काश, निर्दयी माँ की ‘सूचना’ आखिरी होती..!

ऋतुपर्ण दवे

कोई माँ भला कैसे निर्दयी हो सकती है? क्रूर हो सकती है? कैसे अपने जिगर के टुकड़े को बैग में पैक कर सड़क रास्ते लंबे सफर पर बेखौफ निकल सकती है? इसके जवाब मनोचिकित्सकों के पास अपने-अपने ढ़ंग के और अलग भी हो सकते हैं। लेकिन गोवा मेंएक आम नहीं बल्कि बेहद खास वो माँ जिसने देश-दुनिया को अपनी सफलता से आकर्षित कियानिर्दयता और क्रूरता की सारी हदें पार कर जाए तोहैरानी होती है।गोवा में जघन्य हत्याकाण्डनेजहां हर किसी को झकझोरावहीं कई सवाल भी खड़े कर दिए। बेहद पढ़ी-लिखी माँ जिसे दुनिया आदर्श समझती थीवही अपराधी निकले? सवाल यकीनन कचोटने वाला है। लेकिन जवाब आसान भी नहीं है।

पति-पत्नी के रिश्तों में तल्खी आनाअसामान्य नहीं है। लेकिन ऐसा भी क्या नफरत जो इसकी बलि बेदी परखुद का मासूम चढ़ा दिया जाए? निश्चित रूप से बेकाबू गुस्सा, सोचने, समझने की शक्ति पर नियंत्रण खोना इंसान को कितना हैवान बना देता है।तमामघटनाओं से यही समझ आता है। लेकिन सूचना सेठ ने जिस शातिराना अंदाज मेंअपनीइकलौती संतान को मौत की नींद सुलाया वह बेहद अलग और चिंतानीय है। जैसा कि खुलासों से पता चलाबच्चे को अत्याधिक कफ सिरप पिलाकर बेसुध करउसका दम घोंट मौत की नींद सुला दिया गया।लाश बैग में भरआधी रात को बड़े बेखौफ अंदाज में बेधड़क होटल के रिशेप्शन पर कैब ड्राइवर को पकड़ाना औरसड़क रास्ते गोवा से बैंगलुरू के लंबे सफर पर निकलना किसी हॉरर स्टोरीसे कम नहीं है। रास्ते भर चुप्पी औरसामान्यकेहाव-भाव बनाए रखना।12 घंटे लाश के साथ सफरकरना यकीनन बेदिलकातिलका ऐसाशातिराना अंदाज था जैसेवो इंसान नहीं एआई(आर्टीफीसियल इण्टेलीजेंस) हो।हत्यारिन मां की सारी करतूतें बेहद हैरत अंगेज है। गनीमत रहीकिजहां होटल स्टाफ कोसंदेहहुआवहीं कैब ड्राइवर भी परेशान था कि हवाई यात्रा के मुकाबले बेहद लंबे सफर पर निकली महिला इतनी शांत और सहज कैसे?शक और कमरे में मिले सबूतों की बिना पर होटल वाले पुलिस को इत्तला करते हैं। पुलिस कैब वाले से कोऑर्डिनेट करती है।कैबठिकाने के बजाय थाने पहुंच जाती है।वहां बैग में कपड़ों के बीच छुपा चार साल के मासूम का शव मिलता है। इस तरह एक बेमिशाल महिला के हाथों हुए क्रूरतम हत्याकाण्ड से हर कोईसन्न रह जाता है। न जाने कितनी निर्दयी माताओं की कैसे-कैसे क्रूरतम वारदातें सुनीं और देखीं। लेकिन एआईके जरिए ‘माइंडफुल एआई लैब’ से कृत्रिम आदर्श और नैतिकता का आधुनिक पाठ पढ़ाने वाली सूचना सेठने कैसा घटिया माइंड गेम खेला जिससे हर कोई स्तब्ध है।उसके अनैतिक कारनामे की जितनी भी निन्दा की जाए कम हैऔर कठोर से कठोर सजा भी नाकाफी है। कोई अपढ़, ठेठ गंवई, दकियानूसी होता तो थोड़ा समझ भी आता। लेकिन एक पढ़ी लिखी असाधारण महिला जिसकी बेहद तगड़ी प्रोफाइल हो। एक कंपनी की सीईओ और हार्वर्ड की रिसर्च फेलो हो। जिसका नाम। जिसका नाम2021 की एआई एथिक्स में टॉप 100 ब्रिलियंट महिलाओं में शुमार हो। जिसने दो साल बर्कमैन क्लेन सेण्टर में एक सहयोगी का काम किया और बोस्टन, मैसाचुसेट्स मेंएआई तथा रिस्पॉन्सिबल मशीन लर्निंग में भी अपना योगदान दिया। बैंगलुरू प्रतिष्ठित कंपनी में डेटा साइंटिस्ट का काम कर चुकी हो जिसने दो पेटेंट भी दाखिल किए हों। जिसके पास कलकत्ता यूनिवर्सिटी की भौतिक शास्त्र की स्पेशलाइजेशन की डिग्री हो और जो वहां की 2008 की टॉपर हो वो ऐसा करे तो हैरानी की हदें भी पार होना स्वाभाविक है।

