनितियों को राजनीतिक गुना–भाग की बजाय मेरे विकास के बारे में सोचना चाहिए। अब में इस स्थिति से उभरना चाहता हूं।