मैं अपने जैसा अलग स्ट्राइकर बनना चाहता हूं : दिलराज सिंह

I want to be a different striker like myself: Dilraj Singh

  • मैं भारतीय सीनियर हॉकी टीम में जगह बनाने को बेताब हूं
  • भारत के हॉकी में ओलंपिक में पदक का रंग और चमकदार करना चाहता हूं

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : भारतीय जूनियर टीम के नौजवान स्ट्राइकर दिलराज सिंह की कहानी एक शरारती बच्चे के भारतीय हॉकी के नए सितारे के रूप में उभरने की कहानी है। पढ़ने से बचने के लिए अपने ताउ जी के बेटे को हॉकी खेलता देख कर दिलराज ने हॉकी थामी। हॉकी थामने पर शुरू में वह गोलरक्षक बनना चाहते थे, फिर मध्यपंक्ति में खेलना चाहा,अंतत: बन गए स्ट्राइकर। स्ट्राइकर गोल कर सुर्खियों में रहता है इसलिए हॉकी में दिलराज सिंह ने दिल से इस पॉजीशन पर खेलने की ठानी। भारत को चेन्नै में जूनियर पुरुष हॉकी विश्व कप में उन्होंने शुरू के दो मैचों में पहले चिली और फिर ओमान के खिलाफ दो मैचों में कुल पांच गोल कर पूल में बी शीर्ष स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाई और इसके बाद बेल्जियम के खिलाफ क्वॉर्टर फाइनल में और अर्जेंटीना के खिलाफ गोल के अभियान बना कर कांसा जिताने में अहम भूमिका निभाई। दिलराज सिंह को भारत की सीनियर पुरुष हॉकी टीम में जगह बनानी है तो उन्हें दुनिया की जर्मनी, बेल्जियम और अर्जेंटीना जैसी शीर्ष टीम के खिलाफ गोल करने के लिए उनकी मैन टू मैन मार्किंग को तोड़ने के लिए अपने हॉकी कौशल को निखारने की जरूरत है।

20 बरस के दिलराज सिंह ने चेन्नै में खास बातचीत में अपने हॉकी सफर की बाबत बताया, ‘मैं गुरदासपुर में बटाला के करीब जोड़ा सिंह गांव से हूं। मैंने हॉकी का ककहरा स्थानीय बड़े घुम्मन जिसे घुम्मन कलां भी कहा जाता है वहां कोच कुलविंदर सिंह के मार्गदर्शन में बतौर गोलरक्षक हॉकी खेल कर सीखा। हॉकी गोलरक्षक की किट इतनी महंगी थी कि मेरी मां को मेरे लिए इसकी किट मुहैया कराने के लिए अपने गहने बेचने पड़ गए। अचानक मेरा गोलरक्षक से मोह भंग हो गया और मुझे लगा कि मध्यपंक्ति में खेलना ज्यादा बेहतर है क्योंकि इस पॉजिशन पर खेल आप गोल कर ज्यादा सुर्खियों में रहते हैं। फिर मुझे लगा कि गोल करने के सबसे ज्यादा मौके तो बतौर स्ट्राइकर ही रहते हैं। अंतत: मैंने भारतीय जूनियर हॉकी टीम में बतौर स्ट्राइकर ही अपनी पहचान बनाने की कोशिश की और इसमें बहुत हद तक मैं कामयाब भी रहा।’

दिलराज बताते हैं, ‘मैंने सुरजीत हॉकी अकादमी में अवतार सिंह के मार्गदर्शन में अपना हॉकी कौशल निखारा। मैंने 2023 में भारत के जूनियर हॉकी राष्ट्रीय हॉकी शिविर में जगह बनाई। हमें जर्मनी के जूनियर हॉकी विश्व कप के सेमीफाइनल में हारने का मलाल जरूर है लेकिन खुशी है कि हम अर्जेंटीना को हरा कर इसमें कांसा जीतने में कामयाब रहे। मेरा मानना है कि इससे मेरे लिए भविष्य में संभावनाओं के नए दरवाजे खुल सकते हैं। मैं भारतीय सीनियर हॉकी टीम में जगह बनाने को बेताब हूं। मैं इसके लिए शिद्दत से मेहनत भी कर रहा हूं। मैं बतौर हॉकी स्ट्राइकर किसी और के जैसा नहीं बल्कि अपने जैसा अलग स्ट्राइकर बनना चाहता हूं। आगे लोग कहें कि वे मेरा जैसा स्ट्राइकर बनना चाहते हैं। भारत ने पिछले लगातार दो ओलंपिक में कांसा जीता था। मैं भारतीय हॉकी टीम के ओलंपिक में पदक का रंग और चमकदार करना चाहता हूं। मैंने भारत को 2020 के टोक्यो ओलंपिक में कांसा जिताने वाले वरुण कुमार और 2024 के पेरिस ओलंपिक में कांसा जितान वाले जर्मनप्रीत सिंह से बहुत कुछ सीखा। जब भी मुझे सीनियर हॉकी टीम के साथ खेलने का मौका मिला तो मैंने उनसे सीखने की पुरजोर कोशिश की।’