बंगाल की सूचना के पति वेंकट रमन बड़े इंडोनेशियाई कारोबारी हैं। 2010 में दोनों ने प्रेम विवाह किया लेकिनजल्द ही रिश्तेश बिगड़ गए। तल्खी बढ़ते-बढ़ते अदालत की चौखट तक जा पहुंची जो आखिरी मुकाम पर है।अदालत ने हर रविवार को बेटे को पिता से मिलने की इजाजत क्या दी यही सूचना सेठ को नागवार गुजरी। उसके एआई पैटर्न के ब्रेन ने जबरदस्त चाल चली। कत्ल से पहले बेटे से बैंगलुरू में मिलनेका संदेश देकर पति को गुमराह किया और खुद बेटे को लेकर गोवा आ गई।बेटा पिता से न मिल सकेइस प्रतिशोध में सूचना धधक रही थी।एक सक्षम एन्टरप्रेन्योर होकर भी पति से ढ़ाई लाख रुपए हर माह गुजारा भत्ता भी चाहती थी।शायदसूचना बेहद प्रतिभाशाली होकर भी अकेलेपन का शिकार थीऔर खुद के बुध्दिमान होने का भ्रम पाले घृणित आपराधिक विकृति के गिरफ्त में जकड़ चुकीथी।बेटे की हत्या का उसे कोई पश्चाताप नहीं है। बेटे का कुसूर बस इतना था कि उसकी शक्ल पिता से मिलती थी जो सूचना को सालता था। कैसी विकृत सोच थी?

नासमझ माँ में भी ममता होती है। जानवर तक संतान को बचाने खूंखार हो जाते हैं। उसमें ईर्ष्या, द्वेष की कैसी-कैसी विकृत मानसिकता पनपी जिसका उदाहरण सामने है। आखिर समाज किस दिशा में जा रहा है? पैसाया रंजिशन अपराधों के पीछे?
अकेलापन, आपसी मेल-जोल की कमीं, बिखरता समाजऔर हाथ में सिमटे मोबाइल से एकाकी बनता जीवन,सामाजिक ताना-बाना बिखेर लोगों को लोगों से अलग कर रहा है। एक वो जमाना था जब संयुक्त परिवार शानथी। गांवों मेंसांझा चूल्हा जलता जिसमें सबका खाना साथ पकता। रोज का हंसना, मिलना, उठना, बैठना और सबके सुख-दुख में बराबरी से शरीक होना, किसी मुसीबत या अनबन पर मिल जुलकर हल निकालने से कभी अकेलापन, डिप्रेशन या असुरक्षा की भावना महसूस नहीं होती थी।आजतरक्की के बीच वो समाज है जिसमेंटूटते संयुक्त परिवार की जगह अकेले परिवार हैं जो दिखावे का झूठा मुलम्मा ओढ़ रिश्तों की अहमियत को दरकिनार कर दिनों दिन बेहद खोखलेहोकरटूटते जा रहा हैं। यही वजह है जो बड़े और हाई प्रोफाइल भी घटिया से घटिया काण्ड कर बैठते हैं। काश कुछ वक्त टीवी, मोबाइल के स्क्रीन के अलावा घर, परिवार, समाज के लिए भी निकाला जाता जिससे इंसान को इंसान से जोड़े रखने वाली कड़ियां बिखरने न पातीं।इस दिशा में सबको सोचना होगा और रास्ता निकालना ही होगा। कितना अच्छा होता कि गोवा काण्ड की सूचना समाज के लिए आखिरी होती।