आईएएस अधिकारी: ड्यूटी या डिजिटल स्टारडम?

IAS officer: Duty or digital stardom?

“प्रशासन से पॉपुलैरिटी तक: आईएएस अधिकारियों का डिजिटल सफर”
“आईएएस अधिकारी: सोशल मीडिया स्टार या सच्चे सेवक?”

आईएएस अधिकारियों का सोशल मीडिया पर बढ़ता रुझान एक नई चुनौती बनता जा रहा है। वे इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर नीतियों से जुड़ी जानकारियाँ और प्रेरणादायक कहानियाँ साझा कर रहे हैं, जो जागरूकता बढ़ा सकती हैं। लेकिन क्या यह डिजिटल स्टारडम उनकी वास्तविक प्रशासनिक जिम्मेदारियों से समझौता है? व्यक्तिगत छवि बनाने की होड़ में पारदर्शिता और निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। ऐसे में एक संतुलन जरूरी है, जहां अधिकारी डिजिटल दुनिया में सक्रिय रहते हुए भी जनता की सेवा को प्राथमिकता दें।

डॉ. सत्यवान सौरभ

भारत में सिविल सेवा हमेशा से ही सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक रही है। एक आईएएस अधिकारी का दायित्व न केवल नीतियों को लागू करना होता है, बल्कि जनता की समस्याओं को समझकर उन्हें हल करना भी है। लेकिन हाल के वर्षों में एक नया चलन देखने को मिल रहा है – आईएएस अधिकारियों का सोशल मीडिया की ओर बढ़ता आकर्षण। कुछ अधिकारी इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर लगातार सक्रिय रहते हैं, अपने जीवन के पहलुओं को साझा करते हैं, व्लॉग बनाते हैं, और अपने प्रशासनिक अनुभवों के जरिए प्रेरणा देने का प्रयास करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह डिजिटल सक्रियता उनके मूल कर्तव्यों से ध्यान भटकाने का कारण बन रही है या फिर यह एक नई तरह की जनसेवा है?

सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव

सोशल मीडिया का युग आते ही हर क्षेत्र ने अपनी उपस्थिति वहां दर्ज की है, तो भला नौकरशाही कैसे पीछे रह सकती थी। आईएएस अधिकारी भी इस डिजिटल दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं। वे अपने अनुभव, सरकारी योजनाएं, और प्रेरणादायक कहानियाँ साझा करते हैं, जिससे आम जनता का प्रशासन पर विश्वास बढ़ता है। उदाहरण के लिए, बिहार की चर्चित आईएएस अधिकारी टीना डाबी हों या फिर कश्मीर के शाह फैसल, इन अधिकारियों ने अपनी ऑनलाइन उपस्थिति से लाखों युवाओं को प्रेरित किया है।

जनजागरूकता का नया माध्यम

सोशल मीडिया पर सक्रिय आईएएस अधिकारी अपने फॉलोअर्स को न केवल सरकारी योजनाओं की जानकारी देते हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता भी फैलाते हैं। वे आपदाओं के समय महत्वपूर्ण सूचनाएं साझा करते हैं और जनता से सीधा संवाद स्थापित करते हैं। यह पारंपरिक नौकरशाही के उस पुराने ढर्रे से बिल्कुल अलग है जहां अधिकारी केवल कागजों पर या सरकारी बैठकों में ही सीमित रहते थे।

लोकप्रियता और चुनौती

लेकिन सवाल यह है कि क्या इस डिजिटल सक्रियता का मतलब है कि ये अधिकारी अपने असली कर्तव्यों से भटक रहे हैं? क्या सोशल मीडिया पर छवि निर्माण का यह खेल उनकी प्रशासनिक जिम्मेदारियों से समझौता है? कई बार यह देखा गया है कि कुछ अधिकारी सोशल मीडिया पर इतना व्यस्त हो जाते हैं कि उनकी मूल जिम्मेदारियां प्रभावित होने लगती हैं। उदाहरण के लिए, किसी जिले के डीएम का समय अधिकतर क्षेत्रीय समस्याओं और विकास कार्यों में जाना चाहिए, न कि इंस्टाग्राम रील्स बनाने में।

अधिकारियों का स्टारडम

कुछ अधिकारी अपने सोशल मीडिया फॉलोअर्स की संख्या बढ़ाने में इतने लिप्त हो जाते हैं कि वे सेलिब्रिटी जैसी पहचान बना लेते हैं। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उनके निर्णयों की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है। क्या यह संभव है कि एक अधिकारी जनता की सेवा और लोकप्रियता की होड़ के बीच संतुलन बना सके?

प्रभाव और पारदर्शिता का सवाल

इसके अलावा, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि जब अधिकारी सोशल मीडिया पर अपने व्यक्तिगत विचार साझा करते हैं, तो इससे उनकी निष्पक्षता पर भी सवाल उठ सकते हैं। जनता के प्रति उनकी जवाबदेही और निष्पक्षता का संतुलन बनाए रखना कठिन हो सकता है। एक ओर वे जनता के सामने सीधे संवाद कर रहे हैं, तो दूसरी ओर वे एक छवि बनाने में भी लगे हैं, जो अक्सर वास्तविकता से भिन्न हो सकती है।

निजता और सुरक्षा का मुद्दा

सोशल मीडिया पर अधिक सक्रियता से अधिकारियों की निजता और सुरक्षा भी खतरे में आ सकती है। वे जिस प्रकार से अपने दिनचर्या, लोकेशन और व्यक्तिगत जीवन की जानकारी साझा करते हैं, वह सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हो सकता है। साथ ही, साइबर अपराधों और ट्रोलिंग का खतरा भी बना रहता है।

संवेदनशील मुद्दों पर जिम्मेदारी

इसके अलावा, अधिकारियों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे कौन सी जानकारियां साझा कर रहे हैं। कई बार उनका एक बयान या विचार राजनीतिक विवादों को जन्म दे सकता है। इससे न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

आम आदमी की अपेक्षाएँ

जब जनता एक अधिकारी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर देखकर उसकी तारीफ करती है, तो कहीं न कहीं उनकी अपेक्षाएँ भी बढ़ जाती हैं। वे यह मानने लगते हैं कि जो अधिकारी ऑनलाइन इतना सक्रिय है, वह ज़मीनी हकीकत में भी उतना ही समर्पित होगा। लेकिन क्या यह हमेशा सच होता है? क्या डिजिटल स्टारडम वास्तविक प्रशासनिक कार्यों में भी प्रभावी हो सकता है?

आईएएस अधिकारियों का सोशल मीडिया पर सक्रिय होना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, बशर्ते वे इसे अपने कर्तव्यों से ऊपर न रखें। डिजिटल दुनिया में उनकी उपस्थिति समाज को प्रेरित कर सकती है, जागरूकता बढ़ा सकती है, और युवाओं के लिए मार्गदर्शक बन सकती है। लेकिन यह भी सच है कि कभी-कभी यह लोकप्रियता का पीछा करने का खेल बन जाता है, जिससे उनके प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, बिहार की टीना डाबी, जिन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स से लाखों युवाओं को सिविल सेवा में आने की प्रेरणा दी, या फिर शाह फैसल, जिन्होंने सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर कश्मीर के मुद्दों पर खुलकर अपने विचार रखे। लेकिन दूसरी ओर, अधिक डिजिटल सक्रियता से उनकी पारदर्शिता, निष्पक्षता, और सुरक्षा पर भी सवाल खड़े होते हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि अधिकारी डिजिटल स्टारडम और प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखें, ताकि वे न केवल एक अच्छे नेता, बल्कि एक जिम्मेदार अधिकारी भी साबित हो सकें। आखिरकार, उनकी सबसे बड़ी सेवा जनता की समस्याओं का समाधान है, न कि सिर्फ लाइक्स और फॉलोअर्स बटोरना।

आईएएस अधिकारियों का सोशल मीडिया पर सक्रिय होना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, बशर्ते वे इसे अपने कर्तव्यों से ऊपर न रखें। डिजिटल दुनिया में उनकी उपस्थिति समाज को प्रेरित कर सकती है, जागरूकता बढ़ा सकती है, लेकिन इसके लिए एक संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। आखिरकार, एक अधिकारी का सबसे बड़ा धर्म उसकी जनता की सेवा है, न कि केवल डिजिटल स्टारडम।